अखंड सुहाग के लिए होलिका दहन के दूसरे दिन से मारवाड़ी समाज में गणगौर माता की पूजा शुरू होती है. नवविवाहिताओं में गणगौर पूजा को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह रहता है. होलिका दहन के दिन नव ब्याहताएं सुहाग का जोड़ा पहनकर, सोलह शृंगार में सुहागिनों के साथ मिलकर होलिका दहन वाले स्थान पर जाती हैं. वहां पूजा करती हैं. होलिका दहनवाली अग्नि के चार फेरे लेती हैं. वहां से राख लेकर आती हैं. दूसरे दिन सुबह स्नान ध्यान के बाद सोलह शृंगार कर राख और मिट्टी मिलाकर सोलह पिंडी (गणगौर ) बनाती हैं. एक डाला में दूब डालकर गणगौर को उसमें बैठाती हैं. गणगौर की पूजा सोलह दिनों तक चलती है. पहले सात दिनों तक सूर्योदय से पहले नवब्याहताएं गणगौर पूजती हैं. काजल रोली की बिंदी लगाती हैं. हाथों में दूब लेकर गणगौर का गीत ””””गौर ए गणगौर माता खोल किवाड़ी, बाहर उबी रोवां पूजन वाली…”””” गाते हुए गणगौर का छीटा (चूमावन) करती हैं. अष्टमी को बसोड़ा के दिन ठंडा खाना खाकर कुम्हार से पांच बड़ी गणगौर माता बनवाती हैं. पांच गणगौर में एक इसर, दूसरा गणगौर, तीसरा कानी राम, चौथा रोवां पांचवां मालन होती है. गणगौर बनवाने से पहले चाक पूजती हैं. कुम्हार को गुड़, चावल व दक्षिणा देने के बाद गणगौर बनवाती हैं. चुनरी से ढक कर गणगौर घर लाती हैं. पूजा स्थल पर आसन देकर सोलह शृंगार करती हैं. सभी सुहागिनें मिलकर बड़ी गणगौर को पानी पिलाते हुए गीत गाती हैं. म्हारी गौर तिसायी ओ राज, थोड़ो सो पानी पिया दो (मेरी गणगौर प्यासी है आज, थोड़ा सा पानी पिला दो). बाजरा में धी चीनी मिलाकर गणगौर को जिमाया जाता है. सभी मिलकर उत्सव मनाती हैं.
31 को सिंधारा, एक को समापन :
गणगौर पूजा को लेकर 31 मार्च का सिंधारा मनाया जोयगा. सिंधारा के दिन सास और मां बहू बेटी का लाड चाव करती हैं. उन्हें मेहंदी रचायी जाती है. नये कपड़े, मिठाई पैसे देकर लाड जताया जाता है. पहला गणगौर मायके में मनाया जाता है. नवब्याहताओं के लिए सोलह शृंगार की सामग्री ससुराल द्वारा उसके पीहर भेजी जाती है. एक अप्रैल को गणगौर का समापन होगा. समापन के दिन विधि-विधान से पूजन के बाद संध्या में सभी सुहागिनें मिलकर गणगौर को पानी पिलाती हैं. संध्या में सभी मिलकर गणगौर को तालाब या नदी में विसर्जित करती हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है