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जिन्हें पढ़ना चाहिए, वह चुन रहा लकड़ी

प्रतापगंज (सुपौल) : शिक्षा का अधिकार 01 अप्रैल 2010 में ही लागू है. जिसमें 06 से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का प्रावधान है. केंद्र व राज्य सरकार की तमाम कोशिशों एवं सुविधाओं के बावजूद आज हजारों बच्चे सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है. अभी भी कई बच्चे स्कूल जाने की […]

प्रतापगंज (सुपौल) : शिक्षा का अधिकार 01 अप्रैल 2010 में ही लागू है. जिसमें 06 से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का प्रावधान है. केंद्र व राज्य सरकार की तमाम कोशिशों एवं सुविधाओं के बावजूद आज हजारों बच्चे सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है.

अभी भी कई बच्चे स्कूल जाने की बजाय लकड़ी चुनने, होटलों व ईंट भट्ठा में काम करते नजर आते हैं. ज्यादातर बच्चों को स्कूल लाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा माध्याह्न भोजन, पोशाक, छात्रवृति आदि की सुविधा दी गयी है. बावजूद आर्थिक रूप से पिछड़े अविभावकों का बच्चों की पढ़ाई से ज्यादा घर की जीविका के लिये धनोपार्जन पर ध्यान है.
जिन बच्चों के हाथ में कलम होनी चाहिये थी उन हाथों में ईंट बनाने वाली फर्मा, खाना बनाने के लिये लकड़ी चुनने, होटलों में जूठा प्लेट धोना के काम करना पड़ता है. तस्वीर में कैद ऐसे ही बच्चे है जो सुबह होते ही स्कूल जाने की बजाय परिवार के लोग बच्चों को लकड़ी चुनने के साथ अन्य कार्य के लिए भेज देते हैं.
अब सवाल उठता है कि शिक्षा के अभाव में इन बच्चों का भविष्य क्या होगा. आज सरकार द्वारा अवाम को शत-प्रतिशत शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान से लेकर सरकारी स्तर कई योजनाएं संचालित है. फिर भी बच्चे स्कूल जाने की बजाय बाल श्रम कर रहे है. सवाल उठता है कि ऐसे शिक्षित राष्ट्र की कल्पना कैसे किया जा सकता.

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