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पटना में भीख मांगने वाली 43 भिक्षुक महिलाओं को मिला रोजगार, अब ऑर्डर पर बना रही खाना

शांति कुटीर पुनर्वास केंद्र में महिलाओं की इच्छा अनुसार कौशल रोजगार की ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, जूट का बैग बनाना, खाना बनाना आदि शामिल है. पिछले सालों में केंद्र में रहने वाली 28 महिलाएं रोजगार से जुड़ी हैं, वहीं 15 से ज्यादा महिलाएं दूसरे शहर या राज्यों में रोजगार कर रही हैं

जूही स्मिता, पटना: वे महिलाएं, जो कभी मंदिर, रेलवे स्टेशन, चौराहों आदि जगहों पर भीख मांगती थीं, अब शांति कुटीर महिला पुनर्वास केंद्र की सहायता से उन्हें रोजगार मिला है. इस केंद्र का संचालन मुख्यमंत्री भिक्षा निवारण योजना के तहत सक्षम समाज कल्याण विभाग की ओर से वित्त पोषित और स्वयंसेवी संस्था यमना की ओर से किया जाता है. यहां पर महिला भिक्षुओं को फिर से रोजमर्रा के जीवन से जोड़ने के लिए आवास, भोजन, स्वास्थ्य, कपड़ा की सुविधा के साथ कौशल रोजगार से जोड़ने के लिए ट्रेनिंग दी जा रही है. इसी के तहत साल 2021 में एसोशिएशन ऑफ पर्सन (एओपी) की शुरुआत की गयी. इसमें महिलाओं का समूह ऑर्डर पर खाने की चीजें बनाने का कार्य करता है. इस कार्य के लिए सभी महिलाओं के एकाउंट में पैसे ट्रांसफर किये जाते हैं.

पिछले पांच सालों में केंद्र में 43 महिलाएं रोजगार से जुड़ीं

शांति कुटीर की सीइओ राखी शर्मा बताती हैं कि यहां पर महिलाओं की इच्छा के अनुसार कौशल रोजगार की ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, जूट का बैग बनाना, खाना बनाना आदि शामिल है. पिछले सालों में केंद्र में रहने वाली 28 महिलाएं रोजगार से जुड़ी हैं, वहीं 15 से ज्यादा महिलाएं दूसरे शहर या राज्यों में रोजगार कर रही हैं. केंद्र की ओर से इन महिलाओं का छह महीने से लेकर एक साल तक फॉलोअप किया जाता है.

हुनर को निखारने के लिए दी जाती है ट्रेनिंग

राखी शर्मा बताती हैं कि छह महिलाएं नाजमिन खातून, नीलू देवी, सुगंधा, जया भारती और इंदु गुड़िया का समूह खाना बनाता है. इसमें वे विभिन्न होम्स के लिए रोटियां, क्लब और हॉस्पिटल्स से मिले ऑर्डर को तैयार करती हैं. इनमें सैंडविच, बर्गर और मील शामिल होते हैं. इस दौरान हाइजीन का खास ख्याल रखा जाता है. असिस्टेंट डायरेक्टर सोशल सिक्योरिटी स्नेहा बताती हैं कि एओपी की शुरुआत के बाद से कई महिलाएं इससे धीरे-धीरे जुड़ कर काम कर खुद को मुख्यधारा से जोड़ने की राह पर हैं.

इन्हें पुनर्वास केंद्र से जोड़ने में लगता है समय

काउंसेलर श्वेता बताती हैं कि यहां पर रहनेवाली महिलाएं जिस वक्त यहां आती हैं, इनकी मानसिक स्थिति आम लोगों से बिल्कुल अलग होती है. ऐसे में पहले इनकी काउंसेलिंग होती है. इस दौरान महिलाएं अपने घर-परिवार के बारे में बताती हैं. इनसे हम संपर्क करते हैं कुछ उन्हें साथ ले जाते हैं, जिनकी मॉनीटरिंग हम करते हैं और कई बार महिलाएं जाना नहीं चाहती हैं. समय-समय पर इनका चेकअप होता है और इन्हें ट्रेनिंग दी जाती है.

क्या कहती हैं महिलाएं

  • कुक व ट्रेनर सुषमा श्रीवास्तव : मूल रूप से मोतिहारी से हूं. दिव्यांग हूं और मां के निधन के बाद भाईयों ने मुझे छोड़ दिया. इसके बाद साल 2017 तक महावीर मंदिर के पास भिक्षा मांगती थी. दीदी के समझाने पर यहां केंद्र में आयी. मैं यहां पर हेड कुक के तौर पर काम करती हूं और एओपी के तहत महिलाओं को ट्रेनिंग देती हूं.

  • एओपी सदस्य इंदु गुड़िया : भिक्षावृत्ति से यहां तक आना आसान नहीं था. मुझे खाना बनाना अच्छा लगता है और ट्रेनिंग के बाद लिट्टी, सैंडविच, बर्गर और खाना ऑर्डर पर तैयार करती हूं. बैंक के खाते में जमा पैसे से अपना खुद का घर लेना चाहती हूं.

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