बिहार में बाल विवाह और किशोरावस्था में गर्भावस्था को कम करने के विषय पर वर्कशॉप का आयोजन
संवाददाता, पटनाचाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (सीएनएलयू) के जेंडर रिसर्च सेंटर और यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड के सहयोग से ‘बिहार में बाल विवाह और किशोरावस्था में गर्भावस्था को कम करने’ विषय पर वर्कशॉप का आयोजन एक होटल में हुआ. कार्यक्रम में बताया गया कि बिहार एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाला राज्य है, फिर भी राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि यहां देश में सबसे अधिक बाल विवाह की दर है. 40.8 प्रतिशत महिलाएं 18 वर्ष की उम्र से पहले ही शादीशुदा हो जाती है. इसके साथ ही, किशोरावस्था में गर्वावस्था भी एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है. जहां 15 से 19 वर्ष की 11 प्रतिशत लड़कियां या तो पहले से मां बन चुकी हैं या पहली बार गर्भवती हैं. कार्यक्रम का उद्घाटन सीएनएलयू-जीआरसी के प्रमुख डॉ आयुषी दुबे ने स्वागत भाषण के साथ किया, जिसमें उन्होंने बाल विवाह, किशोर गर्भधारण और जेंडर जस्टिस जैसे गंभीर मुद्दों की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने बताया कि बिहार की लड़कियां अब भी सामाजिक-अर्थिक लक्ष्यों से वंचित हैं. हमें शिक्षा, अधिकार और सेवाओं में निवेश बढ़ाने की जरूरत है. बंदना प्रेयसी (सचिव, समाज कल्याण विभाग) ने विभागीय योजनाओं और समुदाय-स्तर की भागीदारी की अहमियत पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि नीतियों की सफलता तभी संभव है जब समुदायों और किशोरियों को साथ लेकर काम किया जाये.11% लड़कियां 15-19 की उम्र में होती हैं गर्भवती
सीएनएलयू के कुलपति प्रो फैजान मुस्तफा ने बालिकाओं के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों पर बल देते हुए कहा कि हमें कानून बनाने के साथ-साथ उसके क्रियान्वयन पर भी विशेष ध्यान देना होगा. डेविड केन (स्वास्थ्य अधिकारी, यूएनएफपीए) ने एनएफएचएस-5 के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि बिहार में 40.8% लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है और 11% लड़कियां 15-19 की उम्र में गर्भवती हो जाती हैं और मां बन चुकी या पहली बार गर्भवती होती हैं. ये आंकड़े चिंता का विषय हैं. डॉ ख्वाजा इफ्तिखार अहमद (संस्थापक अध्यक्ष, इंटरफेथ हार्मनी फाउंडेशन) ने कहा कि किशोरावस्था और गर्भावस्था सिर्फ स्वास्थ्य मुद्दा नहीं है, यह मौलिक अधिकारों और मानव गरिमा से जुड़ा विषय है. प्रो एजाज मसिह (प्रमुख, शैक्षणिक अध्ययन विभाग, जमिया मिल्लिया इस्लामिया) ने कहा कि युवाओं में जागरूकता, भावनात्मक समझ और समावेशी शिक्षा के माध्यम से ही बाल विवाह पर लगाम लगायी जा सकती है. सादत नूर (राज्य प्रमुख,यूएनएफपीए) ने सरकार और समाज के सहयोग को निर्णायक बताया और कहा कि यह सिर्फ सरकारी पहल नहीं, बल्कि एक साझा दायित्व है. कार्यक्रम के दौरान संजय कुमार की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय पैनल चर्चा आयोजित की गयी, जिसमें गुलरेज होदा, डॉ ख्वाजा इफ्तिखार अहमद, अनुराग बेहर, मेरी थॉमस, जेरियस लिंगो और दिव्या मुकुंद ने भाग लिया. कार्यक्रम का समापन सीएनएलयू जीआरसी के समन्वयक डॉ चंदन द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ. उन्होंने कहा कि यह वर्कशॉप केवल संवाद नहीं, बल्कि नीति-निर्माण के लिए ठोस कदम की शुरुआत है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है