वर्ष 1764 के बक्सर युद्ध के बाद बंगाल की दीवानी ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में आ गयी और बंगाल के साथ बिहार के तकरीब सारे भाग पर उनका आधिपत्य हो गया. बंगाल प्रेसीडेंसी के तहत ही पूरे उत्तर पूर्व भारत को रखा गया, मगर उन्नसवी सदी के अंत तक बिहार के लोगों ने बंगाल के प्रशासन से अलग होने की एक मुहिम चलायी. इस मुहिम के कुछ आर्थिक कारण थे. सरकारी नौकरियों में बंगाली भाषा-भाषियों का वर्चस्व, उच्च न्यायालय का कोलकाता में होना और उसके बार में बंगाली भाषा-भाषी वकीलों का वर्चस्व होना, बिहार में एक विश्वविदयालय का अभाव और बिहार का अपना कोई अखबार नहीं होना इत्यादि. यहीं कारण रहा कि बिहार निर्माण (Bihar Day) के पहले दशक का एजेंडा न केवल बंगाल के प्रभाव से अलग एक प्रशासकीय ढांचा तैयार करना था, बल्कि आधारभूत संरक्षणा का विकास करना भी था.
जमींदारी संघ ने दिया था इन कारणों से समर्थन
बिहार के जमींदारों के संगठन ने पृथक बिहार की मुहिम का पुरजोर समर्थन किया क्योंकि उच्च न्यायालय का कोलकाता में स्थित होना और वहां के बंगला भाषा-भाषी वकीलों का व्यवहार कृषि-क्षेत्र और जमींदारी से जुड़े विवादों के निबटारे को आर्थिक रूप से तकलीफदेह बना रहे थे, जमीदारो और रैयतों के लिए. न्यायिक व्यवस्था उन दिनों एक मात्र व्यवसाय थी मध्म वर्ग उच्च-शिक्षा प्राप्त लोगों के लिए. ऐसे में बिहारी वकीलों ने कोलकाता के न्यायालयों में उपेक्षित महसूस किया. ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार के लिए जमींदारी ही राजस्व-व्यवस्था की मेरूदंड थी. अतः उसने भी प्रशासनिक अवरोधों का बहाना दिखा कर बिहार को एक राज्य का दर्जा देने की घोषणा की. 22 मार्च 1912 को और 1 अप्रैल 1912 से बिहार और उड़ीसा राज्य की स्थापना हो गयी.
8 जनवरी, 1912 को हुई थी अहम बैठक
8 जनवरी, 1912, को कोलकाता के एक बड़े अंग्रेजी अखबार द इंग्लिशमैन में छपी रिपोर्ट में लिखा गया कि 7 जनवरी को 1 मिडलटन स्ट्रीट में आयोजित एक सभा में बिहार के जमींदार, वकील, और परिषद के सदस्गण, जिनमें प्रमुख थे डॉ सच्चिदानंद सिंहा, सैयद हसन इमाम, इत्यादि शामिल हुए. सभा की अध्क्षता की दरभंगा के महाराज रमेश्वर सिंह ने की और बिहार को एक राज्य का दर्जा दिए जाने के निर्णय का स्वागत किया गया. महाराज रामेश्वर सिंह ने बिहार में एक उच्च न्यायालय और एक विशविद्यालय की भी ज़ोरदार मांग रखी. इस्ट इंडिया कंपनी ने सूबा-बिहार के लिए पटना को ही राजस्व-केंद बनाया था, अतः पटना को बिहार की राजधानी बनाया गया.
बिहार का पहला कार्यकारी परिषद
बिहार में एक लेफ्टिनेट गवर्नर का पदस्थापन किया गया. साथ ही एक कार्यकारी-परिषद की स्थापना की गई. 18 जनवरी, 1912, को सैयद जहीउद्दीन, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के उपाध्क्ष एवं बंगाल विधान परिषद के सदस्य, ने बंगाल के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा जो बिहार अभिलेखागार में संरक्षित है. इस पत्र में उन्होंने बिहार राज्य के कार्यपालक परिषद के लिए उपयुक्त बिहारी व्यक्ति के तौर पर महाराज रमेश्वर सिंह का नाम सुझाया. उन्होंने कहा कि सभी मुसलमान और हिंदू को इन पर भरोसा है और इन्होंने अपने जीवन में अभी तक सार्वजनिक हित की ही बातें की हैं और जनकल्याण का ही काम किया है. इस पत्र में उन्होंने कार्यपालक समिति की सदस्यता के लिए उत्सुक अन्य व्यक्तियों की भी चर्चा की है. तर्क तथा तथ्यों की विवेचना से उनकी उम्मीदवारी को खारिज भी किया है.
पहले दशक में इनके हाथों में था प्रशासन
1914 में भारत सरकार के द्वारा प्रकाशित ‘एडमिनिस्टरेशन इन बिहार एंड उड़ीसा, 1912’ में नवगठित बिहार के प्रशासन की पूरी व्यवस्था की विस्तृत रूप रेखा है. इस में प्रथम अध्याय ‘चेज इन एडमिनिस्टरेशन’ के प्रारंभ में ही दिया गया है कि एक कार्यपालक समिति होगी, जिसके चार ही सदस्य होंगे. इसी समिति के सदस्य अगले 10 वर्षों तक बिहार के प्रशासन और विकास का सारा निर्णय लेंगे. प्रावधान के अनुसार इस समिति में लेफ्टिनेट गवर्नर के अलावा दो और प्रशासनिक सेवा के सदस्य और एक बिहार का कोई प्रमुख व्यक्ति होगा. 1912 से 1922 तक इस समिति में लेफ्टिनेट गवर्नर बेली, प्रशासनिक सेवा के इए गेट, बीवी लेविंग्स तीन अंग्रेज और एक बिहारी सदस्य महाराज रमेश्वर सिंह को बिहार के लोगों का प्रतिनिधित्व करने का अवसर देते हुए समिति का सदस्य बनाया गया.
रमेश्वर सिंह के कंधों पर थी महती जिम्मेदारी
दस्तावेजों से ये जानकारी मिलती है कि परिषद में अकेले बिहारी होने के नाते महाराज रमेश्वर सिंह पर महती जिम्मेदारी थी. उन्होंने नवगठित बिहार के नूतन राजधानी क्षेत्र के विकास में काफी दिलचस्पी ली. एक हाइकोर्ट और एक विश्वविद्यालय स्थापित कराने में अपना योगदान दिया. राजनीतिक हिस्सेदारी पर भी वे काफी काम किये. वो स्वयं लिखते है कि ऊंची जाति के लोग तो बहुत अधिकार पा लिए, अब विधान परिषद में समाज के पिछड़े पायदान के लोगों के लिए भी आरक्षण हो. बिहार के पिछड़े समाज के लिए शिक्षा और राजनैतिक अधिकार की बात उन्होंने इन 10 वर्षों के दौरान की. बिहार राज्य को और पटना शहर को आधुनिक बनाने की योजनाएं प्रारंभिक दस वर्ष में बनी और कार्यान्वित की गई. विधान परिषद, सचिवालय, गवर्नर का आवास, उच न्यायालय, इत्यादि इन्ही वर्षों में बनी. आज हम हर वर्ष बिहार दिवस तो मनाते हैं, मगर आज के दिन महाराज रमेश्वर सिंह समेत बिहार के निर्माताओं के कृतित्व की भी चर्चा होनी चाहिए.
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