पुरनहिया. पुरनहिया के अदौरी बाजार में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में वृंदावन से आईं कथावाचिका सरस किशोरी ने ब्रज की महिमा का वर्णन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. कथा के दौरान उन्होंने कहा कि ब्रज की तीन रानियां हैं- पहली सृष्टि नियंता राधा रानी, दूसरी यमुना नदी जिसमें स्नान करने मात्र से ही यमराज के दूत उसे कभी छू भी नहीं पाते हैं और तीसरी ब्रज की रज (धूल). उन्होंने बताया कि भगवान कृष्ण ने अपने जीवन के 11 वर्ष बिना किसी पदत्राण के ब्रजभूमि में बिताए. उनके कोमल चरणों के स्पर्श से संपूर्ण ब्रजभूमि कृष्णमय हो गई थी. कथा के दौरान उन्होंने “धन-धन वृंदावन राजधानी, जहां विराजत मुरलीधर संग राधा रानी ” भजन प्रस्तुत किया, जिस पर सभी श्रद्धालु भावविभोर हो उठे. उन्होंने कहा कि वृंदावन को राधा रानी के अनन्य भक्त श्री प्रिया दास जी ने कृष्ण का निज धाम कहा है, जहां वह सभी गोपियों के साथ नित्य लीला किया करते थे. कथावाचिका ने गोवर्धन पर्वत की कथा का भी वर्णन किया. उन्होंने बताया कि किस तरह भगवान कृष्ण के कहने पर ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा छोड़ दी थी, जिससे क्रोधित होकर इंद्र ने प्रलयकारी वर्षा शुरू कर दी. तब भगवान ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर सात कोस के गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी ब्रजवासियों को बचाया. उन्होंने बताया कि शरद पूर्णिमा की चांदनी रात को भगवान ने राधा रानी के साथ निधिवन क्षेत्र में ऐसी रासलीला की कि मानो आत्मा से परमात्मा का मिलन हो गया. कृष्ण का मथुरा प्रस्थान और कंस वध कथावाचिका ने बताया कि कैसे मथुरा के राजा कंस के बुलावे पर भगवान कृष्ण को वृंदावन छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. उद्धव जी नंद बाबा और यशोदा मैया को समझाकर कृष्ण को मथुरा ले गए. मथुरा पहुंचकर कृष्ण ने कंस का वध किया और अपने नाना उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया. द्वारिकाधीश कहलाए भगवान कृष्ण अंत में, सरस किशोरी ने बताया कि भगवान कृष्ण ने विश्वकर्मा द्वारा रचित द्वारिका नगरी को अपनी राजधानी बनाया और वहां द्वारकाधीश कहलाए. द्वारिका में उनका विवाह रुक्मणी से हुआ. कथा सुनने के लिए बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ी.
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