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Bihar Elections 2025: बिहार में इन तीन सीटों पर सबसे बड़ा महादंगल, जानिए कौन-कौन हैं मैदान में

Bihar Elections 2025: तीन सीटें, बाईस-बाईस प्रत्याशी और सियासी गणित का पेचीदा समीकरण, बिहार के दूसरे चरण का चुनाव अब बन गया है असली जंग का मैदान.

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में इस बार तीन सीटें ऐसी हैं, जो सियासी पारा सबसे ज्यादा गर्म कर रही हैं गया टाउन, सासाराम और चैनपुर. इन तीनों सीटों पर एक जैसी दिलचस्पी की वजह है. हर सीट पर 22 उम्मीदवार मैदान में हैं. इतनी बड़ी संख्या में प्रत्याशी होने से मुकाबला न सिर्फ तगड़ा, बल्कि अप्रत्याशित भी हो गया है. इन सीटों पर कभी बीजेपी, कभी राजद, तो कभी कांग्रेस का झंडा लहराता रहा है. मगर इस बार समीकरण बदले हैं, चेहरे बदले हैं और गठबंधनों के भीतर खींचतान ने हालात को और उलझा दिया है.

सासाराम की हाईवोल्टेज सीट, जेल से लौटे प्रत्याशी और बढ़ा सस्पेंस

सासाराम विधानसभा सीट इन दिनों सुर्खियों में है. वजह है राजद उम्मीदवार सत्येंद्र शाह, जिन्हें नामांकन के ठीक बाद गिरफ्तार किया गया था. यह मामला कोई ताजा नहीं बल्कि 21 साल पुराना है. जेल से छूटते ही शाह ने प्रचार शुरू कर दिया है, जिससे यह सीट राजनीतिक बहस का केंद्र बन गई है.
2020 और 2015, दोनों ही चुनावों में यह सीट राजद के खाते में गई थी, लेकिन इस बार मुकाबला कई गुना मुश्किल दिख रहा है. राजद ने अपने पुराने प्रत्याशी राजेश कुमार गुप्ता की जगह शाह को टिकट देकर दांव खेला है.
वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने यहां से अशोक कुशवाहा को मैदान में उतारा है, जो पहले जद(यू) और राजद से चुनाव जीत चुके हैं. यानी इस बार का सासाराम का रण केवल महागठबंधन और एनडीए तक सीमित नहीं, बल्कि तीसरे मोर्चे का भी असर देखने लायक होगा.

सासाराम में इस बार जातीय समीकरणों के साथ सहानुभूति फैक्टर भी प्रमुख भूमिका निभा रहा है. शाह की गिरफ्तारी से जहां विरोधियों को निशाना बनाने का मौका मिला, वहीं राजद ने इसे “राजनीतिक उत्पीड़न” बताते हुए प्रचार में मुद्दा बना दिया है.

गया टाउन बीजेपी का गढ़, लेकिन इस बार बढ़ी कांग्रेस की चुनौती

गया टाउन सीट को लंबे समय से भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और मंत्री प्रेम कुमार इस सीट से लगातार तीन बार जीत दर्ज करा चुके हैं. 2010 में यह सीट भाजपा और सीपीआई के बीच मुकाबले की वजह से सुर्खियों में आई थी, जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई थी. इस बार कांग्रेस ने अखौरी ओंकार नाथ को उम्मीदवार बनाकर प्रेम कुमार को कड़ी चुनौती दी है. गया की गलियों में इस बार का चुनाव ‘परिवर्तन बनाम परंपरा’ के रूप में देखा जा रहा है. भाजपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल है, वहीं कांग्रेस के लिए यह खोई हुई जमीन वापस पाने का मौका.

पिछली बार भी भाजपा ने यहां एकतरफा जीत दर्ज की थी, लेकिन विपक्ष के एकजुट होने की संभावना ने इस बार समीकरण बदल दिए हैं. 2000 के दशक में कांग्रेस इस सीट पर दूसरे स्थान पर रहती थी, लेकिन 2010 के बाद वह पीछे चली गई. 2010 में यहां भाजपा और सीपीआई के बीच सीधी टक्कर थी. अब 2025 का यह मुकाबला भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने की लड़ाई बन गया है, जिसमें स्थानीय मुद्दे—नगर निकाय की कमजोरियां, युवा बेरोजगारी और बोधगया पर्यटन क्षेत्र की उपेक्षा—मुख्य बहस के केंद्र में हैं.

चैनपुर बसपा, राजद और वीआईपी के बीच साइलेंट वार

तीसरी चर्चित सीट चैनपुर है, जहां भाजपा और कांग्रेस सीधे मैदान में नहीं हैं. यहां मुकाबला बसपा, राजद और वीआईपी के उम्मीदवारों के बीच है. बसपा ने इस बार धीरज सिंह पर भरोसा जताया है, जबकि राजद ने बृज किशोर और वीआईपी ने गोविंद बिंद को मैदान में उतारा है.
चैनपुर की सियासी कहानी दिलचस्प है क्योंकि यहां हर चुनाव में जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दे प्रमुख भूमिका निभाते हैं. बसपा ने इस बार उम्मीदवार बदलकर नया प्रयोग किया है, जबकि राजद उम्मीद कर रही है कि उसका पारंपरिक वोट बैंक कायम रहेगा.

चैनपुर विधानसभा सीट इस बार बसपा, राजद और वीआईपी पार्टी के बीच त्रिकोणीय जंग में बदल गई है. यहां भाजपा और कांग्रेस ने अपनी सहयोगी पार्टियों के प्रत्याशियों को समर्थन देकर चुनावी फॉर्मूला बदला है. इस सीट पर अब तक बसपा और राजद ने बारी-बारी से जीत दर्ज की है, लेकिन तीनों दलों की सक्रियता से मुकाबला उलझ गया है. जातीय समीकरण और उम्मीदवारों की निजी छवि दोनों ही निर्णायक होंगे. चूंकि भाजपा-कांग्रेस का प्रत्यक्ष उम्मीदवार नहीं है, इस वजह से छोटे दलों के वोट शेयर बढ़ सकते हैं.

पांच उम्मीदवारों वाले इलाकों में भी सन्नाटा नहीं

जहां एक ओर इन तीन सीटों पर 22 उम्मीदवारों की भीड़ है, वहीं दूसरे चरण में छह सीटें ऐसी हैं, जहां सिर्फ पांच-पांच प्रत्याशी मैदान में हैं. कम उम्मीदवारों के बावजूद इन इलाकों में मुकाबला तीखा और रणनीतिक बना हुआ है. यहां सियासी पार्टियां प्रचार से ज्यादा गठजोड़ और बूथ प्रबंधन पर ध्यान दे रही हैं.

इतने अधिक उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से वोटों का बिखराव तय है. इसका सीधा फायदा बड़े गठबंधनों को मिल सकता है. सासाराम और गया जैसी सीटों पर स्थानीय मुद्दे और उम्मीदवारों की छवि चुनावी गणित को प्रभावित करेंगे. इन तीनों सीटों पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं कि आखिर इस सियासी दंगल में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर और तीन बार लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया विषय में पीएच.डी. वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल की बिहार टीम में कार्यरत. डेवलपमेंट, ओरिजनल और राजनीतिक खबरों पर लेखन में विशेष रुचि. सामाजिक सरोकारों, मीडिया विमर्श और समकालीन राजनीति पर पैनी नजर. किताबें पढ़ना और वायलीन बजाना पसंद.

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