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पुल के लिए तरस रहे लालगंज के लोग

ग्रामीण इलाकों में हजारों की आबादी के लिए आज भी चचरी पुल ही एक मात्र विकल्प है. भले ही राज्य में विकास के नाम पर नयी इबादत लिखी जा रही हो, लेकिन विकास के नाम पर यह इलाका आज भी अपने को ठगा व उपेक्षित महसूस कर रहा है. प्रतिनिधि4छातापुर प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों […]

ग्रामीण इलाकों में हजारों की आबादी के लिए आज भी चचरी पुल ही एक मात्र विकल्प है. भले ही राज्य में विकास के नाम पर नयी इबादत लिखी जा रही हो, लेकिन विकास के नाम पर यह इलाका आज भी अपने को ठगा व उपेक्षित महसूस कर रहा है.
प्रतिनिधि4छातापुर
प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों हजारों की आबादी के लिए आज भी चचरी पुल ही एक मात्र विकल्प है. भले ही राज्य में विकास के नाम पर नई ईबादत लिखी जा रही है. लेकिन विकास के नाम पर यह इलाका आज भी अपने को ठगा व उपेक्षित महसूस कर रहा है. प्रखंड क्षेत्र को कई भागों में विभक्त करने वाली सुरसर, गैड़ा व मिरचैया नदी में सालों भर जल प्रवाहित होती है. कई स्थानों पर इन नदियों में पुल नहीं बनाया जाना इलाके वासियों के लिए किसी यातना से कम नहीं है. ऐसा नहीं है कि कुशहा त्रासदी 2008 के बाद यह स्थिति बनी है.
दशकों से मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को आवागमन के लिए भी विकट परिस्थितियों से जूझना पड़ रहा है. खासकर बरसात के मौसम में प्रखंड की आधी आबादी टापू नूमा जीवन गुजारने को विवश है. विकास के प्रति बड़े जन प्रतिनिधियों की उदासीनता ही नहीं प्रशासनिक उपेक्षा से भी ईलाके का समुचित विकास नहीं हो पाया. हालांकि 2008 कुशहा त्रासदी के बाद सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है. लेकिन प्रखंड को कई भागों में विभक्त करने वाली तीन नदियों पर पुल का नहीं बनाया जाना सड़क के औचित्य पर सवाल खड़ा कर रहा है. पुल के अभाव में आपराधिक घटनाओं के बाद या गश्ती के लिए ही पुलिस को आर पार करने में भारी परेशानी होती है. लड़का या लड़की की रिस्तेदारी के लिए भी लोग परेशान रहते है जहां इस इलाके में शादी संबंध के लिए कोई तैयार नहीं होता.
आंदोलन रहा बेनतीजा
उदाहरण स्वरूप सिर्फ लालगंज पंचायत की बात करें तो इस पंचायत क्षेत्र में दो नदियों का बहाव होता है. जहां पुल के अभाव में पंचायत के हजारों लोग टापूनूमा जीवन गुजारने को विवश हैं.
कुशहा त्रासदी के बाद तो स्थिति और भी भयावह हो गई है. नदी की उफनती जलधारा ने और उग्र रूप धारण कर लिया है. जहां कई स्थानों पर आर पार करने लिए हजारों की आबादी को चचरी ही अंतिम विकल्प बना हुआ है. ऐसा नहीं है कि पुल निर्माण के लिए जन आंदोलन नहीं हुआ. कई चरण में पंचायत के जन प्रतिनिधियों ने धरना प्रदर्शन करने से लेकर सामूहिक आवेदन उच्च अधिकारियों तक पहुंचाया. कई बार जल्द ही पुल निर्माण शुरू करने के आश्वासन भी मिले. लेकिन यह आश्वासन आज भी दिवा स्वप्न बना हुआ है. यहां तक कि लोक सभा व विधान सभा के जनप्रतिनिधियों पर पंचायत को उपेक्षित करने का आरोप भी लगाया गया. तंग आकर गत लोकसभा व विधान सभा चुनाव में लोगों ने सामूहिक रूप से वोट बहिष्कार करने का भी निर्णय ग्रामीणों ने लिया था. लेकिन चुनाव में खड़े प्रत्याशी जो विजयी भी हुए है. उन्होंने प्रखंड में सर्वप्रथम कार्य परियाही में पुल निर्माण कराने का वादा किया. जो अब तक पूर्ण नहीं किया गया है.
कहते हैं पंचायतवासी
लालगंज पंचायत वार्ड नंबर पांच निवासी ब्रहमदेव मंडल बताते है कि दशकों से पुल के अभाव में जिंदगी पहाड़ सी बनी हुई है. शादी विवाह से लेकर किसी प्रकार के आयोजन के लिए भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कोई बीमार पर जाये तो शामत आ जाती है. खटिए के सहारे ही रोगी को उपचार के लिए अस्पताल तक ले जाने की मजबूरी रहती है. बच्चे जान जोखिम में डाल कर स्कूल जाने पर विवश हो रहे है. वार्ड नंबर चार निवासी राजेन्द्र शर्मा बताते है कि विकास के नाम पर सरकारों ने पैसे को पानी की तरह बहाया लेकिन वह खर्च किस काम का जो कम से कम लोगों को मूलभूत सुविधा भी नहीं दे सका. इस इलाके में एक दो पुल निर्माण के लिए दशकों से लोग तरस रहे है. लेकिन सरकार से लेकर सांसद विधायक इस दिशा में गंभीर नहीं हो पा रहा. वार्ड तीन निवासी मो शमशेर ने कहा कि आवागमन की व्यवस्था मूलभूत सुविधा में शामिल है और मूलभूत सुविधा पाना आम नागरिकों का अधिकार है.
लेकिन न्याय के साथ विकास करने वाली सरकार आखिर कैसी न्याय की बात करती है जो आवागमन की सुविधा भी नहीं उपलब्ध करा पा रही. वार्ड चार निवासी गंगाराम मंडल ने बताया कि लालगंज पंचायत के विकास के लिए प्रशासन तो निरंकुश है ही बोट मांगते वक्त झूठा ऊवादा करने वाले बड़े जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद लौट कर नहीं आते. पांच वर्ष गुजरने के बाद फिर चुनाव में ही उनका दर्शन हो पाता है. ऐसी परिस्थिति में लोग आखिर करे तो क्या करे.

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