Success Story: कहते हैं, “मेहनत कभी बेकार नहीं जाती,” यह सिर्फ कहावत नहीं, बल्कि हकीकत है. जिसे बिहार के सुपौल जिले के मनोज कुमार राय ने सच कर दिखाया. एक ऐसा शख्स, जिसने कभी अंडे बेचे, दफ्तरों में फर्श साफ किए और ठेले पर सब्जी बेची. आज वही भारतीय आयुध निर्माणी सेवा (IOFS) के अधिकारी के रूप में देश की सेवा कर रहे हैं. UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2010 में 870वीं रैंक हासिल करने वाले मनोज की संघर्ष-गाथा हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो कठिनाइयों के आगे घुटने टेकने के बजाय सपनों को पाने के लिए लड़ना चाहता है.
गरीबी से उपजा संघर्ष का हौसला
सुपौल के एक छोटे से गांव में जन्मे मनोज का बचपन अभावों में बीता. परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि दो वक्त की रोटी के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती थी. हालात ऐसे थे कि उन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही जिम्मेदारियां संभाल लीं. साल 1996 में जब हालात और बिगड़े तो वे दिल्ली चले आए. उम्मीद थी कि वहां कुछ अच्छा काम मिलेगा, लेकिन किस्मत ने कठिन रास्ते चुन रखे थे.
दिल्ली में शुरुआत आसान नहीं थी. नौकरी की तलाश में भटकते रहे, लेकिन जब कोई स्थायी काम नहीं मिला, तो उन्होंने ठेले पर अंडे और सब्जियां बेचना शुरू किया. इतना ही नहीं, अपने खर्चे निकालने के लिए उन्होंने दफ्तरों में सफाई कर्मचारी के तौर पर भी काम किया. परिश्रम और मेहनत ही उनकी पूंजी थी.
JNU बना प्रेरणा का केंद्र
संघर्ष के इन दिनों में मनोज एक और काम करते थे. दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में डिलीवरी मैन के रूप में सामान सप्लाई करना. यही वह मोड़ था, जिसने उनकी जिंदगी को नया रास्ता दिया. JNU के कुछ छात्रों से बातचीत के दौरान उन्होंने UPSC परीक्षा के बारे में जाना. छात्रों ने उन्हें शिक्षा जारी रखने की सलाह दी और बताया कि कैसे यूपीएससी उनकी जिंदगी बदल सकता है.
यही वह क्षण था, जब मनोज ने तय किया कि उन्हें सिर्फ रोजी-रोटी कमाने तक सीमित नहीं रहना. बल्कि बड़ा सपना देखना है. उन्होंने श्री अरबिंदो कॉलेज (इवनिंग) में दाखिला लिया और 2000 में BA की डिग्री पूरी की.
यूपीएससी की राह: असफलताओं से मिली सीख
स्नातक पूरा होते ही मनोज ने UPSC की तैयारी शुरू कर दी. वे पटना गए और वहां प्रसिद्ध शिक्षक रास बिहारी प्रसाद सिंह से मार्गदर्शन लिया. तीन साल की कठिन तैयारी के बाद 2005 में उन्होंने अपना पहला प्रयास दिया, लेकिन असफल रहे.
दूसरे प्रयास में अंग्रेजी उनके लिए बड़ी चुनौती बन गई. यूपीएससी में क्वालीफाइंग पेपर के रूप में एक क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी की परीक्षा पास करना अनिवार्य होता है. अंग्रेजी में कमजोर होने के कारण वे यह परीक्षा पास नहीं कर सके और उनका सपना फिर अधूरा रह गया. तीसरे प्रयास में वे प्रारंभिक परीक्षा तो पास कर गए, लेकिन मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू में सफल नहीं हो सके. यह वह वक्त था, जब कोई भी हताश हो सकता था, लेकिन मनोज ने खुद को टूटने नहीं दिया.
चौथे प्रयास में बदली रणनीति और मिली सफलता
मनोज ने अपनी पिछली गलतियों से सीखते हुए तैयारी का तरीका बदला. उन्होंने प्रीलिम्स की तैयारी से पहले मेन्स परीक्षा का पूरा सिलेबस कवर करने पर जोर दिया. इससे 80% प्रीलिम्स का पाठ्यक्रम खुद-ब-खुद कवर हो गया. साथ ही, उन्होंने NCERT की किताबों को अच्छी तरह पढ़ा और अपनी लेखन शैली (Writing Skills) को सुधारने में खास मेहनत की.
“अंधेरा चाहे जितना घना हो, सूरज को उगने से नहीं रोक सकता.” यही विश्वास लेकर वे आगे बढ़े और 2010 में अपने चौथे प्रयास में सफलता प्राप्त की. 870वीं रैंक के साथ UPSC परीक्षा पास कर ली.
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पहली पोस्टिंग और नई जिम्मेदारी
UPSC पास करने के बाद मनोज कुमार राय की पहली नियुक्ति नालंदा जिले के राजगीर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में हुई. जिस इंसान ने कभी अपने सपनों को पूरा करने के लिए दफ्तरों में सफाई का काम किया था, आज वही देश के प्रशासनिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका था.
प्रेरणा का संदेश
“जो मेहनत से नहीं डरते, कामयाबी उनके कदम चूमती है.” मनोज की कहानी हर उस युवा के लिए एक सीख है, जो परिस्थितियों के आगे हार मानने की सोचते हैं. गरीबी और कठिनाइयां आपको रोक नहीं सकतीं, जब तक आपका हौसला मजबूत है.