राम प्रेम के बल पर संपूर्ण बाधाओं को किया जा सकता है पारः आचार्य डॉ नवनीत सहरसा सनातन श्री नारायण सेवा संस्थान के तहत कन्या उच्च विद्यालय नलकूप परिसर पूरब बाजार में चल रहे भव्य श्रीराम कथा के सातवें दिन मंगलवार को केवट प्रसंग की अद्भुत व्याख्या की गयी. प्रभु श्रीराम एवं भरत मिलाप के प्रसंग को सुनने के लिए श्रोताओं की खासी भीड़ रही. जब इस प्रंसग को भक्तों ने सुना तो उनकी आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी. व्यास पीठ पर श्रीधाम वृंदावन से आये कथा वाचक रामनयन महाराज ने राम-भरत मिलाप का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि महाराज भरत ने चित्रकूट यात्रा के लिए संपूर्ण अयोध्या वासियों को तैयार कर लिया. राजतिलक की सामग्री को साथ लेकर गुरुदेव की अनुमति से भरत सभी को साथ लेकर भगवान की खोज में चल पड़े. इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि जन्म जन्मांतर से भटके हुए जीव को तब तक परम शांति नहीं मिल सकती, जब तक कि वह भगवान की खोज न करे. मार्ग की अनेक बाधाओं को पार करते हुए भरत चित्रकूट तक पहुंचे. सच्चे साधक के मार्ग में अनेक बाधाएं आती है. लेकिन राम प्रेम के बल पर वह संपूर्ण बाधाओं को पार कर लेता है. भाई-भाई के प्रेम को दर्शन कराने के लिए ही श्रीराम एवं भरत के मिलन का प्रसंग आया. चित्रकूट में भरत व श्रीराम प्रेममयी दशा को देखकर वहां के पत्थर भी पिघलने लगे. भगवान ने भरत के आग्रह को स्वीकार करते हुए चित्रकूट की सभा में उन्हीं को निर्णय करने के लिए कहा तो भरत ने भगवान को वापस अयोध्या लौटने के लिए प्रार्थना की एवं स्वयं मित्रता के वचन को मानकर वनवासी जीवन बिताने का संकल्प लिया. लेकिन भगवान को यह स्वीकार नहीं था. दोनों भाई एक दूसरे के लिए संपत्ति एवं सुखों का त्याग करने के लिए आतुर थे एवं विपत्ति को अपनाना चाहते थे. आज तो भाई-भाई की संपत्ति को हड़पना चाहते हैं. भाई-भाई की विपत्ति को बांटने लगे तो संसार भर के परिवारों की समस्याओं का समाधान हो सकता है. भाई-भाई का प्रेम आज ना जाने कहां चला गया. श्रीराम-भरत के प्रेम से प्रत्येक भाई को भाई से प्रेम का संदेश लेना चाहिए. भरत ने भगवान की चरण पादुकाओं को सिंहासनारूढ़ किया एवं चौदह वर्ष तक उनकी सेवा की, यह भ्रातृत्व प्रेम की पराकाष्ठा है. भरत ने भाई का भाग कभी स्वीकार नहीं किया. बल्कि अपना भाग भी भगवान को देकर सदैव दास बनकर उनकी सेवा करते रहे. भगवान श्रीराम वन में रहकर वनवासी-तपस्वी जीवन व्यतीत करते हैं. लेकिन भरत तो नंदीग्राम में रहकर भी संपूर्ण नियमों का पालन करते हुए भी अयोध्या वासियों का ध्यान भी रखते हैं. व्यास जी ने कहा कि इस प्रकार से भरत का चरित्र राम से बड़ा प्रतीत होता है. संस्थान के मुख्य आचार्य आचार्य डॉ नवनीत कुमार ने बताया कि श्रीराम कथा में भरत मिलाप का प्रसंग अद्भुत एवं अनुपम होता है. भाई से भाई का प्रेम, त्याग तपस्या एवं जीवन के यथार्थ की सीख मिलती है. भरत मिलाप का यह प्रसंग संपूर्ण रामचरितमानस में सबसे लोकप्रिय माना जाता है. इस प्रसंग को सुनने के लिए नलकूप का प्रांगण छोटा पड़ गया. कथा का 27 मार्च को पूर्णाहुति दिवस है एवं 28 मार्च को मूर्ति विसर्जन एवं भंडारा किया जायेगा. वहीं आयोजन समिति सदस्य सागर कुमार नन्हें ने कहा कि महायज्ञ में आये श्रद्धालुओं को यज्ञ, कथा में कोई परेशानी ना हो, इसका विशेष ध्यान रखा जा रहा है. महिला, पुरुष श्रद्धालुओं के बैठने के लिए अलग अलग बैरेकेटिंग की गयी है. जिससे श्रद्धालुओं को कोई परेशानी नहीं हो. महायज्ञ के मुख्य यजमान डॉ प्राणमोहन सिंह एवं धर्मपत्नी डॉ नीलू सिंह के द्वारा विधिवत यज्ञ हवन पूजन किया गया. मुख्य यजमान के साथ निगम पार्षद कामना सिंह, पिंटू सिंह, अरुण सिंह, पप्पू सिंह, विनय कुमार मिश्रा, इशान सिंह सपरिवार एवं अखिल भारतीय विधार्थी परिषद मधेपुरा के डॉ दिलीप दिल, डॉ रंजन यादव,सौरभ यादव, नवनीत सम्राट, दुर्गेश कुमार, अंकित आनंद ने सामूहिक आरती किया. महायज्ञ को सफल बनाने में मुकेश सिंह, प्रशांत सिंह राजू, बुल्लू झा, राजू सिंह, पिंटू भगत टोपी वाला, प्रिंस सिंह, अंकित सिंह, अभिजीत रघुवंशी, मनीष चौपाल, गौरव सिंह, विनीत कुमार, पंडित विवेक झा, समीर कुमार मिठू, ईशान सिंह, राणा चौधरी, रौनक सिंह, मोनू महाकाल, विनय मिश्रा, अभिषेक गुप्ता, बिट्टू गुप्ता, रवि सिंह, ऋषभ झा, गोलू सिंह, रिशु सिंह, गोबिंद पासवान, कपिल यादव, रामप्रवेश साह महादेव, ऋषभ सिंह, बंटी झा सहित अन्य कार्यकर्त्ता दिन रात लगे हैं.
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