Bihar Election 2025: बिहार में सियासी जंग का बिगुल बज चुका है. छह नवंबर को पहले चरण का मतदान होना है और जैसे-जैसे तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे नेताओं के बयान और गठबंधनों की गांठें दोनों कसकर खुल रही हैं. एक ओर एनडीए अपने अभियान को संगठित रूप दे रहा है, वहीं महागठबंधन भीतर ही भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर बिखरता दिखाई दे रहा है.
इसी बीच लोजपा (रामविलास) प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि “जो नेता अपने गठबंधन को एकजुट नहीं रख सकता, वह बिहार को क्या एकजुट रखेगा.”
चिराग पासवान का हमला: महागठबंधन में असंतुलन
केंद्रीय मंत्री और लोजपा (रामविलास) सुप्रीमो चिराग पासवान ने तेजस्वी यादव को निशाने पर लेते हुए कहा कि जिस तरीके से महागठबंधन बिखर गया है, उसका सीधा फायदा एनडीए को मिलेगा. पासवान का दावा है कि तेजस्वी यादव अपने घटक दलों को साथ नहीं रख सकते, तो वे बिहार को एकजुट कैसे रख पाएंगे.
चिराग ने गठबंधन की टूट को एनडीए के पक्ष में ‘वॉकओवर’ बताया और कहा कि कुछ सीटें, जो शायद एनडीए की झोली में नहीं जातीं, वे भी महागठबंधन की फूट की वजह से आसानी से मिल जाएंगी।.यह हुआ भी है—कई ऐसी सीटें हैं, जहां आधिकारिक रूप से महागठबंधन के दोनों साथी आमने-सामने हैं.
महागठबंधन की उलझी सीटें: साथ-साथ, फिर भी आमने-सामने
बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती अंदरूनी मतभेद हैं. राजद ने इस बार 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि कांग्रेस ने 62 सीटों पर ताल ठोकी है. माले 20 और वीआईपी 14 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. सबसे बड़ा झटका उस वक्त लगा जब कई सीटों पर एक ही गठबंधन के दो सहयोगी एक-दूसरे के सामने उतर आए.हालांकि कुछ सीटों पर पार्टियों ने अपने उम्मीदवार के नाम वापस भी ले लिया गया है, कुंटुम्बा, लालगंज सीटों से यह खबरें आ रही है.
राजद-कांग्रेस में तनाव, लेकिन बचाव की कोशिशें भी
महागठबंधन की आपसी खींचतान और एनडीए की एकजुटता किसे मजबूत बनाएगी, यह जनता के फैसले पर निर्भर करेगा. राजद ने हालांकि कांग्रेस से सीधे टकराव को कम करने की कोशिश की है.पार्टी ने बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार राम के खिलाफ कुटुंबा (आरक्षित) सीट से उम्मीदवार नहीं उतारा. पर यह कोशिश भी सियासी तनाव को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकी. पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि ‘फ्रेंडली फाइट’ से मतों का बंटवारा तय है और इसका सीधा फायदा एनडीए को मिल सकता है.
महागठबंधन की एक और कमजोर कड़ी वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी और राजद के बीच का मतभेद रहा. तारापुर सीट पर वीआईपी के उम्मीदवार सकलदेव बिंद ने राजद के विरोध के बाद नामांकन वापस ले लिया और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. यह घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि विपक्ष के अंदरूनी मतभेद न केवल चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि विरोधियों को मजबूत भी बना रहे हैं.
पहले चरण में 121 सीटों पर मुकाबला, 1314 उम्मीदवार मैदान में
निर्वाचन आयोग के मुताबिक, पहले चरण में 243 सीटों में से 121 सीटों पर मतदान होगा. इस चरण में 1314 उम्मीदवार मैदान में हैं. लगभग 300 से अधिक नामांकन पत्रों को जांच के दौरान खारिज किया गया और 61 प्रत्याशियों ने नाम वापस ले लिए. इनमें कई सीटें ऐसी हैं जहां स्थानीय समीकरण, जातिगत गणित और गठबंधन की कमजोर एकजुटता परिणाम तय करने में बड़ी भूमिका निभाएंगे.
जहां एक ओर एनडीए उम्मीदवार अपने प्रचार अभियान में केंद्र और राज्य सरकार के कामकाज को मुख्य मुद्दा बना रहे हैं, वहीं विपक्ष अपने ही अंदर तालमेल की कमी से जूझता दिख रहा है. चिराग पासवान जैसे युवा चेहरे इस मौके को भुनाने में जुटे हैं. उनके लिए महागठबंधन की ‘फ्रेंडली फाइट’ एक सुनहरा मौका बनकर उभरी है.

