देवघर : 1982 से 2013 तक 31 सालों से लंबित पुनासी जलाशय योजना की गति धीमी होने के कारण सरकार ने तो यहां तक निर्णय ले लिया था कि परियोजना की लागत इतनी बढ़ गयी है और इसमें आने वाली अड़चनों के कारण इस योजना को ही बंद कर दिया जाये. लेकिन तभी गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने इस प्रोजेक्ट को चैलेंज के रूप में लिया और ठान लिया कि हर हाल में इसे पूरा करवायेंगे.
सांसद की जिद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुनासी सहित तमाम लंबित योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए उन्होंने अपने ही तत्कालीन सरकार के खिलाफ 10 सितंबर 2011 को अनशन पर बैठ गये. सरकार से मिले आश्वासन के बाद उनका अनशन समाप्त हुआ.
आश्वासन के बाद भी प्रशासनिक और सरकार के स्तर से उन्हें निराशा हाथ लगी तो उन्होंने पुनासी जलाशय योजना के मामले को लेकर हाईकोर्ट में 10 सितंबर 2013 में पीआइएल दायर किया. उन्होंने परियोजना को जल्द पूरा करवाने की गुहार लगायी. तब से लेकर आज तक हाईकोर्ट लगातार पुनासी जलाशय योजना की मॉनिटरिंग कर रही है. नतीजा है कि इस योजना को पूर्ण करने के आड़े आ रही सारी अड़चनें दूर होती गयी जैसे फॉरेस्ट क्लियरेंस, विस्थापितों का पुनर्वास, मुआवजे का भुगतान आदि. कोर्ट के निर्देश का ही असर है कि रिवर क्लोजर का काम शुरू करवाया.
विस्थापितों ने किया 30 साल तक आंदोलन : पुनासी के विस्थापितों अपने हक के लिए 30 सालों से अधिक लड़ाई लड़ी. इस आंदोलन को लेकर राजद नेता सुरेश पासवान ने विस्थापितों को साथ लेकर लंबे समय तक लड़ाई लड़ी. सीपीआइ नेता दिवंगत उपेंद्र चौरसिया ने भी विस्थापितों के हक में लाल झंडा के तले आंदोलन किया. बाद में झाविमो के प्रधान महासचिव प्रदीप यादव और जिप उपाध्यक्ष संतोष पासवान ने विस्थापितों के हित में आंदोलन में साथ दिया.
संतोष पासवान ने तो अनशन तक किया. लड़ाई लंबी चली, लेकिन विस्थापितों को न्याय अंतत: सांसद निशिकांत के कोर्ट में पीआइएल दायर करने के बाद ही मिला. कोर्ट के कड़े रुख के बाद ही प्रशासन और सरकार रेस हुई और विस्थापितों के पुनर्वास और मुआवजे के अलावा कुछ लोगों को नौकरी तक दिया गया.
आंदोलन को कुचलने के लिए हुआ था पड़रिया कांड
पुनासी जलाशय योजना की जद में आने वाले ग्रामीणों को हटाने के लिए जोरदार विरोध उस वक्त हो रहा था. तत्कालीन बिहार सरकार ने योजना को धरातल पर उतारने के लिए कड़ाई की. जिसका नाजायज फायदा उस वक्त की पुलिस ने उठाया. विस्थापितों के आंदोलन को कुचलने के लिए 1988 में पुनासी इलाके के पड़रिया गांव में रात को पुलिस ने छापेमारी की.
इस दौरान पुलिस वालों ने गांव की महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया. घर से निकाल कर ग्रामीण महिला-पुरुषों को पीटा. मामला इतना हाइलाइट हुआ कि पड़रिया कांड नेशनल मीडिया की खबर बन गयी. इस घटना के बाद पड़रिया में जनता दल के नेता व पूर्व पीएम वीपी सिंह, बिहार के तत्कालीन सीएम सहित पक्ष विपक्ष के कई बड़े नेता पहुंचे थे.
इस मामले में आठ पुलिस वाले और छह चौकीदार को अभियुक्त बनाया गया था. मार्च 2013 में सामूहिक रेप केस का फैसला आया, लेकिन सभी अभियुक्तों को रिहा कर दिया गया. आज भी पुलिस वालों के अत्याचार का दंश पड़रिया की महिलाएं झेल रही हैं. गांव के लोग पड़रिया कांड को याद करते ही कांप जाते हैं.
विस्थापितों की मांग पूरी करने में सरकार को लग गये 32 साल
देवघर. जब से पुनासी योजना का काम शुरू हुआ तभी से विस्थापितों के पुनर्वास, मुआवजा, नौकरी का मुद्दा छाया रहा. इसको लेकर राजनीति भी हुई, लेकिन विस्थापितों की मांगें जायज थी.
उनका कहना है कि बेशक पुनासी जलाशय बनाइये, लेकिन पहले हमारा पुनर्वास करवाइये, हमें उचित मुआवजा दीजिए, जमीन जाने के बाद बेरोजगार हो रहे परिवार के सदस्यों को नौकरी दीजिए. यदि विस्थापितों की मांगें 1982 में ही पूरी कर दी जाती तो आज पुनासी योजना की लागत बढ़कर 800 करोड़ पार नहीं करती.