Bihar Flood: बिहार के सोनपुर स्थित सबलपुर दियारा का इलाका इन दिनों गंगा नदी के भीषण कटाव की मार झेल रहा है. नौघरवा पंचायत के पश्चिमी हिस्से में नदी का कहर इतना बढ़ गया है कि अब तक 400 से अधिक घर और कई पक्के मकान गंगा में समा चुके हैं.
रिंग बांध और सुरक्षा ढांचे, जिन पर ग्रामीणों ने अपनी उम्मीदें टिका रखी थीं, तेज धार के सामने टिक नहीं पाए। हालात इतने भयावह हो चुके हैं कि पूरा इलाका एक खुली आपदा के सामने असहाय खड़ा है.
गंगा का बढ़ता प्रकोप और उजड़ते घर
पिछले दो महीने से लगातार कटाव का सामना कर रहे ग्रामीण अब पूरी तरह दहशत के माहौल में जी रहे हैं. कभी जिन गलियों में बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं, वहां अब सिर्फ पानी का शोर है. कई लोगों के दो मंजिला मकान देखते ही देखते नदी में बह गए. जिनकी जमीन और कारोबार था, वह भी गंगा की तेज धार में समा चुका है. ग्रामीण दूर से अपने उजड़ते घर-आंगन को देखते हैं और लाचार होकर रो पड़ते हैं.
गंगा के कटाव को रोकने के लिए बनाए गए रिंग बांध और अन्य सुरक्षा ढांचे नदी की धार के सामने टिक नहीं पाए. तेज बहाव ने इन्हें अपने साथ बहा लिया. ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन ने वर्षों से जो भी व्यवस्था बनाई थी, वह सब कागजों में ही रही. जब असली परीक्षा का समय आया, तो सब ढांचे धराशायी हो गए.
राहत और मदद से महरूम लोग
कटाव से प्रभावित परिवारों का कहना है कि प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. न रहने की व्यवस्था की गई है और न ही खाने-पीने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है. बच्चे भूख और डर के साए में रातें काट रहे हैं.
महिलाएं अपने उजड़े घरों की याद में बेसुध हो जाती हैं और पुरुष प्रशासन की बेरुखी पर आक्रोश जताते हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि ना जनप्रतिनिधि उनकी सुध ले रहे हैं और ना ही कोई राहत सामग्री पहुंची है.
डर और दहशत में बीत रही जिंदगी
गांव के लोग मानो 24 घंटे मौत के साए में जी रहे हैं. कभी भी किसी का घर नदी में समा सकता है. दिन हो या रात, हर कोई यह सोचकर सहमा रहता है कि अगली बारी कहीं उनकी न आ जाए. बच्चों को सुरक्षित जगह भेजना भी मुश्किल हो गया है क्योंकि प्रशासन की ओर से कोई वैकल्पिक ठिकाना उपलब्ध नहीं कराया गया.
गंगा के कटाव ने न केवल लोगों के घर छीन लिए हैं बल्कि उनकी रोजी-रोटी पर भी गहरा असर डाला है. जिनकी खेती थी, उनकी जमीन नदी में बह चुकी है. जिनका कारोबार था, उनके पास अब सिर्फ मलबा और यादें रह गई हैं. मवेशी, अनाज और सामान सब पानी में समा गए. यह आपदा सिर्फ घर उजाड़ने तक सीमित नहीं है, बल्कि लोगों की पीढ़ियों की मेहनत और जीवनयापन पर सीधा हमला है.
प्रशासन की चुप्पी और लोगों का गुस्सा
ग्रामीणों का कहना है कि वे लगातार प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस पहल नहीं हुई. न तो बचाव शिविर लगाए गए हैं और न ही किसी अधिकारी ने मौके पर पहुंचकर समस्या का समाधान किया है.
लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब उनकी जमीन और घर खत्म हो जाएंगे, तो वे कहां जाएंगे और कैसे जिएंगे.
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