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आंखों पर पट्टी बांध धाराप्रवाह किताब पढ़ते हैं बच्चे

आंखों पर पट्टी बांध धाराप्रवाह किताब पढ़ते हैं बच्चे मनन की पाठशाला आंखें बंद कर तसवीर व रंग भी पहचान लते हैं बच्चे, कर लेते हैं पूरे पन्ने को दिमाग में स्कैन सहरसा मुख्यालय. आंखें बंद हैं. फिर भी बच्चे किसी भी किताब को स्पष्ट रूप से पढ़ लते हैं. अंगुली व कलाई की नाड़ी […]

आंखों पर पट्टी बांध धाराप्रवाह किताब पढ़ते हैं बच्चे मनन की पाठशाला आंखें बंद कर तसवीर व रंग भी पहचान लते हैं बच्चे, कर लेते हैं पूरे पन्ने को दिमाग में स्कैन सहरसा मुख्यालय. आंखें बंद हैं. फिर भी बच्चे किसी भी किताब को स्पष्ट रूप से पढ़ लते हैं. अंगुली व कलाई की नाड़ी (नब्ज) के स्पर्श मात्र से बच्चे अंगरेजी व हिंदी में फर्क कर उसे पढ़ लेते हैं. इतना ही नहीं, आंखें पूरी तरह बंद होने के बाद भी ये बच्चे किसी भी किताब या अखबारों की तसवीर की भी पहचान कर लेते हैं. तसवीर या अक्षर में उपयोग किये गये रंगों को भी बता देते हैं. यहां तक कि ये बच्चे डिजीटल स्कैनर की तरह पूरे पन्ने को बंद आंखों से स्कैन कर पूरा पढ़ कर सुना देते हैं. बांखें बंद होने के बाद भी मोबाइल के मैसेज बॉक्स या व्हाट्सएप पर आये मैसेज को पढ़ लेते हैं. यह सब न तो जादू है और न ही हाथ की सफाई, और न ही यह सब गुण किसी खास बच्चों में समाहित नहीं है. बल्कि योग व मनन की चलायी जा रही विशेष कक्षा के सभी बच्चों में यह ज्ञान है. इस कक्षा में पांच से लेकर 15 वर्ष की आयु तक के बच्चे नामांकन ले अपने अंतर्ज्ञान को जागृत कर रहे हैं.—ध्यान व मनन से सक्रिय होता है मस्तिष्कइस कक्षा में बच्चों की ज्ञानेंद्रियों को सक्रिय करने की प्राथमिकता होती है. इसके लिए उनके मस्तिष्क को सुचारु करने की जरूरत होती है. बच्चों को अंतर्ज्ञान की अलौकिक दुनियां से जोड़ने के लिए पहले उन्हें उन्हीं की दुनियां में ले जाया जाता है. बाहर की दुनियां से अलग करने के लिए उन्हें उनके ही पंसंदीदा क्षेत्र से जोड़ा जाता है. चाहे वह माध्यम टीवी का कार्टून शो हो, गीत-संगीत हो या फिर डांस-कॉमेडी का. अगले चरण में उन्हें कुछ सूक्ष्म योगासनों का अभ्यास कराया जाता है. जिससे वे एकाग्रचित हो पाते हैं. फिर ऊं की ध्वनि व प्रतिध्वनि के बीच उन्हें मनन की गहरी दुनियां से जोड़ा जाता है. उसके बाद बच्चे अंतर्ज्ञान से बाहर की दुनियां को भी बखूबी देख लेते हैं. यह विशेष कक्षा न्यू कॉलोनी में चलायी जा रही है. आकाशमार्ग से कमरे में प्रवेशसभी शास्त्रों में ज्ञान प्राप्त करने के बाद शंकराचार्य जब मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ करने मिथिला आए थे. तब मंडन मिश्र बंद कमरे में श्राद्धकर्म कर रहे थे, जहां संयासियों का प्रवेश वर्जित था. काफी देर हो जाने के बाद भी जब मंडन नहीं निकले तो शंकराचार्य योगबल पर आकाश मार्ग से कमरे में प्रवेश कर गये. यहां बच्चों को आत्मज्ञान के प्रशिक्षण के पीछे भी यही तर्क है. प्रशिक्षक नरेश सिंह बताते हैं कि ज्ञानेंद्रियों के पूर्ण सक्रिय होने से बच्चों की मानसिक स्थिति मजबूत होती है. जिससे सामान्य अध्ययन से ही उन्हें विषय बस्तु का ज्ञान हो जाता है. वे आत्मज्ञान से अच्छे-बुरे का फर्क कर लेते हैं. उन्होंने बताया कि 1945 में जापान के हिरोशिमा व नागासाकी में एटम बम गिरने के बाद जब लंबी अवधि तक अपंगता कायम थी और मानव संसाधन का विकास लोप होता जा रहा था. तब डॉ मकोतो शिचिदा ने मेडिटेशन (ध्यान) के माध्यम से ब्रेन को सुपर ब्रेन बनाने का रिसर्च किया और अपार सफलता मिलने के बाद भारत में भी प्रयोग शुरू हुआ. फोटो- मनन 1 व 2- आंखों में पट्टी बांध धाराप्रवाह किताब पढ़ती बच्ची

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