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धनबाद ITI के 1000 स्टूडेंट्स का भविष्य दांव पर, AI के जमाने में 63 साल पुरानी मशीनों से ले रहे ट्रेनिंग

Dhanbad News: धनबाद के आइटीआइ कॉलेज में 63 सालों से कोई बदलाव नहीं हुआ है. संस्थान में 22 ट्रेड में 1000 से अधिक स्टूडेंट्स तकनीकी शिक्षा लेते हैं. सभी का भविष्य दांव पर है.

Dhanbad News| धनबाद, शोभित रंजन : आधुनिक सूचना क्रांति के युग में हर दिन नये बदलाव हो रहे हैं. रोज नयी-नयी टेक्नोलॉजी सामने आ रही है. पुरानी मशीनों की जगह स्मार्ट टूल्स लोगों की कार्य दक्षता को बढ़ा रहे हैं. दूसरी ओर, सरकारी आइटीआइ धनबाद के छात्रों को अभी भी 63 साल पुरानी मशीनों पर ट्रेनिंग दी जा रही है. पूरी दुनिया आधुनिकता की ओर बढ़ रही है, तो यह संस्थान आज भी पुरानी मशीनों के भरोसे है. ऐसे में यहां के छात्र प्रतिस्पर्धा में कैसे शामिल हो सकेंगे. मशीनों के कंडम घोषित होने के बाद भी संस्थान द्वारा अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है. नयी मशीन लाना तो दूर, खराब पड़ी मशीनों को हटाया तक नहीं गया है. जहां छात्रों को टेक्निकल ट्रेनिंग दी जाती है, वह भवन बदहाल है. चदरे से बनी इसकी छत कई जगह टूट चुकी है. इससे बरसात के मौसम में पानी गिरता है. एहतियात के तौर पर संस्थान द्वारा मशीनों को प्लास्टिक से ढंक दिया जाता है.

दांव पर है 1000 छात्रों का भविष्य

आइटीआइ कॉलेज में बीते 63 सालों से कोई बदलाव नहीं हुआ है. संस्थान में कुल 22 ट्रेड में 1000 से अधिक स्टूडेंट्स तकनीकी शिक्षा लेते हैं. इसमें प्रवेश की अर्हता 10वीं होती है. 10वीं पास कोई भी छात्र प्रोफेशनल कोर्स करने के लिए संस्थान में दाखिला ले सकता है. खराब और पुरानी मशीनों में ट्रेनिंग लेकर छात्र उस काबिल नहीं बन पाते हैं, जिससे वे आधुनिक मशीनों पर सुगमता से काम कर सकें.

50 प्रतिशत से अधिक मशीनें हो चुकी हैं खराब

संस्थान में अलग-अलग प्रकार के ट्रेड में छात्र पढ़ते हैं. उनके लिए 100 से अधिक मशीनें मौजूद हैं. इनमें मिलिंग, लिथ, ड्रिलिंग आदि मशीनें शामिल हैं. इसमें से 50 प्रतिशत से अधिक मशीनें कंडम घोषित हो चुकीं हैं. इसके बाद भी इन मशीनों को बदला नहीं जा रहा है. ऐसे में छात्र उन्हीं खराब मशीनों पर ही ट्रेनिंग लेने को विवश हैं.

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1962 में हुई थी धनबाद आइटीआइ की स्थापना

धनबाद आइटीआइ की स्थापना सन् 1962 में हुई थी. यहां धनबाद के अलावा दूसरे जिलों से भी छात्र पढ़ने आते हैं. संस्थान की स्थापना के समय ही इन मशीनों को लगाया गया था. अब वे 63 साल पुरानी हो चुकीं हैं. अब तक उन्हें बदला नहीं गया है.

मशीनों को संस्थान द्वारा कंडम घोषित कर दिया गया है. एमएसटीसी नाम की एक कंपनी खराब मशीनों को ले जाती है. उसके बाद सरकार नयी मशीन संस्थान को देती है. कंपनी पुरानी मशीनें ले जायेगी, उसके बाद ही नयी मशीनें संस्थान को मिलेंगी. इस काम में संस्थान के सभी लोग जुटे हैं.

उपेंद्र सिंह, प्रभारी प्राचार्य

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Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

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