शिवहर : दोनों हाथ जोर कर भारत आने वाला अंग्रेज जब भारत का शासक बन बैठा. हम उसके इच्छा के अनुसार नाचने को बाध्य हो गये. किंतु जब हमारा स्वाभिमान जागृत हुआ. हमारी चेतना जागी. तब हमारे वीर सपूतों ने अंग्रेजी सत्ता के उन्मुलन के लिए विद्रोह शुरू किया. उस आंदोलन में शिवहर के महुअरिया […]
शिवहर : दोनों हाथ जोर कर भारत आने वाला अंग्रेज जब भारत का शासक बन बैठा. हम उसके इच्छा के अनुसार नाचने को बाध्य हो गये. किंतु जब हमारा स्वाभिमान जागृत हुआ. हमारी चेतना जागी. तब हमारे वीर सपूतों ने अंग्रेजी सत्ता के उन्मुलन के लिए विद्रोह शुरू किया. उस आंदोलन में शिवहर के महुअरिया गांव निवासी ठाकुर नवाब सिंह भी कुद पड़े.
उन्होंने अपनी वीरता से अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला दी थी. सीतामढ़ी सब डिविजन के स्वतंत्रता सेनानियों के सूत्रधार थे ठाकुर साहेब. पूर्व विधायक ठाकुर रत्नाकर राणा व ठाकुर पद्यमाकर बताते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद के आत्म कथा के अनुसार 1917 में महात्मा गांधी के चंपारण आगमन के दौरान वे आजादी के लड़ााई में कुद पड़े थे.
1905 में जब बंग भंग अांदोलन के दौरान सारे भारत में राजनीतिक चेतना आयी. उस समय नबाव बाबू बंगाल के क्रांतकारियों के संपर्क में आ गये थे. इसका कारण था कि 1911 के पूर्व बिहार का उच्च न्यायालय कलकत्ता में था. नबाव बाबू मुकदमे के सिलसिले में कलकता आते जाते थे. उस दौरान वे बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गये. वे खुदी राम बोस के बहादूरी से प्रभावित थे.
1914 में मुजप्फरपुर जिला से चंदा इक्कट्ठा कर जब कुछ रुपये वाल कृष्ण गोखले के माध्यम से दक्षिण अफ्रिका गांधी जी को भेजा जा रहा था. तो उसमे नबाव बाबू ने भी सहयोग किया था. 1920 के असहयोग आंदोलन में वे सपरिवार कुद पड़े थे. 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान वे गिरफ्तार कर लिये गये.
1930 में जब शिवहर में नमक सत्याग्रह का आंदोलन किया गया. उस समय वे गिरफ्तार कर लिये गये. इन्हे छह माह की सजा हुई. वे हजारी बाग जेल में डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ सहबंदी रहे. 1942 में करीब एक लाख लोगों के साथ इन्होने सीतामढ़ी कचहरी पर झंडा फहरा दी. जिससे बौखलाई अंग्रेजी सरकार ने दमनात्मक कार्रवाई शुरू किया.
इनके महुअरिया स्थित पुस्तैनी मकान व शिवहर गोला को अंग्रेजों ने जला कर राख कर दिया. नबाव बाबू को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए अंगेजी हुकुमत ने दस हजार रूपये इनाम की घोषणाकी. कमिशनर टेनब्रुक की बेचैनी बढ़ गयी. उसने किसी भी हालत में नबाव सिंह को गिरफतार करने का निर्देश सिपाहियों को दिया. नबाव बाबू भूमिगत हो गये.
नेपाल के सिमरौनगढ़ में रहकर आंदोलन का नेतृत्व करते रहे. किंतु अंग्रेजों को पत्ता चल गया कि वे नेपाल में हैं. नेपाल सरकार पर अंग्रेजी दबाव बढ़ने लगी.इसकी भनक मिलते ही वे गांव के लिए निकल पड़े. किंतु पूर्वी चंपारण के खोरी पाकड़ गांव के पास 4 दिसंबर 1942 को इन्होने अस्वस्थ रहने के कारण दम तोड़ दिया.
किंतु मरने के पूर्व साथियों को निर्देश दिया कि उन्हें मरने के बाद शव को जला दिया जाय. ताकि अंग्रेजों को उनका मुर्दा शव भी नहीं मिले. साथियों ने खोरी पाकड़ वकैया नदी के संगम पर इनका दाह संस्कार कर दिया. सूचना मिलने पर पहुंची अंग्रेजी पुलिस को नबाव बाबू का राख तक नसीब नहीं हुआ.