Exam Attendance Rule: शुक्रवार को पटना हाइकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि 75% से कम उपस्थिति वाले छात्र परीक्षा में नहीं बैठ सकते. यह निर्णय बेगूसराय के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर इंजीनियरिंग कॉलेज और दरभंगा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के दो छात्रों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया.
न्यायालय ने छात्रों की अपील खारिज करते हुए कहा कि उपस्थिति नियम वैधानिक और बाध्यकारी है और इसे दरकिनार करने की अनुमति किसी विश्वविद्यालय या अदालत को नहीं है.
मामला क्या था?
याचिकाकर्ता छात्रों—शुभम कुमार और शशिकेश कुमार—का तर्क था कि उन्हें परीक्षा फॉर्म भरने से रोक दिया गया है क्योंकि उनकी उपस्थिति 75% से कम थी. उनका कहना था कि अन्य छात्रों को भी कम उपस्थिति के बावजूद परीक्षा में बैठने दिया गया, इसलिए उनके साथ भेदभाव हुआ.
लेकिन कोर्ट ने रिकॉर्ड देखने के बाद पाया कि दोनों छात्रों की उपस्थिति 50% से भी कम थी. कई बार नोटिस और अवसर दिए जाने के बावजूद वे कक्षाओं में उपस्थित नहीं हुए. ऐसे में न्यायालय ने उनकी दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
समान मानदंड सभी पर लागू
न्यायमूर्ति पी.बी. बजन्थरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिन्हा की खंडपीठ ने कहा कि उपस्थिति का मानदंड सभी छात्रों पर समान रूप से लागू होता है. यदि किसी छात्र को राहत दी जाए तो यह अनुच्छेद 14 के सिद्धांतों के खिलाफ होगा, क्योंकि नकारात्मक समानता की अनुमति संविधान नहीं देता.
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि फीस जमा करना और पाठ्यक्रम में नामांकन जारी रखना परीक्षा देने का निहित अधिकार नहीं देता. यदि कोई छात्र उपस्थिति की शर्त पूरी नहीं करता, तो वह परीक्षा से वंचित रहेगा.
अदालत का कड़ा संदेश
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज के अधिकारी के पास उपस्थिति नियम में छूट देने का अधिकार नहीं है. अदालतें भी विश्वविद्यालयों को मजबूर नहीं कर सकतीं कि वे उपस्थिति की कमी को माफ करें.
न्यायालय ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पुराने निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि सहानुभूति के आधार पर वैधानिक नियमों को बदला नहीं जा सकता. यानी, भले ही किसी छात्र को बीमारी या अन्य व्यक्तिगत कारणों से कक्षा में उपस्थित होना संभव न रहा हो, फिर भी वह परीक्षा देने का अधिकार हासिल नहीं करता.
बीमारी का हवाला भी नहीं चला
शशिकेश कुमार ने अदालत में तर्क दिया कि वह पीलिया से पीड़ित रहे और इस वजह से कक्षा में उपस्थित नहीं हो सके. उन्होंने अपने इलाज के मेडिकल दस्तावेज भी पेश किए.
लेकिन कोर्ट ने यह दलील खारिज करते हुए कहा कि बीमारी जैसी परिस्थितियां संवेदनशील हो सकती हैं, लेकिन इससे उपस्थिति नियम को दरकिनार नहीं किया जा सकता. यह नियम सभी छात्रों पर समान रूप से लागू होता है और किसी को भी विशेष छूट नहीं दी जा सकती.
शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन की जरूरत
पटना हाइकोर्ट का यह फैसला शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. अक्सर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में देखा जाता है कि छात्र उपस्थिति को गंभीरता से नहीं लेते और परीक्षा के समय राहत की उम्मीद करते हैं. लेकिन इस फैसले ने साफ कर दिया कि कक्षा में नियमित उपस्थित रहना अब अनिवार्य है.
इस फैसले ने छात्रों को भी एक सख्त संदेश दिया है—कि यदि वे अपनी पढ़ाई को गंभीरता से लेना चाहते हैं, तो कक्षा में उपस्थिति सुनिश्चित करनी होगी. सिर्फ फीस जमा कर देने या नामांकन कराने भर से परीक्षा का अधिकार नहीं मिलता.
शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला छात्रों में अनुशासन और नियमित पढ़ाई की आदत को बढ़ावा देगा/
क्यों जरूरी है 75% उपस्थिति का नियम?
शिक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक 75% उपस्थिति का नियम छात्रों को कक्षा में नियमित बनाए रखने के लिए है. इससे न केवल पढ़ाई में निरंतरता बनी रहती है, बल्कि छात्र-शिक्षक संवाद भी बेहतर होता है.
इसके अलावा यह नियम उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुनिश्चित करने और छात्रों को केवल परीक्षा-केन्द्रित तैयारी से बाहर निकालने का प्रयास है. अदालत ने भी अपने फैसले में इसी पहलू को मजबूत करने पर जोर दिया.

