गायत्री शक्तिपीठ में व्यक्तित्व परिष्कार सत्र का आयोजन सहरसा. गायत्री शक्तिपीठ में रविवार को व्यक्तित्व परिष्कार सत्र का आयोजन किया गया. सत्र को संबोधित करते डॉ अरुण कुमार जायसवाल ने तुलसी पर्व त्योहार एवं उत्सव के महत्व को बताते कहा कि सनातन संस्कृति में जो स्थान गंगा, गीता, गायत्री का है. उतना ही महत्वपूर्ण स्थान तुलसी को प्राप्त है. तुलसी यह नामस्रमण ही हर हृदय को पवित्रता से परिपूर्ण कर देता है. पवित्र कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी को शुभ तुलसी विवाह का पर्व अत्यंत श्रद्धापूर्वक सल्लास मनाया जाता है. तुलसी की महिमा को कहते शास्त्रकार कहते हैं हे विष्णुप्रिये, तुम अमृतस्वरूप हो. अमृतत्य प्रदान करती हो, इस संसार से मेरा उद्धार करो. तुलसी की पूजा-अर्चना से वस्तुतः कोई स्वर्ग उपलब्ध होता है या नहीं ज्ञात नहीं. लेकिन रोग-शौक के नरक में फंसे लोगों के लिए तुलसी सचमुच ही इतनी उपयोगी पायी गयी है कि उसे उद्धारकनी ही कहा जा सकता है. अंग्रेजी में इसकी पवित्रता को देखते इसे पवित्र बेसिल कहते हैं. तो फ्रेंचवासी इसे बेसिलिक कहकर पुकारते हैं जिसका अर्थ शाही जड़ीबूटी है. उन्होंने कहा कि भगवान नारायण की कोई भी पूजा तुलसी के बिना पूर्ण नहीं होती. देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी जी एवं शालिग्राम भगवान के विवाह का आयोजन करने से सुखी दाम्पत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है. उन्होंने कहा कि तुलसी की इतनी आवश्यकता एवं उपयोगिता पहले कभी नहीं हुई, जितनी इस युग में है. इसलिये यदि उसे उद्धारकत्री कहा जाये तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि नयी पीढ़ी को पूजा विधि बतानी चाहिए. अपनी संस्कृति से रूबरू कराना चाहिए. नयी पीढ़ी को अपने कुल देवी देवता के बारे में पता नहीं होता. वे उनके महत्व को नहीं जानते. इसलिए साथ में पूजन की तैयारी करें, पारंपरिक पूजा विधि व कुलदेवी देवताओं के महत्त्व के बारे में भी बताते चलें. नयी पीढ़ी को मान्यताओं के बारे में बताने पर आत्मिक शांति मिलती है.
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