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106 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी जगदीश तिवारी का निधन, गांव में पसरा मातम

SASARAM NEWS.प्रखंड क्षेत्र की लहेरी पंचायत के डेबरियां गांव निवासी 106 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी जगदीश तिवारी का गुरुवार की देर शाम निधन हो गया. घटना की सूचना मिलते ही इलाके समेत प्रशासनिक गलियारे में शोक की लहर दौड़ गयी.

गार्ड ऑफ ऑनर के साथ स्वतंत्रता सेनानी को दी गयी अंतिम विदाई

22 जुलाई 1942 को करगहर थाना जलाने में थी अहम भूमिका फोटो-1 स्वतंत्रता सेनानी को तिरंगा समर्पित करते अधिकारी .प्रतिनिधि, कोचस

प्रखंड क्षेत्र की लहेरी पंचायत के डेबरियां गांव निवासी 106 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी जगदीश तिवारी का गुरुवार की देर शाम निधन हो गया. घटना की सूचना मिलते ही इलाके समेत प्रशासनिक गलियारे में शोक की लहर दौड़ गयी. वहीं पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया. इस दौरान पार्थिव शरीर का अंतिम दर्शन करने उनके पैतृक गांव डेबरियां पहुंचे सदर एसडीएम आशुतोष रंजन, बीडीओ चंद्रभूषण गुप्ता, सीओ विनीत व्यास व थानाध्यक्ष नीतीश कुमार सहित अन्य अधिकारियों ने परिजनों को हर संभव मदद करने का भरोसा दिया. इसके बाद परिजनों ने शुक्रवार की अहले सुबह वाराणसी स्थित मणिकर्णिका घाट पर पूरे विधि-विधान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया.

1942 में करगहर थाने को जलाने में थी अहम भूमिका

भारत की आजादी के लिए आंदोलन के क्रांतिकारी उस दौर में अपनी जान की परवाह नहीं करते थे. उन्हीं क्रांतिकारियों में डेबरियां गांव के जगदीश तिवारी का नाम भी शामिल था, जो अपने भाइयों पर होते जुल्म को देख बर्दाश्त नहीं कर सके. करगहर थाना क्षेत्र के करूप गांव निवासी अवध बिहारी पांडेय के नेतृत्व में बड़की खरारी स्टैंड के समीप उन्होंने साथियों के पास रखे लोहबंद से अंग्रेज एसडीओ की कमर तोड़ दी थी. इसके बाद 1942 के आंदोलन में वे कूद पड़े और क्षेत्र के क्रांतिकारियों को संगठित करने लगे. 22 जुलाई 1942 को क्रांतिकारियों ने करगहर थाने को जलाने की योजना बनायी. इसके बाद वे अपने अन्य साथियों के साथ थाने पहुंचे और उसमें आग लगा दी. इस दौरान क्रांतिकारियों ने भारत माता की जय व अंग्रेज भारत छोड़ो के नारे लगाते रहे. थाना जलने की सूचना पर सासाराम के तत्कालीन एसडीओ मिस्टर मार्टिन पुलिस बल के साथ पहुंचे और क्रांतिकारियों पर लाठी बरसाने लगे. इसके बाद अंग्रेजों ने श्रीतिवारी को उनके अन्य साथियों करुप के अवध बिहारी पांडेय, तोरनी के राजेंद्र राय, सोहसा के पंडित गिरीश नारायण मिश्र और रामाधार सिंह आदि के साथ गिरफ्तार कर लिया. पांच वर्षों तक जेल में अंग्रेजों ने उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी.लेकिन वो नहीं झूके. अंत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह जेल से बाहर निकले.

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