लापरवाही. एक करोड़ 71 लाख की लागत से बना है सामुदायिक भवन
दिघवारा : मरीजों का इलाज करनेवाला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दिघवारा इन दिनों खुद बीमार है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को उत्क्रमित करने के बाद इसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के नवनिर्मित व भव्य बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया गया, मगर एक साल बाद भी रोगियों को मिलने वाली किसी भी सुविधा में इजाफा नहीं हुआ. इससे आम लोगों में अस्पताल प्रबंधन के प्रति नाराजगी देखी जा रही है. यह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रसव कराने व टीका देने तक के काम में सिमट कर रह गया है. यहां रोगियों का इलाज कम होता है एवं सुविधाओं की कमी बता कर गंभीर मरीजों को रेफर करने का काम ज्यादा किया जाता है.
डॉक्टरों की है कमी : पीएचसी सीएचसी बना, मगर डॉक्टरों की संख्या में कोई इजाफा नहीं हुआ. दो नियमित चिकित्सक डॉ रामराज शर्मा व डॉ राधा शरण प्रसाद वर्षों से प्रतिनियोजन पर हैं एवं यहीं से उनका पेमेंट बनता है. जबकि मरीजों को इन डॉक्टरों का लाभ नहीं मिलता. डॉक्टर सुरेश प्रसाद के पास प्रभारी पद की जिम्मेवारी है.
वहीं डॉक्टर रवींद्र प्रसाद अमनौर में पदस्थापित हैं. जबकि उनका यहां प्रतिनियोजन कर किसी तरह इलाज की गाड़ी को आगे बढ़ाया जा रहा है. डॉक्टर रोशन व डॉ रविकांत के कंधों पर मरीजों के इलाज की जिम्मेवारी है. डॉक्टर टीएन पंडित आयुष चिकित्सक हैं एवं वह अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र गोराईपुर के साथ सीएचसी के ओपीडी को भी संभालते हैं.
लगभग 50 प्रतिशत से अधिक घटी है रोगियों की संख्या : दिघवारा के मुख्य बाजार में जब पीएचसी चलता था, तब प्रतिदिन ओपीडी में औसतन 100 से 150 मरीज इलाज कराने पहुंचते थे. मगर सीएचसी के ओपीडी में प्रतिदिन बमुश्किल से 50 से 60 मरीज ही पहुंचते है. ओपीडी में रोगियों की घटती संख्या यह बताने को काफी है कि मरीजों का विश्वास अस्पताल प्रबंधन से निरंतर उठता जा रहा है.
तीन प्रखंडों से पहुंचते है मरीज : इस अस्पताल में सड़क व रेल दुर्घटनाओं के मरीजों के अलावा दिघवारा, दरियापुर व गड़खा प्रखंडों की विभिन्न पंचायतों के मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, मगर मौजूदा समय में अस्पताल में सिर्फ ड्रेसिंग का काम ही होता है. थोड़ी-सी गंभीर स्थिति में पहुंचने पर रोगियों का इलाज करने के बजाय चिकित्सा कर्मी रेफर करने की कोशिश ज्यादा करते हैं.
हाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दिघवारा का
30 बेडों का दावा, मगर आधा दर्जन बेड भी नहीं
एक जुलाई ,2015 को जब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्थानांतरित किया गया था, तब यह दावा किया गया था कि नवनिर्मित अस्पताल में 30 बेडों की सुविधा होगी, मगर ऐसा कुछ नहीं हो सका. पीएचसी में मौजूद छह बेडों को ही इसमें लगा कर मरीजों के इलाज शुरू हुआ, जो साल भर बाद तक भी जारी है. कई बेड टूट चुके हैं, तो कई बेडों की स्थिति खुद मरीजों की तरह हो गयी है. हालात यह है कि जब भी कोई बड़ी घटना के बाद ज्यादा संख्या घायल अस्पताल तक पहुंचते हैं, तो बेडों की कमी के कारण उन लोगों को जमीन पर लेटा कर ही इलाज होता है.
सुविधाओं का है घोर अभाव
अस्पताल में दवा की उपलब्धता भी नाम मात्र के बराबर है. अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचने वाले रोगियों को बाहर से दवा खरीदने की मजबूरी है. वहीं रोगियों को हर तरह की जांच में पैसा देना पड़ता है. खून, पेशाब व बलगम समेत अन्य जांच भी बिना राशि के नहीं होती. ड्रेसर, कंपाउंडर व ओटी अस्सिटेंट के पद भी रिक्त हैं. फार्मासिस्ट, ग्रुप डी स्टाफ व सुरक्षा गार्ड की मदद से घायलों का इलाज होता है.
महिला चिकित्सकों की नहीं है प्रतिनियुक्ति
सीएचसी के ओपीडी में पहुंचनेवाले मरीजों में महिलाओं की संख्या धीरे-धीरे घटती जा रही है. इसकी मूल वजह इसमें किसी महिला चिकित्सक की पोस्टिंग नहीं होना है. महिलाएं अपनी आंतरिक बीमारियों को पुरुष डॉक्टरों से शेयर करने में हिचकिचाती हैं. लिहाजा महिला मरीज निजी क्लिनिकों की ओर जाना ज्यादा मुनासिब समझती हैं. पहले यहां डॉक्टर ज्योत्सना शरण नामक महिला चिकित्सक की पोस्टिंग थी.
मगर छह महीने से अधिक का समय गुजर गया, लेकिन अब तक किसी महिला डॉक्टर की पोस्टिंग नहीं हुई.