घाटशिला.
हाइवे से सटे घाटशिला प्रखंड के आदिवासी बहुल पावड़ा गांव के लोग फोरलेन बनने से परेशान हैं. ग्रामीणों के मुताबाक फोरलेन बनने से उन्हें दैनिक जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जिंदगी की राह आसान होने के बजाय और उलझ गयी है. ग्रामीणों के साथ यहां के मवेशी भी परेशान हैं. यहां फोरलेन बनने के साथ ही फोरलेन के दोनों ओर लोहे की रेलिंग लगा दी गयी है. इस कारण इंसान के साथ-साथ जानवर इस पार से उस पार नहीं जा सकते है.खेत में जाने का रास्ता नहीं, बेचना पड़ा मवेशी
ग्रामीणों की मांग के दस साल बाद भी यहां अंडरपास नहीं बना. नतीजतन यहां के किसानों ने अपने मवेशियों को बेच दिया. क्योंकि उन्हें चराने के लिए फोरलेन पार कर जाना पड़ता था. मवेशी चरेंगे नहीं तो उनका पेट कैसे भरेगा. इसलिए किसानों को मजबूरन मवेशी बेचना पड़ा. फोरलेन बनने के बाद किसान अपने खेत तक नहीं जा पा रहे हैं.मवेशी और कृषि उपकरण के लिए जाना पड़ता है तीन किमी दूर
वर्ष 2014 में हाइवे का निर्माण कार्य शुरू हुआ था. हाइवे तो बन गया, लेकिन इससे गांव की जीवनशैली बुरी तरह से प्रभावित हो गयी. गांव की जमीन मुख्यत: हाइवे के बायें तरफ है, जबकि अधिकांश आबादी दाहिने तरफ में रहती है. ऐसे में मवेशी और कृषि उपकरण ले जाने के लिए ग्रामीणों को 2 से 3 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है. 90 प्रतिशत किसानों ने इस असुविधा के कारण अपने बैल, गाय, बकरी और भैंस बेच दिये. यह गांव पशुपालन के लिए जाना जाता था, लेकिन अब यहां की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है.
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