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परमात्मा ने जीव के उद्धारक के लिए बनाया संसार: स्वामी शिवानंद जी महाराज

सुपौल : राधा कृष्ण ठाकुरबाड़ी परिसर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का समापन किया गया. स्वामी लाल जी महाराज के नेतृत्व में आयोजित कथा वाचन करने आये हरिद्वार के स्वामी शिवानंद जी महाराज ने शनिवार को ईश भक्ति व प्रार्थना से प्रवचन का शुभारंभ किया. प्रवचन के अंतिम सत्र में स्वामी जी ने श्रद्धालुओं […]

सुपौल : राधा कृष्ण ठाकुरबाड़ी परिसर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का समापन किया गया. स्वामी लाल जी महाराज के नेतृत्व में आयोजित कथा वाचन करने आये हरिद्वार के स्वामी शिवानंद जी महाराज ने शनिवार को ईश भक्ति व प्रार्थना से प्रवचन का शुभारंभ किया.

प्रवचन के अंतिम सत्र में स्वामी जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि जो साधन में तत्पर है वह साधु है. वहीं जिसने साधन का अनुभव कर लिया है और जिसकी वाणी, आचरण आदि सभी में सत तत्व उदभाषित होता है वहीं संत हैं. जबकि जिसकी दृष्टि में तू- तेरे, मैं- मेरे का भेद नहीं रहा तथा जिसका सभी प्राणियों के प्रति समान भाव हो गया उन्हें महात्मा बताया.

सर्वव्यापी मुक्त अवस्था है महात्मामहाराज जी ने बताया कि गृहस्थ, संन्यासी आदि सभी वर्ण, आश्रम, देश व वेश सहित अन्य प्राणी भी साधु, संत व महात्मा हो सकते हैं. वर्तमान समय में गेरुआ वस्त्र धारियों के वेश में ज्यादातर साधु, संत व महात्मा दृष्टिगत है. इस कारण इस वेश को लेकर भी लोग ऐसे मनुष्यों को उक्त नाम की संज्ञा दे रहे हैं.

बताया कि महात्मा तो सर्वव्यापी मुक्त होते ही हो जाता है. प्राणियों को केवल लोगों की दृष्टि में देह का आवरण दिखाई पड़ता है. कहा कि शरीर रहते हुए उनका मत एक व्यक्ति का दीखता है. पर शरीर छूटने के बाद व्यक्ति का मत ना होकर केवल सिद्धांत बन जाता है.

बताया कि लोगों में मत की अपेक्षा सिद्धांत का अधिक प्रचार होता है. स्वप्न के जरिये मिलता है आदेश शिवानंद जी महाराज ने बताया कि संत व महात्मा को स्वप्न के माध्यम से आदेश प्राप्त होता है.

क्योंकि जाग्रत अवस्था में आज्ञा दे और उसका अनुपालन ना हो तो पाप लगेगा. इस कारण वे स्वप्न में वे आज्ञा देते हैं. बताया कि स्वप्न में दी गयी आज्ञा को ना माने तो पाप नहीं लगेगा और माने तो लाभ ही लाभ होगा. उदाहरण देते स्वामी जी ने बताया कि जिस प्रकार प्राणियों को चुभे हुए कांटा को निकालते समय पीड़ा होती है.

पर उन्हें बुरा नहीं लगता. नारी प्रसव पीड़ा को भी प्रसन्नता पूर्वक सहन कर लेती है कि उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है. ठीक इसी प्रकार संत भी बुखार की पीड़ा होने पर आनंदित होते हैं क्योकि उनकी दृष्टि लाभ पाने पर रहता है और पाप कट रहा होता है.उद्देश्य समान होने पर संतों का संगठनस्वामी जी ने बताया कि संतों का संगठन तब हो सकता है.

जब उन सभी के उद्देश्य एक समान हो. यदि उनमें बाहर से एकता करना चाहे तो वह नहीं हो सकता. बताया कि बाहर से सभी अलग – अलग विधियों का पालन करते हैं. संतों को चाहिए कि वे अपने सिद्धांत व उद्देश्य पर अडिग रहे. बताया कि प्राणियों को संतों की लीला देखने से जो मोह उत्पन्न होता है. इसे माने कि यह नाश का उपाय है.

बताया कि मनुष्य संत के तात्विक बातों की तरफ ध्यान दें, उनके आचरणों के तरफ नहीं. इसका कारण बताते हुए कहा कि आचरण देश, काल, परिस्थिति आदि के अनुसार तथा सामने वाले प्राणियों के भाव के अनुसार होते हैं. जिसे हम पूरा नहीं समझ सकते.संत की दृष्टि ईश्वर के सिवाय कुछ नहीं महाराज जी ने बताया कि संत व महात्मा लोगों की दृष्टि में अनेकों उपदेश देते हैं.

प्राणियों को ईश्वर में लगाते हैं. लेकिन उनकी अपनी दृष्टि में एक परमात्मा के सिवाय और कुछ नहीं है. कहा कि जिस स्थिति में सामान्य मनुष्य है. उसी स्थिति में उतर कर वे उपदेश देते हैं. बताया कि संतों से पारमार्थिक विषय पर बात पूछना और अनुभव की बात करना उचित नहीं है. बताया कि जो प्राणी उनके अनुभव की बात पूछता है. उसमें उस संत के प्रति अश्रद्धा का भाव जगता है.

बताया कि परमात्म तत्व के अनुभव पर संत का उत्तर यदि हां हो तो पूछने वाले के मन में अविश्वास पैदा होगा कि ये आत्मश्लाधा करते हैं. यदि संत कहे कि इस विषय का अनुभव नहीं हुआ तो भी संदेह की स्थिति उत्पन्न होगी. यानी अनुभव की बात पूछने पर पूछने वालों की हानि होती है.

लाभ नहीं होता.शिष्य-गुरु के तत्वों पर की विशेष चर्चा महाराज जी ने केनोपनिषद में शिष्य अपने गुरु के प्रति चर्चा का व्याख्यान करते हुए बताया कि ‘नाहं मन्ये सुवेदेति ना ना वेदेति वेद च। यो नस्तद्वेद तत्वेद नो ना वेदेति वेद च’ यानी मैं तत्वों को भली भांति जान गया हूं- ऐसा मैं नहीं मानता और ना ऐसा ही मानता हूं कि मैं तत्व को नहीं जानता क्योंकि जानता भी हूं , मैं तत्व को जानता हूं अथवा नहीं जानता हूं- ऐसा संदेह भी है.

बताया कि हममे से जब भी कोई भी उस तत्व को जानता हूं वहीं मेरे उक्त वचन के तात्पर्य को जानता है. अनुभवी महापुरुष की दृष्टि में कोई भी व्यक्ति अज्ञानी नहीं होता. उनकी दृष्टि में ज्ञानी व अज्ञानी में भेद होता ही नहीं. महापुरुषों की दृष्टि में सभी प्राणी ज्ञानी है. पर बेचारे समझते नहीं.

बताया कि मैं हूं ऐसे अपनी सत्ता को सभी मानते हैं. पर भूलवश शरीर को लेकर सत्ता मानते हैं. बताया कि वास्तव में ज्ञान नहीं होता प्रत्युत अज्ञान का नाश होता है. कहा कि ज्ञान तो स्वत: सिद्ध होता है. अनुभव होने पर उसे ऐसा नहीं दिखाई पड़ता कि पहले नहीं था अब अनुभव हुआ है. प्रत्युत स्वत: स्वाभाविक दीखता है कि यह तो पहले से ही है.

जीव उद्धारक को लेकर बनाया संसार शिवानंद जी महाराज ने कहा कि जीव भोगों को चाहता है. जिस कारण परमात्मा ने संसार को बनाया. उदाहरण देते बताया कि जैसे पिता अपने बालक के लिए रुपये खर्च कर खिलौना की खरीदारी करता है.

क्योंकि बालक वहीं चाहता है. बताया कि वास्तव में मनुष्य शरीर भोग भोगने के लिए है ही नहीं. परमात्मा ने वस्तुएं दी है दूसरों की सेवा करने के लिए. ताकि दूसरों की सेवा करके जीव निर्मम- निरहंकार होकर मुक्त हो जाये.

परमात्मा चाहते हैं कि प्राणी संसार की सेवा करे और मेरे से प्रेम करे. पर जीवों ने परमात्मा से मिली वस्तुओं को अपना मान लिया. पर परमात्मा को अपना नहीं माना. जिस कारण प्राणी पदार्थों में ही उलझ कर रह जाता है. बताया कि भगवान ने जीव के उद्धारक के लिए संसार बनाया है.

परमात्मा की सृष्टि है भगवत स्वरूप स्वामी जी ने बताया कि परमात्मा से जना सृष्टि वास्तव में भगवत स्वरूप में है. पर जगद्रूप के कारण सृष्टि जीव कृत है. ययेदं धार्यते जगत, यानी जीव ने ही जगत को जगद्रूप किया है. जिस कारण जगत ना तो परमात्मा की दृष्टि में है और ना ही महात्मा की दृष्टि में है. प्रत्युत जीव की दृष्टि में है.

बताया कि स्वार्थ बुद्धि में जगत है तथा परमार्थ रूप में परमात्मा दिखाई पड़ता है. जीव भाव यानी अहम के मिटने पर जगत नहीं मिटता. प्रत्युत जगत भगवत रूप हो जाता है.समापन के दौरान वातावरण भक्ति मय स्वामी लाल जी महाराज के नेतृत्व में बीते 22 से 28 नवंबर तक मुख्यालय स्थित राधा कृष्ण ठाकुरबाड़ी परिसर में श्रीमद भागवत कथा का प्रवचन हरिद्वार से आये स्वामी शिवानंद जी महाराज द्वारा कराया गया.

समापन के मौके पर स्वामी लालजी महाराज ने भक्त जनों को विभिन्न राग युक्त संगीत की प्रस्तुति दी जहां श्रद्धालु भक्ति के रस से सराबोर होते रहे. स्वामी लाल जी महाराज ने कहा कि मानव जीवन देव दुर्लभ है.बिना संत , सदगुरु के शरण में गये ना तो ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है और ना ही प्राणियों को मोक्ष मिलेगा.

आयोजन कर्ता देव नारायण चौधरी व मोहन प्रसाद चौधरी ने बताया कि प्रवचन कार्यक्रम में सरस्वती देवी, शकंुतला देवी, अभय चौधरी, अजय चौधरी व पूनम देवी का सराहनीय योगदान रहा है. श्री चौधरी ने बताया कि स्वामी जी शिवानंद जी महाराज द्वारा ईश भक्ति, स्तुति व संगीत मय प्रवचन से संपूर्ण वातावरण भक्ति मय बना रहा.

साथ ही स्वामी जी द्वारा प्रस्तुत किये गये गोपी भक्ति, कंस बद्ध के प्रसंग को श्रद्धालुओं ने खूब सराहा. बताया कि स्वामी जी ने प्रवचन को सरलता के साथ प्रस्तुत किया. बताया कि स्वामी जी के विचार व अनुभवों को भक्त जनों ने उत्साह व तन्मयता के साथ कथा का श्रवण किया. साथ ही उन्होंने कार्यक्रम के समापन के उपरांत स्थानीय लोगाें को धन्यवाद दिया.

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