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चार महीने बाद योग निंद्रा से जागते हैं भगवान श्रीविष्णु

चार महीने बाद योग निंद्रा से जागते हैं भगवान श्रीविष्णु

मनाया गया भगवान विष्णु के आस्था का पर्व देवोत्थान एकादशी पतरघट. क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में शनिवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष को एकादशी देवउठनी एकादशी प्रबोधिनी या देवोत्थान एकादशी व्रत मनाये जाने के साथ ही विवाह मुंडन, गृह प्रवेश जैसे शुभ व मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाता है. क्योंकि देवउठनी एकादशी के दिन से ही चतुर्मास समाप्त हो जाता है. जिसके बाद सभी शुभ कार्य शुरू हो जाता है. जो कि इस वर्ष 20 नवंबर के बाद प्रारंभ हो जायेगा. शास्त्रों के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन हीं सृष्टि के पालनहार भगवान श्रीविष्णु चार महीने बाद योग निंद्रा से जागते हैं. इस दिन भगवान शालीग्राम ओर माता तुलसी का विधि-पूर्वक विवाह कराया जाता है तथा विधि विधान के साथ भगवान श्रीविष्णु की पूजा-अर्चना भी की जाती है. इस दौरान चावल के पीसे हुए गीले चौठ व सिंदूर से विभिन्न देवी-देवताओं की आकृति बनाकर एक छोटी सी लकड़ी की चौकी पर शालीग्राम भगवान को रखकर कास से पांच गूंथे हुए चोटियों से ढंककर उठो देवा नमो देवा का उच्चारण किया जाता है. इस दौरान पांच तरह के अनाज, पान, फूल, मिठाई व विभिन्न तरह के प्रसाद व अनाज भी चढ़ाये जाते हैं. जिसके बाद चढ़ाये गये अनाज को अगले दिन ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान घर की सभी महिलाएं दिन भर उपवास रखकर रात में भगवान श्रीविष्णु की विधिवत पूजन के बाद सात्विक आहार ग्रहण करती हैं. देवोत्थान एकादशी पर श्रद्धालुओं की बढ़ी भीड़ व्रत उपासना कर लोगों ने भगवान विष्णु पर व्यक्त की आस्था महिषी. जगत के प्रतिपालक भगवान विष्णु के आस्था का पर्व देवोत्थान एकादशी के दिन मुख्यालय सहित क्षेत्र के सभी प्रसिद्ध मंदिरों में अहले सुबह से श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही. अति प्राचीन सिद्ध शक्तिपीठ उग्रतारा मंदिर, कंदाहा सूर्य मंदिर, नकुचेश्वर महादेव मंदिर, संत शिरोमणि बाबा कारू खिरहर मंदिर, सहरसा-दरभंगा सीमा क्षेत्र के आस्था का केंद्र बच्चेश्वर नाथ महादेव मंदिर पुनाच, बलुआहा शिव मंदिर सहित सभी देवालयों व शिवालयों में हजारों लोगों ने जलाभिषेक व नमन वंदन कर पारिवारिक सुख शांति का आशीर्वाद लिया. अधिकांश घरों की मातृ शक्तियां सहित वृद्ध युवा व किशोर बालक बालिकाओं ने भगवान में आस्था व्यक्त करते निर्जला व्रत उपासना की. कई जगहों पर राम चरित मानस पाठ व भजन कीर्तन से वातावरण भक्तिमय बना रहा.

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