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Friday, March 29, 2024

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नालंदा में जंगली फल खाने से 18 छात्र बीमार, गंभीर हालत में सभी को कराया गया अस्पताल में भर्ती

नालंदा में जंगली फल खाने से 18 छात्र बीमार है. चिकित्सकों के अनुसार सभी बीमार बच्चों को उल्टी और बेहोशी की शिकायत है. सभी स्कूली बच्चे खतरे से बाहर बताये जा रहे हैं. इन बीमार बच्चों की उम्र छह से 11 वर्ष के बीच हैं.

नालंदा. बिहार के नालंदा जिले के परवपलुर थाना क्षेत्र के बाणा बिगहा प्राथमिक विद्यालय के 18 स्कूली बच्चे एक जंगली पेड़ के फल खाने से बीमार हो गये. ये बच्चे बाणा बिगहा मुसहरी टोला के बताये जा रहे हैं. सभी बीमार बच्चों का इलाज परलवपुर के अलग-अलग कई निजी क्लिनिकों में चल रहा है. चिकित्सकों के अनुसार सभी बीमार बच्चों को उल्टी और बेहोशी की शिकायत है. सभी स्कूली बच्चे खतरे से बाहर बताये जा रहे हैं. इन बीमार बच्चों की उम्र छह से 11 वर्ष के बीच हैं. पीड़ित बच्चों में सुनंता कुमारी, टिंकू कुमार, सौरभ कुमार, आयुष कुमारी, रितेश कुमार, पायल कुमारी, ज्योति कुमारी, राधा कुमारी, गोपाल कुमार, शिवम कुमार, धीरज कुमार व अन्य शामिल हैं. कुछ परिजनों का कहना है कि मध्याहन भोजन के बाद उनके बच्चे बीमार होने लगे हैं.

छह से 11 वर्ष के हैं सभी स्कूली बच्चे

प्राथमिक विद्यालय बाणाबिगहा की प्रधानाध्यापिका सरिता कुमारी ने बताया कि मंगलवार को दोपहर एक बजे मध्याह्न भेाजन करने के बाद पास के झाड़ीनुमा पेड़ के किसी तरह के फल खाया है. इसके बाद ये बच्चे उल्टी करते हुए अचेता अवस्था में आने लगे. इसकी सूचना मिलते ही मुख्य पार्षद रामवृक्ष यादव पीड़ित बच्चों को इलाज की व्यवस्था में जुट गये. मुख्य पार्षद ने स्थिति को गंभीरता को देखते हुए अपने स्तर से सभी बीमार बच्चों को निजी क्लिनिक में भर्ती करवाया. प्रशासनिक अधिकारी व आसपास के लोगों ने बताया कि स्कूल में लंच के अवकाश के दौरान कुछ बच्चे रंग-बिरंग जंगली फल खाने लगे थे.

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बच्चों में उल्टी और बेहोशी की शिकायत

जंगली फल खाने वाले बच्चों में उल्टी और बेहोशी की शिकायत आने लगी. उल्टी होते देख कुछ बच्चे रोने और चिल्लाने लगे. इसे सुन कर स्कूल की शिक्षिका और प्रधानाध्यापिका आये और बच्चों की स्थिति की जानकारी लेने शुरू की. आनन-फानन में स्थानीय लोगों के सहयोग से बीमार बच्चों को निजी क्लिनिक तक पहुंचाया गया. करीब एक घंटा होते होते सभी बच्चों को इलाज शुरू हो गया. डॉक्टरों का कहना है कि समय रहते इलाज शुरू होने के कारण बच्चों के शरीर में विष फैलाने से बच गया.

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