Independence Day 2025: देशभर में स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाया जा रहा है. बिहार की बात करें तो आजादी के 79 साल बाद बिहटा की धरती पर शहीद हुए चार गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी सामने आई है. बिहार राज्य अभिलेखागार में सुरक्षित 13 फरवरी 1953 की बिहार स्पेशल ब्रांच, सीआईडी रिपोर्ट के अनुसार, 1942 के अगस्त क्रांति आंदोलन में बिहटा के चार क्रांतिकारी शहीद हुए थे जो आज गुमनाम है.
ये सभी क्रांतिकारी हुए थे शहीद…
इनमें बिहटा के गोपाल साह (पिता- रामसेवक साह), कैलाश राउत (पिता- देवलाल राउत, खेदलपुरा), देव लाल साह (पिता- जित्तो साह, अखगांव, थाना संदेश, भोजपुर) और गोपाल साह (पिता- रामगोबिंद साह, सदिसोपुर) ने प्राणों की आहुति दी थी.
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की कहानी
सदिसोपुर निवासी पत्रकार और शहीदों के वंशज दीपक गुप्ता बताते हैं कि 11 अगस्त 1942 को चारों क्रांतिकारी राघोपुर से सरकारी प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाते हुए बिहटा पहुंचे. यहां उन्होंने रेलवे स्टेशन और प्रखंड कार्यालय के पास तोड़फोड़ की और तार सेवा को नष्ट कर दिया. इस दौरान मुखबिरों की सूचना पर अंग्रेजी सेना का दस्ता क्रांतिकारियों को दबाते हुए दानापुर छावनी से बिहटा आया और पहले से एक मालगाड़ी को रोककर लूटपाट कर रहे क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश सेना ने गोलियां बरसा दीं, जिसमें तीन वीर मौके पर शहीद हो गए.
सदिसोपुर में गोपाल साह की हत्या
वहीं, सदिसोपुर के गोपाल साह ने एक अंग्रेज सैनिक की हत्या कर दी और भाग निकले लेकिन पीछा करते अंग्रेज सैनिकों ने सदिसोपुर देवी स्थान के पास उन्हें भी गोलियों से छलनी कर दिया.
अब प्रशासन से की जा रही ये मांग
इतिहास के पन्नों में दबे इन गुमनाम नायकों की शहादत को आज फिर याद किया जा रहा है. स्थानीय लोगों और शहीदों के वंशजों ने प्रशासन से मांग की है कि उनके नाम प्रखंड परिसर स्थित शहीद पट्टिका पर अंकित किए जाएं, ताकि आने वाली पीढ़ियां इन वीरों की गाथा से प्रेरणा ले सकें.
(बिहटा से मोनु कुमार मिश्रा की रिपोर्ट)

