Jharkhand Village News: कसमार (बोकारो), दीपक सवाल-बोकारो जिले के चंदनकियारी प्रखंड के पोलकिरी गांव के बारे में ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान माता कुंती के साथ पांडवों ने यहां प्रवास किया था. हालांकि किसी धर्म ग्रंथ में इस बात का कहीं कोई जिक्र नहीं है. यह बात थोड़ी अटपटी लग सकती है, लेकिन इस क्षेत्र में सदियों से यही मान्यता मजबूती के साथ स्थापित है. उसके प्रमाण के तौर पर इस गांव में मौजूद एक जलकुंड को देखा जाता है.
अर्जुन ने अपने बाण से प्यास बुझाने के लिए निकाली थी जलधारा
मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान माता कुंती अपने पुत्रों के साथ जब इस क्षेत्र में आयी थीं, तब उनकी प्यास बुझाने के लिए अर्जुन ने अपने बाणों के प्रहार से इस जगह पर जलधारा की उत्पत्ति की थी. यह जलकुंड गुप्त गंगा के नाम से जाना जाता है. वैसे यह जगह भैरव स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है. यह इस क्षेत्र का प्रमुख दर्शनीय स्थल है. इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए राज्य की रघुवर दास की सरकार ने तत्कालीन पर्यटन मंत्री और स्थानीय विधायक अमर बाउरी की पहल पर वर्ष 2017 में भैरव महोत्सव की शुरूआत की थी. इसके चलते भी इस गांव को बड़ी पहचान मिली. भोजुडीह रेलवे स्टेशन के बगल में अवस्थित होने के कारण आम तौर पर यह स्थल भोजुडीह के नाम से जाना जाता है, लेकिन मूल रूप से यह पोलकिरी गांव में मौजूद है.
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बाबा काल भैरव की प्रतिमा भी है प्रसिद्ध
भैरव स्थल और गुप्त गंगा के संबंध में काफी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. बताया जाता है कि वर्ष 1500 में पोलकरी निवासी दुर्गादास ठाकुर के पूर्वज को बाबा काल भैरव ने स्वप्न में इजरी नदी पर अपनी प्रतिमा होने का संकेत देते हए गुप्त गंगा के पास स्थापित करने की बात कही थी. सुबह जब वे वहां पहुंचे तो वास्तव में नदी के बालू पर प्रतिमा पड़ी थी. स्वप्न को हकीकत में देखकर वे हैरत में पड़ गए. उन्होंने पहले प्रतिमा को बैलगाड़ी से लाने का प्रयास किया, लेकिन बार-बार बैलगाड़ी का पहिया टूटता चला गया और उसे लाना संभव नहीं हो सका. शाम को वे थक हारकर घर लौट गए. रात को उन्हें फिर स्वप्न आया कि उनकी प्रतिमा किसी बैलगाड़ी में नहीं, बल्कि सिर पर लाद कर ही लायी जा सकती है. सुबह वे फिर वहां गए. उन्हें उस समय घोर आश्यर्च हुआ, जब देखा कि जो प्रतिमा बैलगाड़ी में नहीं लायी जा सकी थी, वह कंधे पर आसानी से उठ गयी. कंधे पर लादकर गुप्त गंगा के पास लाया तथा तत्कालीन काशीपुर के महाराजा ज्योति प्रसाद सिंह देव के हाथों उस भव्य प्रतिमा को प्रतिस्थापित किया.
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गुप्त गंगा से सालोंभर निकलता है स्वच्छ जल
गुप्त गंगा से सालोंभर स्वच्छ जल निकलता है. यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु इस बहती जलधारा में स्नान भी करते हैं और जलपात्रों में भर कर अपने घर भी ले जाते हैं. कहा जाता है कि इसके उपयोग से पेट संबंधी बीमारी ठीक हो जाती है. जलधारा को आम जनों तक पहुंचाने के लिए यहां कई नालियों का निर्माण कराया गया है. गुप्त गंगा में बीचोंबीच एक गोलाकार पत्थर है. कहा जाता है कि पहले प्रत्येक रविवार को यह पत्थर स्वयं चक्कर काटता था. जलधारा के पास छोटे-छोटे आकर्षक मंदिरों का निर्माण भी हुआ है. इजरी नदी के तट पर भैरव स्थल मनोरम वादियों के कारण भी लोगों को सहज लुभाता है. यहां के पुजारी सुधीरचंद्र पाठक के निधन के बाद उन्हीं के वंशज कंचन पाठक फिलहाल भैरवनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं. वह कहते हैं कि यहां कई राज्यों से लोग आते हैं. राज्य सरकार द्वारा यहां सामुदायिक भवन, शेड आदि का निर्माण हुआ है.
ब्राह्मण बहुल गांव है पोलकिरी
पोलकिरी ब्राह्मण बहुल गांव है. ब्राह्मणों के लगभग चार सौ घर हैं. इसके अलावा रविदास, भूमिहार, घटवार, रवानी, बावरी आदि जाति के लोग भी काफी संख्या में हैं. स्थानीय सामाजसेवी देवाशीष मंडल, माणिक चंद्र एवं पूर्णचन्द्र ठाकुर कहते हैं कि गुप्त गंगा एवं भैरव बाबा की प्रतिमा के कारण इस गांव की बड़ी पहचान बनी है. देशभर के लोग इस गांव में भैरव बाबा के दर्शन-पूजन को आते हैं. वे बताते हैं कि इस गांव के लड़के पढ़ाई-लिखाई में अव्वल रहे हैं. यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग सरकारी नौकरियों में बहाल हुए हैं. तीन दर्जन से अधिक लोग आर्मी और पुलिस में हैं. इसके अलावा बीसीसीएल, रेलवे आदि विभागों में भी काफी लोग बहाल हुए हैं. इस गांव के लोगों के जीवन-यापन का मूल आधार खेतीबाड़ी है. गांव में भजन मंडली भी है. यहां का बसंती दुर्गा मंदिर भी काफी आकर्षक है.
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पोलकिरी राजस्व गांव की आबादी (2011 की जनगणना)
एससी 1425
एसटी 0034
अन्य 1762
कुल 3221
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