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Dhanbad News: दिवस विशेष नहीं, आदत में शामिल हो पर्यावरण की सुरक्षा, वरना ज़हर बन जायेगी आबो-हवा

पर्यावरण दिवस पर विशेष

Dhanbad News: आज पांच जून है, विश्व पर्यावरण दिवस. हर साल इस दिन को दुनिया पर्यावरण के प्रति जागरूकता और संरक्षण के मकसद से मनाती है. इसकी शुरुआत वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गयी थी और पहली बार वर्ष 1974 में इसे मनाया गया था. पर्यावरण शब्द संस्कृत के “परि ” (चारों ओर) व “आवरण ” (घेराव) से मिलकर बना है. अर्थात् जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है. भारतीय संस्कृति में भी पर्यावरण की रक्षा को धर्म और कर्तव्य का दर्जा दिया गया है. अथर्ववेद में पृथ्वी को “स्वर्ग ” कहा गया है, पर विडंबना यह कि हम उसी स्वर्ग को नर्क में बदल रहे हैं. आज पेड़ धड़ल्ले से काटे जा रहे हैं. नदियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं और हवा में ज़हर घुलता जा रहा है. खासकर धनबाद जैसे इलाके में तो स्थिति और भी चिंताजनक है. यहां की हवा में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है. हालांकि समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर अभियान चलता है, पर रफ्तार इतनी धीमी होती है कि कुछ होता नहीं. आम-अवाम की भागेदारी भी मजबूत नहीं. क्या है हकीकत और कैसे बदलेगी स्थिति, पढ़ें अशोक कुमार, मनोज रवानी व शोभित रंजन कि रिपोर्ट.

सड़कें बनी, रफ्तार बढ़ी, पर कट गये पेड़

जीवन में रफ्तार का बड़ा ही महत्व है. इसे गति देने के लिए सड़कों का जाल बिछा, पर इसको लेकर बलिदान पेड़ों ने दिया. धनबाद-बरवाअड्डा मार्ग कभी हरा-भरा व छांव देने वाला रास्ता माना जाता था. दोनों ओर विशाल पेड़ इस सड़क की पहचान थे, पर रफ्तार जरूर बढ़ गयी. यह सड़क झारखंड की पहचान बन गयी, पर कभी शीतलता देने वाला यह इलाका कंक्रीट की भट्ठी बन कर रह गया. अगर सड़क निर्माण के साथ यहां पर फलदार व छायादार पेड़ों के पौधे लगाने का भी काम होता, तो शायद भविष्य सुखद रहता.

अब कम मिलते हैं पीपल व बरगद

अब हर इलाके में विकास योजनाओं की भेंट चढ़ गये हैं बड़े और पुराने पेड़. नतीजा है कि अब पीपल और बरगद के पेड़ तलाशने पड़ते हैं. खास अवसरों या पूजा-पाठ के लिए पीपल के पेड़ तलाशते मिल जायेंगे लोग. जानकारों का कहना है कि अगर इनके पौधे नहीं लगे, तो इनका अस्तित्व मिट जायेगा.

जो बातें राहत देती हैं

पौधों की फुटपाथी दुकानों में रहती है भीड़

शहर के विभिन्न हिस्सों में 60 से अधिक पौधा व फूल बेचने वाले फुटपाथी दुकानें हैं. यहां रोजाना खरीदारों की भीड़ उमड़ती है. इन दुकानों से हर माह करीब 30 लाख रुपये के पौधे बिकते हैं. यह आंकड़ा बीते वर्ष की तुलना में करीब 18 प्रतिशत अधिक है. दुकानदार कहते हैं कि शहर के लोगों के पास खुद की जमीन नहीं, पर उनके अंदर बागवानी की रुचि बढ़ी है. अधिकतर लोग वैसे पौधों की मांग करते हैं जो आक्सीजन की कमी दूर करते हैं.

शहर में मिलते हैं 18 प्रकार से अधिक पौधे

शहर में पौधों की मांग तेजी से बढ़ रही है. सड़क किनारे लगी नर्सरियों व दुकानों में 18 से अधिक प्रकार के पौधे आसानी से मिल जाते हैं. इनमें सजावटी, फलदार, औषधीय, छायादार व इनडोर प्लांट्स प्रमुख हैं. सजावटी पौधों में मनी प्लांट, एरिका पाम, स्नेक प्लांट व बोनसाई लोकप्रिय हैं, जबकि आम, अमरूद, नींबू जैसे फलदार पौधों की भी खूब बिक्री होती है. तुलसी, एलोवेरा जैसे औषधीय पौधे भी लोग घरों में लगाना पसंद कर रहे हैं. पौधा विक्रेताओं के अनुसार, बरसात का मौसम शुरू होते ही बिक्री में और इजाफा हो जाता है. गार्डनिंग का शौक अब आम लोगों के बीच तेजी से पनप रहा है.

यह दर्द देने का अधिकार किसने दिया

पेड़-पौधे ना केवल विकास की भेंट चढ़ रहे, बल्कि हम और आप भी उन्हें मार रहे हैं. खास कर शहरी क्षेत्र के पेड़ों पर सैकड़ों कील मिल जायेंगे. पोस्टर और बैनर टांगने के लिए बिना सोचे हम पेड़ों में कील ठोक देते हैं. एक बार भी कोई नहीं सोचता कि पेड़ों में भी जान है. कीलों के कारण कई पेड़ सूख गये. पेड़ों की जड़ को कंक्रीट से भर देते हैं. एक बार भी कोई नहीं सोचता कि जो पेड़ हमेंं ऑक्सीजन देते हैं, उन्हें हम जहर दे रहे. याद रहे ये मूक पेड़ भी हमसे सवाल करते हैं कि उनको मारने का हक किसने दिया.

सुकून देने वाले आंकड़े

हर वर्ष धनबाद में 18 प्रतिशत की दर से इलेक्ट्रिक वाहनों की हो रही है वृद्धिधनबाद में हर वर्ष 12 प्रतिशत की दर से सौर उर्जा का इस्तेमाल बढ़ रहा है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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