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Bihar News: महागठबंधन में ‘दोस्ताना संघर्ष’ बना घातक, 11 सीटों पर अंदरूनी फूट से NDA को मिली भारी जीत

Bihar News: जब महागठबंधन के दल अपने ही साथियों से ताल ठोकने उतरे, तो सबसे बड़ा फायदा विपक्ष को नहीं, बल्कि एनडीए को मिला. नतीजा—11 में 11 सीटें हाथ से गईं और वोटों का गणित साफ दिखा गया कि एकता ही जीत की असली कुंजी थी.

Bihar News: बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन भले बड़े दावे करता रहा, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट दिखी. पांच बड़े सहयोगी दलों राजद, कांग्रेस, माकपा, भाकपा और वीआईपी के बीच सीटों की खींचतान ने गठबंधन की एकजुटता को कमजोर किया. नतीजा यह हुआ कि 11 सीटों पर महागठबंधन के ही उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते नजर आए. इस दोस्ताना संघर्ष का सीधा असर परिणामों पर पड़ा और सभी 11 सीटें एनडीए के खाते में चली गईं. मतदान आंकड़े साफ बताते हैं कि यदि महागठबंधन एकजुट होकर मैदान में उतरता, तो कई सीटों पर मुकाबला बिल्कुल अलग होता.

महागठबंधन की अंदरूनी फूट इस चुनाव की सबसे बड़ी राजनीतिक कहानी बनकर उभरी है. बेगूसराय की बछवाड़ा से लेकर नालंदा की बिहारशरीफ, रोहतास की करगहर, भागलपुर की कहलगांव,सुल्तानगंज, जमुई की सिकंदरा और पश्चिम चंपारण की नरकटियागंज तक हर जगह एक ही तस्वीर उभरी. महागठबंधन के घटक दल एक-दूसरे के वोट बैंक पर चोट कर रहे थे और भाजपा-जदयू जैसे एनडीए घटक आराम से जीत की दूरी तय कर रहे थे.

बछवाड़ा- जहां वोटों ने सारी सच्चाई बयान कर दी

बछवाड़ा सीट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. भाजपा ने यहां 15,841 वोट के अंतर से जीत दर्ज की. कांग्रेस को 84,502 वोट मिले, भाकपा को 21,588. दोनों को जोड़ दें तो यह संख्या भाजपा से कहीं अधिक होती. लेकिन महागठबंधन के भीतर समन्वय की कमी ने एक सुरक्षित दिखने वाली सीट को एनडीए की झोली में डाल दिया.

बिहारशरीफ में भी दो नाव पर सवार महागठबंधन

नालंदा के बिहारशरीफ में भी कांग्रेस और भाकपा आमने-सामने थीं. भाजपा ने 1,09,304 वोट पाकर 29,168 के अंतर से जीत ली. कांग्रेस को 80,136 और भाकपा को 2736 वोट मिले. दोनों का संयुक्त वोट बीजेपी के बहुत करीब पहुंचता, जिससे मुकाबला कांटे का हो सकता था.

कहलगांव और सुल्तानगंज- जहां राजद और कांग्रेस ने एक-दूसरे को काटा

भागलपुर की कहलगांव सीट पर जदयू ने 50,112 वोट के भारी अंतर से जीत दर्ज की. राजद को 80,655 मिलें और कांग्रेस को 10,083. साथ लड़ते तो मुकाबला बेहद कड़ा होता. यही कहानी सुल्तानगंज में भी दोहराई गई, जहां जदयू ने 1,08,712 वोट के साथ आराम से जीत हासिल की. राजद और कांग्रेस ने यहां भी एक-दूसरे की संभावनाओं को कम कर दिया.

करगहर में कांग्रेस-भाकपा की भिड़ंत और जदयू की जीत

रोहतास के करगहर में भी महागठबंधन की दो पार्टियों ने एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोकी. कांग्रेस को 39,333 और भाकपा को 2362 वोट मिले. जदयू ने 92,485 वोट के साथ बड़ी जीत हासिल की. यदि महागठबंधन एकजुट होता, तो स्थिति बदल सकती थी.

चैनपुर और बेलदौर-वीआइपी और आइआइपी भी बने रुकावट

कैमूर के चैनपुर में राजद और वीआईपी दोनों के उतारने से जदयू ने 8362 वोट से जीत ली. खगड़िया के बेलदौर में कांग्रेस और इंडियन इक्लूसिव पार्टी के उम्मीदवारों ने जदयू की जीत को आसान बना दिया. कांग्रेस को 71,087 और आइआइपी को 9188 वोट मिले, जबकि जदयू ने 1,06,262 वोट पाकर 35,175 के अंतर से जीत दर्ज की.

सिकंदरा और नरकटियागंज- दोहरी दावेदारी और तय हार

जमुई की सिकंदरा सीट पर हम पार्टी ने 91,603 वोट पाकर 23,907 के अंतर से जीत ली. यहां राजद और कांग्रेस दोनों आमने-सामने थे. राजद को 67,696 और कांग्रेस को सिर्फ 1803 वोट मिले.

नरकटियागंज में बीजेपी ने 26,458 वोट के अंतर से जीत हासिल की. राजद को 73,586 और कांग्रेस को 5388 वोट मिले. यह भी एक ऐसा समीकरण था, जहां एकता की कमी ने चुनाव को पूरी तरह बीजेपी के पक्ष में मोड़ दिया.

वैशाली और राजापाकड़- विभाजन ही हार का आधार

वैशाली सीट पर जदयू ने 1,08,377 वोट प्राप्त कर 32,590 से जीत ली. राजद ने 75,787 और कांग्रेस ने 20,395 वोट हासिल किए. दोनों का संयुक्त वोट जदयू की बराबरी कर सकता था.

इसी जिले की राजापाकड़ सीट पर कांग्रेस और भाकपा दोनों मैदान में थे. जदयू ने 96,258 वोट लेकर आसानी से जीत हासिल की.

दोस्ताना संघर्ष ने महागठबंधन को किया कमजोर

इन 11 सीटों के परिणाम एक बात को स्पष्ट कर देते हैं, महागठबंधन के अंदर सीट बंटवारे का फॉर्मूला बेहद कमजोर था. कई सीटों पर उम्मीदवारों का चयन बिना समन्वय और बूथ-स्तरीय क्षमता को समझे किया गया और एनडीए ने इसका लाभ उठाया.

राजद सबसे बड़ा दल होने के बावजूद अपने सहयोगियों को संतुष्ट करने में सफल नहीं हुआ. कांग्रेस ने भी कई जगह जिद में सीट पर दावा ठोका. वामदलों के साथ-साथ वीआईपी और आइआइपी जैसे छोटे दल भी इस टूट का हिस्सा बने. इसका परिणाम यह हुआ कि महागठबंधन ने सभी 11 सीटें गंवा दीं और कुछ तो बहुत बड़े अंतर से.

यदि महागठबंधन इन सीटों पर एकजुट होकर चुनाव लड़ता, तो कम-से-कम 6 से 7 सीटों का परिणाम पूरी तरह बदल सकता था. महागठबंधन ने एकता की बजाय आपसी प्रतिस्पर्धा चुनी और इसके साथ ही अपनी 11 सीटें एनडीए के पक्ष में लिख दीं.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर. लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया में पीएच.डी. . वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं.

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