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पांच साल में 20% कम हुई कृषि योग्य भूमि

मोरवा : प्रखंड क्षेत्र में खेती योग्य भूमि में तेजी से कमी हो रही है. लगातार बनते मकान, फोरलेन सड़क का निर्माण व टुकड़ों में बंटती जमीन से विगत पांच सालों में इसमें 20 फीसदी की कमी बतायी जा रही है. कृषि योग्य भूमि टुकड़ों में इस कदर बंट चुका है कि अब उस पर […]

मोरवा : प्रखंड क्षेत्र में खेती योग्य भूमि में तेजी से कमी हो रही है. लगातार बनते मकान, फोरलेन सड़क का निर्माण व टुकड़ों में बंटती जमीन से विगत पांच सालों में इसमें 20 फीसदी की कमी बतायी जा रही है. कृषि योग्य भूमि टुकड़ों में इस कदर बंट चुका है कि अब उस पर खेती करना आसान नहीं रहा है. प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक मोरवा प्रखंड क्षेत्र में ऊपरी भाग में 21 हजार नौ सौ हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है. नदी किनारे और चौर की जमीन का आंकड़ा इससे अलग है. विगत पांच सालों में करीब चार सौ पचास एकड़ में विभिन्न तरह के मकान बन गये, तो छह सौ एकड़ में मिट्टी कटाई से खेत खेती करने लायक नहीं रहा.

साल 2015 में शुरू हुए फोरलेन सड़क के निर्माण के लिये करीब 19 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लेने से खेती लायक जमीन ही अधिकांश लोगों के पास नहीं बचा. हर साल करीब सौ हेक्टेयर में बागवानी के तहत पौधे लगाये जाते हैं. चिमनी व मछली पालन में खेत का बड़ा टुकड़ा खेती लायक नहीं रह जाता है. इस हिसाब से देखा जाये, तो आनेवाले 15-20 सालों में खेती के लिये नाममात्र के जमीन ही बचने की संभावना है. किसानों के समक्ष बड़ी समस्या मवेशी चारों को लेकर है.
अनाज तो बहार से भी मंगाकर काम चलाया जा सकता है, लेकिन पशु चारे के लिये खेती ही एकमात्र साधन है. गांव देहात में बन्ने वाले संपर्क सड़क व पोल्ट्री फॉर्म में भी खेती योग्य भूमि का बड़ा हिस्सा अतिक्रमित हो रहा है.
इन समस्याओं को निबटने के लिये किसानों ने खेती का विकल्प निचले इलाके यानि चौर और नदी के किनारे की जमीन में खेती की संभावना तलाश रहे हैं. बरसों से बंजर हो चुकी जमीन को जोत आबाद कर खेती लायक बनाने की जदोजहद कर रहे हैं.

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