Bihar News: 83 वर्ष का समय गुजर चुका है. बावजूद इसके लोगों की जेहन में स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की कहानियां रची बसी हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुई घटनाओं को याद किया जा रहा है. तभी तो नयी पीढ़ी यह जान अचरज में है कि हमारे पूर्वज कितने वीर थे कि निहत्थे ही अंग्रेजी सेना की बंदूक के आगे खड़े हो जाते थे.
कब क्या हुआ
9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का श्रीगणेश किया और भारतीयों को करो या मरो का नारा दिया, तो शाहाबाद में क्रांति की लहर दौड़ पड़ी. 10 अगस्त 1942 को डेहरी और डेहरी से 16 किलोमीटर दक्षिण तिलौथू (जो उस समय जमींदारी स्टेट हुआ करता था) हाइस्कूल के छात्रों ने स्कूल का बहिष्कार कर दिया था. उस दिन डेहरी शांत रहा, पर तिलौथू के छात्रों ने डाकखाना को जला क्रांति का शुभारंभ कर दिया.
दूसरे दिन 11 अगस्त को अकबरपुर में थाना पर कब्जा कर लिया. 12 अगस्त को अकबरपुर में क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी हुई. इसकी सूचना डेहरी पहुंची, तो क्रांति वीरों की भुजाएं फड़क उठीं. फिर क्या था? 12 अगस्त की रात ऐनिकट में क्रांतिकारियों की मिटिंग हुई. मंत्रणा हुई, हमें भी कुछ करना चाहिए. क्रांति के मशाल की लौ को तेज करना चाहिए. तय हुआ कि डेहरी रेलवे स्टेशन और मालगोदाम पर धावा बोला जाए.
13 अगस्त 1942 को उस समय की औद्योगिक नगरी डालमियानगर में किसानों, मजदूरों व छात्रों का विशाल जन प्रदर्शन हुआ था. जमकर भाषण हुआ. इसके बाद क्रांतिवीरों का हुजूम डेहरी रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ा. क्रांतिवीरों ने पहला हमला रेलवे स्टेशन किया और उसे आग के हवाले कर दिया. स्टेशन का कमरा धू-धूकर जल उठा. इसी बीच कुछ क्रांतिकारी डेहरी मालगोदाम की ओर बढ़े. वहां रखे सामानों को लूट लिया. क्रांतिकारियों को आते देख कर्मचारी भाग खड़े हुए.
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अंग्रेज सिपाही का फोड़ डाला था सिर
इधर, आलम यह था कि तिलौथू और अकबरपुर गयी अंग्रेजी सेना को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां-कहां पहुंचे. पर, डाकखाना और थाना से अधिक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन की घटना ने अंग्रेजों को विचलित कर दिया. 14 अगस्त को अकबरपुर से सीधे अंग्रेजी सेना डेहरी पहुंची. स्वतंत्रता के दीवाने इतने निडर थे कि स्टेशन पर ही जमे हुए थे. निहत्थे क्रांतिवीर और सेना आमने सामने आ डटी.
अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद हो रहा था. इसी बीच अंग्रेजों को देख क्रोधित हुए तत्कालीन कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रामवहन सिंह ने एक अंग्रेज सिपाही के सिर को फोड़ डाला. फिर, क्या था? अंग्रेजों ने जमकर क्रांतिकारियों पर लाठियां चटकायी. कई लोग जख्मी हुए थे. बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हुईं.
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