33 लाख की लागत से भी प्रमंडलीय अस्पताल नहीं हो पाया रोशन शाम ढलते ही छा जाता है अंधेरा प्रभात खास
सहरसा सिटी : प्रमंडलीय अस्पताल कहा जाने वाला सदर अस्पताल जनप्रतिनिधि व विभागीय लापरवाही से खुद बीमार हो रहा है. अस्पताल को जगमग करने के लिए लगभग 33 लाख की राशि खर्च की गयी. इसके बावजूद परिसर एक हाईमास्ट लैंप के भरोसे ही रोशन हो रहा है.
इतना ही नहीं विभागीय लापरवाही के कारण सदर अस्पताल परिसर अवैध कब्जाधारियों का बसेरा बनता जा रहा है. ऐसी बात नहीं है कि इस बात की जानकारी विभागीय अधिकारी व जिला प्रशासन को नहीं है. मालूम हो कि सदर अस्पताल में सहरसा के अलावे मधेपुरा, सुपौल, खगड़िया सहित अन्य जिलों से लोग इलाज कराने व रेफर होकर आते हैं. उपलब्ध संसाधन के अनुसार मरीजों का इलाज भी बेहतर होता है.
लेकिन सुविधा के अभाव में अस्पताल दिनों दिन बीमार पड़ता चला जा रहा है. 33 लाख से लगा था लाइट प्रमंडलीय अस्पताल कहे जाने वाले सदर अस्पताल को सुंदर व रौशन बनाने के लिए 32 लाख 81 हजार की लागत खर्च की गयी. जानकारी के अनुसार अस्पताल में वायरिंग व मुख्य द्वार से परिसर में लाइट लगाने का कार्य विद्युत कार्यपालक अभियंता, विद्युत कार्य प्रमंडल मुजफ्फरपुर को सौंपा गया था.
एजेंसी को अस्पताल के वार्डों, कार्यालयों व सिविल सर्जन कार्यालय में वायरिंग व परिसर को दुधिया रोशनी से रौशन करवाना था. एजेंसी द्वारा लगभग कार्य पूरा भी किया गया.
इसके बावजूद परिसर दूधिया रोशनी में अब तक नहा नहीं सका. अस्पताल के मुख्य द्वार से परिसर तक गाड़े गये पोल व उन पर लगी लाइट शोभा की वस्तु बनकर रह गयी है. पोल को जंग भी खा चुका है.
असामाजिक तत्वों का जमावड़ा विभागीय अधिकारी की लापरवाही व सुरक्षा की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होने के कारण अस्पताल परिसर असामाजिक तत्वों का अड्डा बनता जा रहा है. अस्पताल परिसर व बाहर स्थित चाय, नाश्ता की दुकान पर असामाजिक तत्व नशा का सेवन कर महिलाओं के साथ छेड़खानी व लोगों के साथ मारपीट से भी बाज नहीं आते हैं.
पूर्व में परिसर व महिला वार्ड में घुस कर महिला के साथ हुई छेड़खानी अखबारों की सुर्खियां बन चुकी है. पीड़ित जब तक इस बात की शिकायत करने अस्पताल स्थित पुलिस कैंप जाते हैं तब तक असामाजिक तत्व अंधेरा का फायदा उठा फरार हो जाते हैं. बिचौलियों का साम्राज्य अस्पताल के आपातकालीन कक्ष से लेकर प्रसव वार्ड तक दलालों का साम्राज्य स्थापित है.
सुबह से लेकर रात तक दलाल खुलेआम घुमते नजर आते हैं. इनका मुख्य काम मरीज व उसके परिजनों को अपने झांसे में लेकर शहर के नामी निजी अस्पतालों में पहुंचाना है. सूत्रों की मानें तो इसके एवज में बंधी-बंधायी रकम के अलावे इलाज में होने वाले पूरे खर्च का कमीशन भी मिलता है. इस कार्य में अस्पताल के कुछ कर्मी भी संलिप्त रहते हैं.
जिसकी जानकारी अस्पताल प्रशासन को भी है. कई बार कर्मी के साथ वार्डों में काम करते दलालों की तसवीर भी प्रकाशित हो चुकी है.कहते हैं
अधिकारी इस बाबत अस्पताल उपाधीक्षक डॉ अनिल कुमार ने कहा कि दलालों पर कार्रवाई के लिये पुलिस व वरीय अधिकारी को लिखा गया है. लाइट के लिए भी विभाग के वरीय अधिकारी को लिखा गया है. अस्पताल परिसर के अंदर व मुख्य द्वार के बाहर लाइट तो लगाया पर उसे रोशन करना भूल गये