दुमका : दुमका जिले के अधिकांश स्कूलों में चावल आवंटित नहीं किये जाने के कारण मध्याह्न् भोजन बंद है. जब विभागीय स्तर से पता लगाया गया तो जानकारी मिली कि पिछले छह माह से दुमका जिले को चावल मिला ही नहीं है. ऐसे में सरकार कैसे अपने कथनों पर खरी उतरेगी. हालांकि कहा जाय तो सरकार सिर्फ घोषणाएं करतीं हैं. उसे अमल करने का काम भूल जाती है.
ऐसी कई योजनाएं ऐसी हैं जो बिना मॉनिटरिंग के खटाई में जा रहे हैं. जबकि मध्याह्न् भोजन योजना महत्वाकांक्षी योजना है. विभागीय निर्देश है कि किसी भी हालत में मध्याह्न् भोजन योजना बंद नहीं होना चाहिए. लेकिन यहां महीनों से मध्याह्न् भोजन बंद है लेकिन इसकी खबर लेने वाला ना तो कोई विभाग का पदाधिकारी है ना ही यहां के जन प्रतिनिधि.
सबसे विडंबना वाली बात यह है कि इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि हेमंत सोरेन अभी झारखंड की बागडोर संभाल रहे हैं. प्रदेश के कर्ता धर्ता हैं. लेकिन उनके ही जिले में स्कूलों में यह स्थिति उनके लचर कामकाज को बखूबी दर्शाती है. कहा जाय तो उन्होंने कभी इलाके की योजनाओं की मॉनिटरिंग की ही नहीं.
लाभ से वंचित हो रहे बच्चे बता दें कि जिले में 2512 प्राथमिक व मध्य विद्यालय हैं. इन सभी में मध्याह्न् भोजन योजना का संचालन हुआ करता था. अधिकांश स्कूलों में महीनों से चावल नहीं है और बच्चे इस योजना का लाभ पाने से वंचित हैं. मिली जानकारी के मुताबिक दुमका जिले के लिए धनबाद स्थित भारतीय खाद्य निगम के गोदाम से इस जिले को चावल की आपूर्ति होती रही है.
लेकिन मध्याह्न् भोजन योजना के लिए वहां से वित्तीय वर्ष 2014-15 में अप्रैल, मई और जून महीने के लिए कुल 839.99 मैट्रिक टन चावल की आपूर्ति नहीं की गयी थी. विभाग ने मांगा है चावल जिला शिक्षा अधीक्षक मसूदी टुडू ने भारतीय खाद्य निगम धनबाद के जिला प्रबंधक को 21 अगस्त को ही पत्र लिखकर जुलाई, अगस्त एवं सितंबर महीने के लिए अविलंब चावल भेजने का अनुरोध किया है. कक्षा एक से पांच तक के लिए 786.24 मैट्रिक टन, कक्षा 6 से 8 तक के लिए 350.70 मैट्रिक टन तथा एनसीएलपी विद्यालयों के लिए 11.78 मैट्रिक टन यानी कुल 1148 मैट्रिक टन चावल भेजने की मांग की गयी है.