मुसाबनी : वीआरएस की आंधी में असमय अपनी रोजी गंवाने वाले पूर्व मजदूर वर्तमान में आर्थिक बदहाली के शिकार हैं. महंगाई ने इन कर्मियों का जीना दूभर कर दिया है.
असमय वीआरएस के नाम पर रोजगार से वंचित पूर्व कर्मचारी कंपनी के समझौते के मुताबिक बकाये, चिकित्सा सुविधा समेत कई सुविधाओं से वंचित हैं. वीआरएस लेने वाले पूर्व कर्मचारियों की बदहाली की ओर तथाकथित मजदूर नेता एवं जन प्रतिनिधि भी उदासीन है.
पहली क्लोजर नोटिस श्रम मंत्रालय ने एल 43024/5 97-आइआर (मिस) दिनांक एक अक्तूबर 97 को दिया था. इसके तहत एशिया के दूसरे सबसे गहरी खदान बानालोपा एवं बादिया के मजदूरों को वीआरएस की स्वीकृति दी गयी.
आइसीसी प्रबंधन ने इस नोटिस को रेफ सीएल/आइसीसी/इडी/एमएसबी–सीएलएस/98, दिनांक 20 अगस्त 98 को नोटिस बोर्ड में देकर बानालोपा एवं बादिया खदान के कर्मचारियों को 28 अगस्त 98 तक वीआरएस लेने का समय दिया था. दूसरा क्लोजर पाथरगोड़ा एवं केंदाडीह खदान के लिए आया.
श्रम मंत्रालय एल 43024/3/99 आइआर (मिस) 23 दिसंबर 99 द्वारा क्लोजर की अनुमति दी. कंपनी के रेफ इडी आइसीसी/सीपीडी/ सीएलएस/ 2000, दिनांक 17 जनवरी 2000 को नोटिस बोर्ड में लगाकर 24 जनवरी 2000 तक वीआरएस देने का फरमान दिया. तीसरा क्लोजर सुरदा के लिए एफ नंबर एल-42024/53/2002-आइआर (मिस) 5 जून 02 को श्रम मंत्रालय ने दिया.
कंपनी ने सूचना पट्ट पर इसे सात जून 03 को जारी कर 16 जून 03 तक वीआरएस लेने का फरमान दिया. कंपनी द्वारा नोटिस बोर्ड में दिये गये वीआरएस सूचना में बकाये के संबंध में कोई सूचना नहीं दी गयी थी. वहीं राखाकॉपर प्रोजेक्ट के 701 कर्मचारियों ने 7 जुलाई 01 को वीआरएस दिया था. वीआरएस के नाम 12,000 मजदूर बेरोजगार हो गये थे.