रक्षाबंधन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 10:38 से 3:30 बजे तक
11 बजे रात से एक बजे रात तक रहेगा चंद्रग्रहण
दो रुपये से लेकर 150 रुपये तक की राखियां हैं बाजार में उपलब्ध
चाइनीज राखी खरीदने से कतरा रही बहनें
शिवहर : रक्षाबंधन पर्व को लेकर नगर में रौनक बढ़ गयी है. बहनों द्वारा भाई की कलाई में राखी बांधने के लिए रंग-बिरेंगे राखियों की खरीदारी की जा रही है. शहर के मुख्य पथ में राखियों की दुकानें सज गयी है. जहां दो रुपये से लेकर 150 रुपये तक की राखियां उपलब्ध पायी जा रही है.
राखियां खरीदते समय बहने खास तौर पर दुकानदार से पूछती नजर आ रही हैं कि वे जो राखियां खरीद रही हैं. वह चाइनीज राखी तो नहीं है. भूलकर भी बहने चाइनीज राखी खरीदने के पक्ष में नहीं दिख रही है. हालांकि दुकानदार नीतीश जायसवाल ने बताया कि उसने चाइनीज राखी बेचने के लिए लाया ही नहीं है. क्योंकि पूर्व से निर्धारित कर लिया है कि व चाइनीज राखी नहीं बेचेगा. शहर के मुख्य बाजार से होकर एनएच 104 पथ गुजरती है. किंतु रक्षाबंधन में बहनों की खरीदारी के भीड़ के कारण शहर में जाम की स्थिति भी देखी जा रही है. सुगिया कटसरी के स्वराज नंदन झा बताते हैं कि रक्षाबंधन हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है.
जो श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं.आमतौर पर यह त्योहार भाई-बहनों का माना जाता है.इस दिन बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र की दुआ करती हैं .भाई भी अपनी बहनों को सदा रक्षा करने का वचन देते हैं.यह पर्व भाई-बहन के रिश्तों की अटूट डोर का प्रतीक है. कहा कि रक्षाबंधन के लिए शुभ मुहूर्त 10:38 से 3:30 तक है. कहा इस तिथि को चंद्र्रग्रहण भी 11 बजे रात से एक बजे रात तक है.
रक्षाबंधन को लेकर कथा है प्रचलित: रक्षाबंधन के बारे में प्रचलित कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि राजा बालि ने जब 110 यज्ञ पूर्ण कर लिए तब देवताओं का डर बढ़ गया. उन्हें यह भय सताने लगा कि यज्ञों की शक्ति से राजा बलि स्वर्ग लोक पर भी कब्ज़ा कर लेंगे. इसलिए सभी देव भगवान विष्णु के पास स्वर्ग लोक की रक्षा की फरियाद लेकर पहुंचे. उसके बाद विष्णुजी ब्राह्मण वेष धारण कर राजा बलि के समझ प्रकट हुए व उनसे भिक्षा मांगी. भिक्षा में राजा ने उन्हें तीन पग भूमि देने का वादा किया. लेकिन तभी बलि के गुरु शुक्र देव ने ब्राहृमण रूप धारण किये हुए विष्णु को पहचान लिया व बलि को इस बाबत सावधान कर दिया.
किंतु राजा अपने वचन से न फिरे व तीन पग भूमि दान कर दी.इस दौरान विष्णुजी ने वामन रूप में एक पग में स्वर्ग में और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया. अब बारी थी तीसरे पग की, लेकिन उसे वे कहां रखें. वामन का तीसरा पग आगे बढ़ता हुआ देख राजा परेशान हो गए, वे समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करें और तभी उन्होंने आगे बढकर अपना सिर वामन देव के चरणों में रखा.इस तरह से राजा से स्वर्ग एवं पृथ्वी में रहने का अधिकार छीन गया. वे पाताल लोक में रहने के लिए विवश हो गए.
कहते हैं कि जब बलि पाताल लोक में चला गया .तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया. जिससे भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा. इस वजह से मां लक्ष्मी परेशान हो गयी. सोचा कि यदि स्वामी पाताल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे. तो बैकुंठ लोक का क्या होगा? इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया. लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे राखी बांधकर अपना भाई बनाया व उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयी. वह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी, उस दिन से ही रक्षा-बंधन मनाया जाने लगा. आज भी कई जगह इसी कथा को आधार मानकर रक्षाबंधन मनाया जाता है.