Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का सबसे रोचक और प्रतिष्ठित मुकाबला इस बार राघोपुर सीट पर है. यह वही जमीन है जिसने लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाया, राबड़ी देवी को सत्ता में पहुंचाया और अब तेजस्वी यादव के राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करने जा रही है. राघोपुर सिर्फ एक विधानसभा सीट नहीं, बल्कि लालू परिवार की राजनीतिक धरोहर है और इसी वजह से इस बार यहां का हर वोट पूरे बिहार की राजनीति का रुख बदल सकता है.
भाजपा के सतीश यादव फिर एक बार मुकाबले में हैं, जबकि तेजस्वी महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतर चुके हैं. नतीजा चाहे जो हो, लेकिन राघोपुर की लड़ाई इस बार इतिहास में दर्ज होने वाली है.
लालू परिवार का किला, जहां से निकली कई जीतों की कहानी
राघोपुर सीट का इतिहास पूरे बिहार की राजनीति का आईना रहा है. यहां से लालू प्रसाद यादव दो बार और राबड़ी देवी तीन बार विधायक रह चुकी हैं. लालू परिवार ने इस सीट को सत्ता की सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल किया.
2015 और 2020 में तेजस्वी यादव ने इसी किले से जीत दर्ज कर अपनी सियासी पकड़ मजबूत की.
2020 के चुनाव में तेजस्वी को 97,404 वोट मिले थे, जबकि भाजपा उम्मीदवार सतीश कुमार यादव को 59,230 वोट प्राप्त हुए थे. मतों का यह अंतर इतना बड़ा था कि किसी भी प्रतिद्वंद्वी के लिए उस अंतर को पाटना मुश्किल लग रहा था.
लेकिन इस बार हालात कुछ बदले हैं. तेजस्वी न सिर्फ मुख्यमंत्री पद के चेहरे हैं, बल्कि उन पर राघोपुर में लालू परिवार की प्रतिष्ठा बचाने की जिम्मेदारी भी है.
पुराने प्रतिद्वंद्वी, नया दंगल
राघोपुर में भाजपा ने फिर से सतीश कुमार यादव को मैदान में उतार कर वही दांव खेला है जो उसने पिछले दो चुनावों में खेला था. यह मुकाबला अब एक तरह से तेजस्वी बनाम सतीश यादव, यादव बनाम यादव की लड़ाई बन गई है.
दोनों ही उम्मीदवार उसी समुदाय से आते हैं, जो इस क्षेत्र में सबसे निर्णायक मतदाता वर्ग है. यादव मतदाता यहां करीब 35 प्रतिशत हैं. इसके अलावा दलित और राजपूत समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 18-18 प्रतिशत है.
ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता भी लगभग तीन-तीन प्रतिशत हैं. यही कारण है कि यहां की जातीय गणित हर बार नए सियासी समीकरण गढ़ती है.
तीसरे मोर्चे की आहट और समीकरणों की उलझन
इस बार चुनाव मैदान में सिर्फ दो बड़े चेहरे नहीं हैं. जन सुराज पार्टी के चंचल कुमार और जनशक्ति जनता दल के प्रेम कुमार जैसे उम्मीदवार भी मैदान में हैं, जो सीमित क्षेत्रों में प्रभाव रखते हैं और कटवा वोट की स्थिति बना सकते हैं.
निर्वाचन आयोग के अनुसार, इस बार राघोपुर से 23 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया था, जिनमें से 19 उम्मीदवारों के नामांकन वैध माने गए हैं. इतने बड़े उम्मीदवार समूह के बीच मुकाबला बहुकोणीय तो है, लेकिन असली जंग अब भी राजद बनाम भाजपा के बीच ही केंद्रित है.
समीकरणों के बीच तेजस्वी की चुनौती
राघोपुर को हमेशा से महागठबंधन का गढ़ माना गया है. 1998 से अब तक इस सीट पर लगभग राजद का एकछत्र राज रहा है, सिवाय 2010 के चुनाव के जब पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था.
इस बार तेजस्वी के सामने सिर्फ जीत नहीं, बल्कि अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाए रखने की जिम्मेदारी भी है.
वहीं भाजपा इस सीट को एक प्रेस्टीज बैटल की तरह देख रही है. सत्तारूढ़ एनडीए के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर राघोपुर जैसी सीट पर मुकाबला बराबरी का हो गया, तो राज्यभर में संदेश जाएगा कि लालू परिवार का जादू अब फीका पड़ रहा है.
पहले चरण में मतदान, सबकी नजर राघोपुर पर
राघोपुर सीट पर मतदान 6 नवंबर को होना है. चुनाव आयोग की निगरानी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. चूंकि यह तेजस्वी यादव की गृह सीट है, इसलिए महागठबंधन के सभी प्रमुख नेता यहां सक्रिय हैं. भाजपा भी इस क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की सभा कराने की तैयारी में है.
इस सीट पर नतीजे चाहे जो भी हों, लेकिन इतना तय है कि राघोपुर का परिणाम बिहार की सत्ता का रास्ता तय करेगा. यहां की जीत या हार सीधे मुख्यमंत्री पद की संभावनाओं पर असर डालेगी.
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