भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मॉक ड्रिल और ब्लैकआउट एक्सरसाइज किया गया. ये एक्सरसाइज संभावित हवाई हमलों व इमरजेंसी हालातों से निपटने की तैयारी के उद्देश्य से किए जाते हैं. पटना में भी 54 साल बाद फिर से ब्लैकआउट एक्सरसाइज हुआ. पटना के सीनियर सिटीजनों ने बताया कि 1971 की लड़ाई के समय जब ब्लैकआउट होता था तब कैसे हालात बनते थे.
जब सैनिकों की ट्रेन गुजरती थी, तो लोग घर से खाने का सामान और पानी लेकर दौड़ पड़ते थे.
पटना यूनिवर्सिटी में प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रो. मदन मोहन सिंह बताते हैं कि- ” 1962, 1965 और 1971 की लड़ाई का मैं गवाह रहा हूं. उस समय लोगों के अंदर देशभक्ति की भावना बहुत प्रबल थी. मेरा घर राजेंद्र नगर में रेललाइन के किनारे था. जब सैनिकों की ट्रेन गुजरती थी, तो लोग घर से खाने का सामान और पानी लेकर दौड़ पड़ते थे.
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1971 में ब्लैकआउट की कहानी, पटना वाले खिड़की पर साटते थे कागज
प्रो. मदन मोहन सिंह ने बताया कि तब हमलोग फ्रंट पर लड़ तो नहीं सकते थे, लेकिन सैनिकों की सेवा और आवश्यकता पड़ने पर गली मुहल्लों में पहरा देते थे. यानी सैनिकों के साथ आम जनता भी सैन्य भावना से भर गयी थी. 1971 की लड़ाई के समय जब ब्लैक आउट होता था, तो उस समय हमलोगों ने घर की खिड़कियों पर कागज साट दिया था, ताकि रोशनी बाहर नही जा सके. युद्ध का हाल जानने के लिए हम लोग रेडियो पर कान लगाये रहते थे.
जैसे ही सायरन बजता, हम तुरंत खिड़की-दरवाजे बंद कर देते थे
पटना जैन संघ के अध्यक्ष प्रदीप जैन बताते हैं- ”1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान मैं पटना में था. हमारा घर मीठापुर स्थित जैन मंदिर के पास था. उस समय मैं अपने माता-पिता और दो भाइयों के साथ वहीं रहता था. युद्ध के कारण शहर में ब्लैकआउट की व्यवस्था की गयी थी. रात होते ही जैसे ही सायरन बजता, हम तुरंत खिड़की-दरवाजे बंद कर देते थे. उस समय मैं मिलर हाइस्कूल में 10वीं कक्षा का छात्र था. चारो ओर भय और अनिश्चितता का माहौल था. रेडियो पर समाचार सुनकर ही हालात की जानकारी मिलती थी. भारत और पाकिस्तान के बीच कड़ा संघर्ष चल रहा था और लोग किसी भी स्थिति के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की कोशिश कर रहे थे. वह समय देशभक्ति, भय और सामूहिक चेतना का अद्वितीय अनुभव था, जो आज भी स्मृति मे जीवंत है.”