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बिहार के इस गांव के बेटे ने क्यों छोड़ी थी DSP की नौकरी? जानें फिर कैसे बने सियासी मौसम वैज्ञानिक

Bihar News: समय था 1968 का, जब रामविलास पासवान उस समय बमुश्किल 22 साल के रहे होंगे. उन्हें पुलिस उपाधीक्षक (DSP) की नौकरी का ऑफर मिला था, लेकिन उन्होंने नौकरी नहीं की और 23 साल की उम्र में विधायक बन गए.

Bihar News: पांच जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी में एक दुसाध परिवार में जामुन पासवान और सिया देवी के घर एक बच्चा का जन्म हुआ था, जिसका नाम रामविलास पासवान रखा गया. शहरबन्नी गांव के रणधीर पासवान ने बताया कि राम विलास पासवान का लालन-पालन उनके माता-पिता के लिए चुनौतीपूर्ण रहा, क्योंकि उस वक्त उनके गांव की स्थिति बहुत ही खराब थी. उनके गांव के लोगों ने यह कभी नहीं सोचा था कि शहरबन्नी गांव का यह लड़का एक दिन बिहार की राजनीति के दिग्गज नेता बनेगा. उस समय शहरबन्नी गांव के लोग चार महीने तक बाढ़ के कारण कैद रहते थे. इस गांव में सड़क एक भी नहीं थी. उस समय खगड़िया जाने का मतलब, आज के पटना दिल्ली जाने के बराबर था. उनके पास सिर्फ नाव ही एक सहारा था. आज गांव में सड़क भी है, अनगिनत गाड़िया भी है. शहरबन्नी में पुल पुलिया भी बन गया है, इसके साथ ही अलौली तक ट्रेन भी चलने लगी है.

ऐसे बढ़ी थी क्षेत्र में लोकप्रियता

समय था 1968 का, जब रामविलास पासवान उस समय बमुश्किल 22 साल के रहे होंगे. उन्हें पुलिस उपाधीक्षक (DSP) की नौकरी का ऑफर मिला था. रणधीर पासवान कहते है कि अगर कोई भी साधारण व्यक्ति होता तो वह नौकरी करता. लेकिन रामविलास पासवान ने ऐसा नहीं किया. जब रामविलास पासवान ने सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास कर ली थी और वह अपने गांव खगड़िया के शहरबन्नो पहुंचे, तब उन्होंने देखा कि एक दलित की कुछ लोगों के द्वारा पिटाई की जा रही हैं. दलित परिवार पर 150 रुपये नहीं लौटाने का आरोप था. तब उन्होंने उस दलित परिवार को उन दबंग लोगों से बचाया और उनके कागजात भी फाड़ दिए. इस घटना से पासवान लोगों में काफी लोकप्रिय हो गए. उनकी लोकप्रियता ऐसी बढ़ी कि लोगों ने उन्हें विधायक बना दिया, फिर वो सरकारी नौकरी छोड़ राजनीति के रास्ते पर निकल पड़े.

कैसे हुई थी रामविलास पासवान की राजनीतिक शुरुआत

रामविलास पासवान ने 1969 में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी. तब उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर खगड़िया की अलौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव जीता था. उन्होंने तब कांग्रेस के एक कद्दावर नेता को 700 वोटों से हराया था. उस वक्त उनकी उम्र 23 साल ही थी. रामविलास पासवान ने 1983 में दलित सेना गठित की, जिसका उद्देश्य वंचित-उत्पीड़ित जातियों के कल्याण के लिए काम करना था. रामविलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था. क्योंकि रामविलास पासवान हवा का रुख भांपकर अपनी सियासी नैया की पाल को उसी दिशा में मोड़ने का हुनर रखते थे. इसी कौशल के चलते वे विभिन्न राजनीतिक पृष्ठभूमियों वाले 6 प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री रहे. इसीलिए उन्हें ‘सियासी मौसम वैज्ञानिक’ का नाम दिया गया. ये उपाधि उन्हें पूर्व मुख्य मंत्री और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने दी थी.

केंद्रीय मंत्री बन घर तक बिछायी रेल की पटरी

राम विलास पासवान जब केंद्रीय रेल मंत्री बने तो 162 करोड़ की लागत से कुशेश्वरस्थान-खगड़िया रेल परियोजना को स्वीकृति दी थी. इस परियोजना की लंबाई 44 किलोमीटर है. हालांकि इस कार्य को पूरा करने में 25 साल तक का समय लग गया. अलौली से खगड़िया के बीच ट्रेन परिचालन शुरू हो गया है. यह रेल लाइन उनके पैतृक गांव शहर बन्नी को दरभंगा जिले के कुशेश्वरस्थान से जोड़ती है. रामविलास पासवान ने अपने घर तक रेल पटरी बिछाने का काम नहीं किया था, बल्कि उन्होंने हाजीपुर से समस्तीपुर वाया महुआ और भगवानपुर नई रेल लाइन के निर्माण के लिए रेल बजट में सर्वे का प्रावधान किया था.

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Radheshyam Kushwaha
Radheshyam Kushwaha
पत्रकारिता की क्षेत्र में 12 साल का अनुभव है. इस सफर की शुरुआत राज एक्सप्रेस न्यूज पेपर भोपाल से की. यहां से आगे बढ़ते हुए समय जगत, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान न्यूज पेपर के बाद वर्तमान में प्रभात खबर के डिजिटल विभाग में बिहार डेस्क पर कार्यरत है. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते है. धर्म, राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों को पढ़ते लिखते रहते है.

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