20.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

धनबाद से जुड़ा रहा है शिव खेड़ा का परिवार, सड़क से चोटी पर पहुंचने की कहानी

शिव खेड़ा को सुनते-बात करते हुए, मन में उनकी सभाओं में उमडनेवाली भीड़ के दृश्य उभरते हैं. दिल्ली का तालकटोरा स्टेडियम हो या रायपुर या इंदौर या भोपाल के बड़े मैदान, लाखों लोग उन्हें सुनने आये. बिना ढोये लाखों लोग. दैनिक मजूरी देकर लायी भीड़ नहीं. बसों-ट्रकों में उठा कर लाये लोग नहीं. ’74 आंदोलन […]

शिव खेड़ा को सुनते-बात करते हुए, मन में उनकी सभाओं में उमडनेवाली भीड़ के दृश्य उभरते हैं. दिल्ली का तालकटोरा स्टेडियम हो या रायपुर या इंदौर या भोपाल के बड़े मैदान, लाखों लोग उन्हें सुनने आये. बिना ढोये लाखों लोग. दैनिक मजूरी देकर लायी भीड़ नहीं. बसों-ट्रकों में उठा कर लाये लोग नहीं. ’74 आंदोलन के बाद स्वत: उमड़नेवाली भीड़ अब नहीं दिखती. राजनीतिक दल-संगठन-समूह भीड़ ‘मैनेज’ करने की कला में पारंगत हो गये हैं. फिर कैसे और क्यों एक अराजनीतिक इंसान को सुनने लाखों लोग स्वत: आ रहे हैं? जिसके पास कोई संगठन नहीं – फोरम नहीं, भीड़ बटोरने-जुटाने का मेकेनिज्म नहीं.

यह तथ्य पहेली नहीं है. राजनीतिक दल, विश्वास खो चुके लोगों की जमात हैं. पर लोग बदलाव चाहते हैं. जो ईमानदारी से बदलाव की कोशिश में दिखाई देता है, उसके पीछे लोग खड़े होते हैं. बाबा आमटे, मेधा पाटकर जैसे लोगों को इसीलिए सुनने लोग पहुंचते हैं. शिव खेड़ा को इसी मानस के तहत लोग सुन रहे हैं.

छिटपुट ढंग से उनके बारे में पढ़ी चीजें याद आती हैं. उनका परिवार धनबाद में रहता था. धनाढ्य परिवार था. कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण हुआ, खेड़ा परिवार के दुर्दिन आ गये. शिव खेड़ा अपने एक रिश्तेदार के सहयोग से कनाडा पहुंचे. बेरोजगार रहे. पग-पग पर जीने के लिए संघर्ष. अत्यंत कठिनाई के दिन थे. कार-टैक्सी धोने का काम किया. फिर सेल्समैन बने, वहां भी विफल रहे. तब एक इंश्योरेंस कंपनी में गये. दो-तीन महीने रहे, पर उपलब्धि गौण.

विदेश में नौकरी का सीधा संबंध ‘परफारमेंस’ (उपलब्धि) से है. एक शाम कंपनी के एक अफसर ने बुला कर उनके ‘पुअर परफारमेंस’ की बात की. विकल्प ढूंढने को कहा. उसी शाम रात आठ बजे शिव खेड़ा एक व्यक्ति से मिलने का समय तक कर चुके थे. अपनी मौजूदा कंपनी की ‘इंश्योरेंस पालिसी’ बेचने के लिए. इस मीटिंग के पहले ही उस कंपनी ने उन्हें विकल्प ढूंढने का संकेत दे दिया. बार-बार विफलता से उनका मानस बेचैन-आहत था. फिर भी पहले से तय मुलाकात के लिए वह गये. सुना हूं कि अपनी सारी तर्क विषमता और प्रभावित करने की शैली उन्होंने झोंक दी. उस व्यक्ति को ‘कन्विंस’ (विश्वास) कर लिया कि वे इंश्योरेंस पॉलिसी लेंगे. इसी क्षण अपनी छुपी विषमता को भी शिव खेड़ा ने पहचान लिया कि वह प्रभावी वक्ता हो सकते हैं.

फिर तो सफलताओं की डगर वह चढ़ते गये. आज दुनिया के टॉप पांच मोटिवेटरों में से वह एक हैं. बेशुमार दौलत-संपत्ति कमायी. संघर्ष से सफलता की चोटी तक की यात्रा उन्होंने की. पच्चीस वर्षों से वह अमेरिकावासी हैं, पर भारतीय पासपोर्ट रखा है. समृद्ध भारत देखने के लिए उन्होंने अपनी ऊर्जा एक नये अभियान में झोंक दी है. वह जान एफ केनेडी का एक कथन याद दिलाते हैं, जब तक राजनीति में अच्छे लोग नहीं आयेंगे, कोई परिवर्तन नहीं होगा.भारत की राजनीति में अच्छे लोगों को लाने के लिए वह अपरोक्ष-परोक्ष रूप से मानस भी तैयार कर रहे हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel