नाराजगी. अब भी सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर छोटी लाइन पर यात्रा करते हैं यात्री
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13 वर्ष बाद भी अमान परिवर्तन नहीं
नाराजगी. अब भी सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर छोटी लाइन पर यात्रा करते हैं यात्री आजादी के 68 साल से अधिक बीत जाने के बावजूद जिला वासियों का बड़ी रेल लाइन का सपना साकार नहीं हो पाया है. नतीजा है कि स्थानीय नागरिकों का जीवन आज भी छोटी लाइन की ट्रेनों पर टिकी है. सुपौल : सहरसा-फारबिसगंज […]
आजादी के 68 साल से अधिक बीत जाने के बावजूद जिला वासियों का बड़ी रेल लाइन का सपना साकार नहीं हो पाया है. नतीजा है कि स्थानीय नागरिकों का जीवन आज भी छोटी लाइन की ट्रेनों पर टिकी है.
सुपौल : सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड में अब भी अंग्रेजों के जमाने के छोटी लाइन पर चलने वाली ट्रेन का संचालन किया जाता है. जिसमें यात्रा करना काफी कठिनाई भरी साबित होती है. आदम जमाने के बोगियों में बिजली, पानी आदि जैसी कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है. वहीं मात्र छह जोड़ी ट्रेनों का इस रेल खंड में परिचालन किया जा रहा है. नतीजा है कि ट्रेनों में भेड़ बकरियों के तरह लोग लदे होते हैं. इस रेलखंड में सुरक्षा का भी कोई इंतजाम नहीं है. वहीं ट्रेनों की गति का औसत मात्र 12 से 15 किलोमीटर प्रति घंटा है. यही वजह है कि सहरसा से सुपौल की महज 28 किलोमीटर की दूरी तय करने में इन ट्रेनों को 02 घंटे से अधिक लग जाता है. लोग इस बात को लेकर खासे खफा है
कि जहां देश में बुलेट व सेमी बुलेट ट्रेन के परिचालन की बात की जा रही है. वहीं जिले के 22 लाख की आबादी आज भी आधुनिक रेल सेवा से पूरी तरह वंचित है. बड़ी रेल लाइन नहीं बनने से स्थानीय यात्रियों को आज भी दूरगामी ट्रेनों का सफर करने के लिये सहरसा जाना पड़ता है. जहां से वे बड़ी रेल लाइन की ट्रेनों की सुविधा प्राप्त कर पाते हैं. बड़ी रेल लाइन का निर्माण नहीं होने से जिले का व्यवसाय व आर्थिक उन्नति भी बाधित हो रहा है. जिसके कारण लोगों में नाराजगी देखी जा रही है.
13 वर्ष के बाद भी नहीं हुआ अमान परिवर्तन : मालूम हो कि सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड में अमान परिवर्तन की स्वीकृति मिलने के बाद वर्ष 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा जिले के निर्मली अनुमंडल मुख्यालय में रेल महासेतु एवं बड़ी रेल लाइन निर्माण कार्य का शिलान्यास किया गया था. केंद्र सरकार के इस ऐतिहासिक पहल से लोगों में काफी हर्ष का माहौल व्याप्त हो गया था. साथ ही उन्हें इस बात की उम्मीदें भी जगी थी कि अब शीघ्र ही उन्हें बड़ी रेल लाइन की ट्रेन पर सफर करने का अक्सर प्राप्त होगा. लेकिन दुर्भाग्य है कि शिलान्यास के 13 वर्ष बीत जाने के बावजूद अमान परिवर्तन का कार्य पूरा नहीं हो सका. हालांकि कोसी नदी पर रेल महासेतु का निर्माण हो चुका है. लेकिन सहरसा-फारबिसगंज एवं निर्मली-सरायगढ़ के बीच अमान परिवर्तन का कार्य आज भी अधर में लटका है. जिससे स्थानीय नागरिकों में असंतोष का माहौल व्याप्त है.
चार वर्षों से लगा है मेगा ब्लाक
गौरतलब है कि अमान परिवर्तन के क्रम में राघोपुर-फारबिसगंज के बीच 20 जनवरी 2012 को मेगा ब्लाक किया गया था. तब से इन दोनों स्टेशनों के बीच रेल परिचालन बाधित है. बीते वर्ष 01 नवंबर से किसनपुर एवं राघोपुर के बीच भी अमान परिवर्तन के नाम पर मेगा ब्लाक लगा दिया गया. लेकिन हकीकत है कि आज भी इस रेल खंड में बड़ी रेल लाइन निर्माण की गति काफी सुस्त है. लोगों की माने तो इस प्रकार मंथर गति से चल रहे कार्य से अगले दो-चार वर्षों में भी अमान परिवर्तन पूर्ण होने की उम्मीद नहीं की जा सकती.
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