Bihar News:राजधानी पटना में औषधि नियंत्रक प्रशासन की कार्रवाई ने नकली दवा कारोबार की परतें खोल दी हैं. महज छह महीने में करोड़ों रुपये की नकली दवा बाजार में बेची गई. दवा दुकानों से लिए गए 38 सैंपल फेल पाए गए. इनमें से कई दवाओं में जरूरी सॉल्ट तक नहीं थे, बल्कि उनकी जगह पाउडर भरकर मरीजों को परोसा गया.
जांच में सामने आया है कि यह गोरखधंधा वर्षों से चल रहा था और राजधानी के गोविंद मित्रा रोड से लेकर परसा बाजार तक फैला हुआ था.
नामी दवाओं में भी निकला पाउडर, राहत के बजाय खतरा
औषधि नियंत्रक विभाग की टीम ने हाल ही में राजधानी पटना के थोक दवा बाजार और आसपास के क्षेत्रों में छापेमारी की. इस दौरान 16 दुकानों से दवाओं के नमूने लिए गए. जांच रिपोर्ट आने के बाद सच सामने आया कि 38 दवाएं मानक पर खरी नहीं उतरीं. इन दवाओं में ऐसे साल्ट तक नहीं मिले, जो मरीजों को बीमारी से राहत पहुंचाते. विभागीय अधिकारियों के अनुसार कई दवाओं में सौ फीसदी पाउडर भरा गया था. यानी मरीज जिस भरोसे से दवा खा रहे थे, वह सिर्फ झांसा निकला.
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि कई नामी दवाएं भी इस जालसाजी का हिस्सा थीं. दर्द, बुखार, सर्दी-जुकाम, बीपी और शुगर की दवाओं के साथ-साथ एंटीबायोटिक तक नकली निकलीं. टेक्सिम और स्पैक्सिम जैसी दवाएं पाउडर से तैयार की गईं. डॉक्टरों द्वारा गंभीर मरीजों को लिखी जाने वाली डेक्सामेथासोन इंजेक्शन और एंटी-एलर्जिक जेंटामाइसिन भी नकली पाए गए. जांच में यह भी खुलासा हुआ कि इन दवाओं में 72 फीसदी तक पाउडर भरा हुआ था.
दोषी कंपनी व दुकानदारों पर मुकदमा दर्ज
परसा बाजार के कुरथौल इलाके में बनी एक कंपनी नकली दवा निर्माण में संलिप्त पाई गई. यहां से डेक्सामेथासोन, जेंटामाइसिन, वारमोलिन और अन्य इंजेक्शन जब्त किए गए. प्रारंभिक जांच से पता चला कि कंपनी से दवाओं की खरीद बहुत कम हो रही थी, लेकिन बाजार में बिक्री काफी ज्यादा थी. इस विसंगति ने अन्य कंपनियों को शक में डाला और फिर मामला उजागर हुआ.
ड्रग कंट्रोलर नित्यानंद क्रिशलय की देखरेख में गठित टीम ने दुकानों के लाइसेंस भी रद्द कर दिए हैं. अब तक 16 दुकानों का लाइसेंस रद्द किया जा चुका है. वहीं, दोषी पाई गई कंपनी और दुकानदारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. विभाग का कहना है कि नकली दवाओं के खिलाफ अभियान लगातार जारी रहेगा.
वर्षों से सक्रिय था नेटवर्क
इस गोरखधंधे में सबसे बड़ा नुकसान उन मरीजों का हुआ, जिन्होंने सही इलाज की उम्मीद में ये दवाएं खरीदीं. नकली दवाओं के सेवन से न तो बीमारी में राहत मिली और न ही उनका स्वास्थ्य सुधरा. बल्कि कई मामलों में मरीजों की स्थिति और बिगड़ गई. महज 10 रुपये की नकली दवा 100 रुपये तक बेची जा रही थी, जिससे कारोबारी करोड़ों कमा रहे थे.
जांच एजेंसियों का अनुमान है कि यह खेल केवल पटना तक सीमित नहीं था. नकली दवाएं बिहार के कई जिलों में सप्लाई की जा रही थीं. शुरुआती स्तर पर ही जांच में सामने आया है कि यह नेटवर्क वर्षों से सक्रिय था.
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