Bihar Chunav 2025: एनडीए ने तय किया है कि इस बार चुनावी तैयारी केवल नेताओं तक सीमित नहीं रहेगी. जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल मजबूत करने के लिए विधानसभावार कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित होंगे.
बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल अभी औपचारिक रूप से नहीं बजा है, लेकिन राजनीतिक दलों की तैयारियां ज़ोर पकड़ चुकी हैं. विपक्षी महागठबंधन जहां आक्रामक रणनीति के साथ सत्ता पर कब्ज़ा करने का ख्वाब देख रहा है, वहीं सत्ता पक्ष यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने अपने अभियान की ज़मीन पर परत-दर-परत रणनीति बिछानी शुरू कर दी है.
इस रणनीति का नया चेहरा है विधानसभावार कार्यकर्ता सम्मेलन, जिसके जरिए एनडीए ने यह साफ कर दिया है कि 2025 की जंग वह केवल नेताओं के भाषणों के सहारे नहीं, बल्कि बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की ऊर्जा और संगठित ताकत से लड़ेगा.
2025 में 225, फिर से नीतीश
23 अगस्त से 24 सितंबर के बीच सात चरणों में होने वाले इन सम्मेलनों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह सीधे-सीधे 243 विधानसभाओं को कवर करेंगे. प्रतिदिन औसतन 14 सभाएं होंगी, यानी महीने भर तक बिहार के हर कोने में एनडीए के दिग्गज नेता और कार्यकर्ता सक्रिय नज़र आएंगे. यह पहल न केवल कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए है, बल्कि मतदाताओं तक यह संदेश देने के लिए भी है कि एनडीए एकजुट है और नीतीश कुमार की अगुवाई में फिर से सत्ता में लौटने का भरोसा रखता है.
इस अभियान की घोषणा जेडीयू कार्यालय में हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में की गई. जेडीयू, बीजेपी, एलजेपी (रामविलास), हम और रालोमो—पांचों घटक दलों के प्रदेश अध्यक्ष एक मंच पर नज़र आए. यह दृश्य अपने आप में इस बात का प्रतीक था कि गठबंधन फिलहाल किसी भी तरह की अंदरूनी खींचतान की बजाय एक साझा लक्ष्य पर केंद्रित है. “2025 में 225, फिर से नीतीश”—यह नारा केवल चुनावी घोषणा नहीं, बल्कि एनडीए के भीतर नीतीश कुमार की स्वीकृति और नेतृत्व को स्थापित करने का प्रयास भी है.
14 टीमों में बांटा गया है पूरे कार्यक्रम
रणनीति के स्तर पर इस पूरे कार्यक्रम को 14 टीमों में बांटा गया है. इन टीमों का नेतृत्व केंद्रीय मंत्रियों से लेकर बिहार सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों और प्रदेश अध्यक्षों तक करेंगे. दिलीप जायसवाल, सम्राट चौधरी, नित्यानंद राय, गिरिराज सिंह, रवि शंकर प्रसाद जैसे चेहरे और संजय झा, अशोक चौधरी, विजय चौधरी, उमेश कुशवाहा जैसे संगठन के पैरोकार नेताओं की मौजूदगी इस बात का संकेत है कि अभियान केवल एक दल का नहीं, बल्कि पूरे गठबंधन की सामूहिक ताकत का प्रदर्शन होगा.
नीतीश कुमार पर थके हुए नेतृत्व का ठप्पा हटाने की कोशिश
इस पहल की राजनीतिक अहमियत गहरी है. नीतीश कुमार लंबे समय से विकास की राजनीति के प्रतीक के रूप में अपनी छवि गढ़ते रहे हैं. पर पिछले कुछ वर्षों में उन पर विपक्ष ने ‘थके हुए नेतृत्व’ का ठप्पा लगाने की कोशिश की है. ऐसे में यह सम्मेलन उनके नेतृत्व में हो रहे विकास कार्यों को नए सिरे से जनता तक पहुंचाने का अवसर है. साथ ही यह संदेश देने का प्रयास भी है कि चाहे विपक्ष कितना भी एकजुट हो, एनडीए की जड़ें अब भी बूथ स्तर तक मजबूत हैं.
इस अभियान से दो बातें साफ होती हैं—पहली, कि एनडीए अपनी आंतरिक असहमति को पीछे छोड़कर चुनावी मोड में आ चुका है; और दूसरी, कि नीतीश कुमार को आगे रखकर ही गठबंधन चुनावी मैदान में उतरेगा.

