Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण की वोटिंग से पहले सियासी पारा चरम पर है. 20 जिलों की 122 सीटों पर 1302 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन राजनीतिक दलों की सबसे ज्यादा नजर 10 सीटों पर टिकी है. ये वे सीटें हैं जो न केवल दलों की प्रतिष्ठा से जुड़ी हैं, बल्कि सामाजिक गठबंधनों, दलबदल की राजनीति और स्थानीय नेतृत्व की ताकत की असली परीक्षा भी हैं.
आइए जानते हैं, कौन-सी हैं ये 10 सीटें और क्यों हैं ये इतनी अहम—
गोविंदगंज (पूर्वी चंपारण)- बीजेपी की प्रतिष्ठा बनाम कांग्रेस की वापसी की जंग
2020 में बीजेपी ने यहां शानदार जीत दर्ज की थी. यह सीट एनडीए के लिए आत्मविश्वास का प्रतीक बनी हुई है. दूसरी ओर, कांग्रेस इस सीट पर अपनी खोई हुई पकड़ वापस पाने के लिए हर दांव आजमा रही है. ग्रामीण और अति पिछड़े वर्गों में पैठ बनाने की कोशिश में दोनों दल आमने-सामने हैं.
जोकीहाट (अररिया)- सीमांचल की ‘मिनी जंग’, RJD बनाम AIMIM
जोकीहाट हमेशा से सीमांचल की सबसे चर्चित सीट रही है. सरफराज आलम बनाम AIMIM का मुकाबला यहां फिर दिलचस्प मोड़ पर है. मुस्लिम वोटों का बंटवारा इस सीट के परिणाम को सीधे प्रभावित करेगा. महागठबंधन और ओवैसी की पार्टी दोनों इसे प्रतिष्ठा की लड़ाई मान रहे हैं.
रूपौली (पूर्णिया)- दल-बदल की परीक्षा
पूर्व विधायक बीमा भारती के जेडीयू छोड़कर आरजेडी में आने के बाद यह सीट चर्चा में है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता पार्टी से निष्ठावान रहते हैं या नेता से. जेडीयू के लिए यह अपनी पकड़ बनाए रखने की परीक्षा है, जबकि आरजेडी के लिए नए सामाजिक गठजोड़ का प्रयोग.
धमदाहा (पूर्णिया)- लेसी सिंह का गढ़ या सीमांचल में नई लहर?
यह सीट जेडीयू मंत्री लेसी सिंह का गढ़ मानी जाती है. एनडीए के लिए सुरक्षित सीट समझी जाने वाली धमदाहा में महागठबंधन की सेंधमारी सीमांचल की राजनीति का संकेत दे सकती है. महिला नेतृत्व और स्थानीय विकास के एजेंडे पर जनता का फैसला निर्णायक होगा.
कड़वा (कटिहार)- कांग्रेस की उम्मीदें बनाम AIMIM की चुनौती
कांग्रेस इस सीट पर अपने पारंपरिक मुस्लिम चेहरों के सहारे डटी है. यह सीमांचल में मुस्लिम-यादव समीकरण की नब्ज मापने वाली सीट है. AIMIM की मौजूदगी कांग्रेस के लिए चुनौती बनी हुई है. 2025 यह बताएगा कि सीमांचल में कांग्रेस का असर बरकरार है या नहीं.
सुल्तानगंज (भागलपुर)- शहरी वोटों की नई करवट
जेडीयू की पारंपरिक पकड़ इस अर्ध-शहरी सीट पर रही है. 2025 में आरजेडी यहां शहरी मतदाताओं में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में है. विकास बनाम जातीय समीकरण, दोनों मुद्दे यहां निर्णायक रहेंगे.
रामगढ़ (कैमूर)- सुधाकर सिंह के बयान और यादव वोट बैंक
राजद विधायक सुधाकर सिंह की बेबाक छवि और विवादित बयानबाजी ने इस सीट को सुर्खियों में रखा है- यह सीट यादव वोट बैंक के साथ-साथ स्थानीय नेतृत्व के प्रभाव का भी परीक्षण करेगी.
इमामगंज (गया – सुरक्षित): मांझी की अग्निपरीक्षा
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने 2020 में राजद के उदय नारायण चौधरी को हराया था. अब 2025 में यह सीट महादलित नेतृत्व और मांझी के प्रभाव की असली परीक्षा बनेगी. एनडीए के भीतर भी यह सीट संतुलन की कसौटी पर है.
बाराचट्टी (गया – सुरक्षित)- मांझी की पार्टी का टेस्ट
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) की ज्योति देवी की पिछली जीत इस बार कसौटी पर है. मांझी के प्रभाव और महादलित वोट बैंक की एकजुटता इस सीट पर फैसला करेगी.
नवादा (नवादा)- ग्रामीण प्रभाव बनाम शहरी चुनौती
राजद की विभा देवी की सीट नवादा हमेशा से यादव वोट बैंक की धुरी रही है. इस बार बीजेपी यहां अपना आधार बढ़ाने के लिए जोर लगा रही है. ग्रामीण बनाम शहरी मुद्दों की भिड़ंत यहां स्पष्ट दिखती है.
इन 10 सीटों पर जो भी बाजी मारेगा, वह न केवल सीमांचल से मगध तक का सियासी संतुलन तय करेगा, बल्कि बिहार की अगली सरकार की दिशा भी. यहां की जीत-हार से यह तय होगा कि 2025 का जनादेश जातीय समीकरणों पर भारी पड़ता है या विकास के मुद्दों पर.

