चुनावी हलचल
———————-बेमौसम हो रही बारिश ने बढा दी नेता जी की मुश्किलें
समस्याओं से त्रस्त पब्लिक के सवालों से वे हो रहे पस्त
पूर्णिया. पिछले दो दिनों से हो रही बारिश ने नेताजी की मुश्किलें बढा दी है. हालांकि तेज हवा और बारिश से मौसम पूरा कूल कूल हो गया है पर नेता जी के चेहरे पर पसीने नजर आ रहे हैं. बारिश ने यदि एक तरफ प्रचार अभियान में बाधा उत्पन्न कर दी है तो दूसरी तरफ जनता के सवालों की बौछार झेलनी पड़ रही है. दरअसल, चुनाव प्रचार में निकले नेता जी समस्याओं से त्रस्त पब्लिक के सवालों के आगे पस्त होने लगे हैं. पब्लिक का सीधा सवाल होता है आपको ही हम वोट क्यों दें… समाज के विकास में आपका क्या योगदान है. कहां गये वे वायदे और उन घोषणाओं का क्या हुआ जो पिछले चुनाव के दौरान किए गये थे. वोटरों के सामने इस तरह के ढेर सवाल हैं पर ताजा सवाल अभी ज्यादा उछाल खा रहा है. नेताजी कुछ बोलना ही चाहते हैं कि पब्लिक की आवाज आती है कि हर बरसात में वे लोग डूबते हैं, ड्रैनेज सिस्टम बहाल नहीं हो सका…आखिर क्यों ? कहते हैं, भला हो नगर निगम का कि वहां के लोग समय पर बड़ा-बड़ा टैंक लगाकर पानी निकाल ले जाते हैं जिससे परेशानी तत्काल खत्म हो जाती है.
सवाल गुलाबबाग को लेकर भी उठता है जो कारोबारियों का बड़ा बसेरा है और यही उपेक्षित और अविकसित रह गया. मंडी के जीर्णोद्धार की योजना आत तक पूरी नहीं हो सकी. हालांकि नेता जी पीछा छुड़ाने का जतन करते हैं पर पब्लिक उन्हें यह कह कर घेरती है कि यह मौका तो उन्हें पांच साल बाद ही मिल पाएगा. पब्लिक के सवालों से कोई हकलाने लगते हैं तो कोई हाथ जोड़े हुए मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाते हैं. मगर, पब्लिक भी अपने जिद पर अड़ी नजर आ रही है. गुलाबबाग मेला ग्राउंड पर पार्क निर्माण की योजना कहां चली गई? खुश्कीबाग फ्लाइओवर की चौड़ाई बढ़ाने के लिए क्या पहल हुई? जनता चौक पर क्यों नहीं बना फ्लाइओवर? सौरा नदी क्यों उपेक्षित पड़ी रह गई, इसके सौन्दर्यीकरण की योजना कहां गुम होकर रह गई? बारिश से कूल कूल हुए मौसम में भी इस तरह के सवालों से चेहरे पर पसीने आ रहे हैं.सवाल फुटपाथ पर दुकान लगा गुजर बसर करने वालों का भी है. अतिक्रमण हटाने के नाम पर चलने वाला प्रशासन का डंडा और बारिश में विस्थापन के दर्द की दवा वे नेता जी से मांग रहे हैं. वे जानना चाहते हैं कि 2009 में बनी पुनर्वास की योजना पर आज तक अमल क्यों नहीं हो सका ? फुटपाथी दुकानदारों का कहना है कि 2009 में बेकार पड़ी सरकारी जमीन पर किश्तों में बसाए जाने की घोषणा की गई थी. कलुआ मोची भी आज चूकना नहीं चाहता. अपनी बात वह कह डालता है. नेता जी, जब जब आप अपनी राजनीति के लिए सड़क जाम और बंद कराते हैं तब तब फुटपाथ पर सजने वाली हमारी दुकानदारी चौपट हो जाती है. उस दिन भूखे पेट रहने की नौबत आ जाती है. वह पूछता है कि जब गरीबों को निवाला दे नहीं सकते तो छीनते क्यों हैं ? जैसे जैसे भीड़ बढती है , सवालों की फेहरिस्त भी लंबी होती जाती है. नेता जी उन्हें समझाने की एक कोशिश और करते हैं और हाथ हिलाते हुए अगले पड़ाव की ओर बढ जाते हैं.
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