Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी अपने चरम पर है. एक ओर एनडीए अपने प्रचार अभियान के साथ सड़कों पर उतर चुका है तो दूसरी ओर महागठबंधन की खामोशी सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गई है. कभी सबसे पहले चुनावी वादों के जरिए माहौल बनाने वाले तेजस्वी यादव अब बैकफुट पर दिख रहे हैं. कांग्रेस के साथ तालमेल की खींचतान, घटक दलों में असहमति और प्रचार में सुस्ती— इन सबने तेजस्वी की “तेजी” को ब्रेक पर डाल दिया है.
तेजस्वी का शुरुआती दमखम अब धीमा पड़ा
कुछ महीने पहले तक तेजस्वी यादव की “चेंज मेकर यात्रा” बिहार की सियासत का केंद्र बनी हुई थी. उन्होंने जनता से एक के बाद एक बड़े वादे किए , हर घर के एक सदस्य को सरकारी नौकरी, 200 यूनिट फ्री बिजली, हर महिला को ₹2500 की मासिक सहायता और सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी जैसी घोषणाएं उनके एजेंडे के केंद्र में थीं.
इन वादों ने जनता के बीच उम्मीदें जगाईं, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव करीब आया, महागठबंधन की आंतरिक राजनीति और असमंजस ने तेजस्वी की मुहिम को सुस्त कर दिया. एनडीए ने जहां समय रहते रणनीति तय कर ली, वहीं महागठबंधन अपने ही वादों और सीट बंटवारे के गणित में उलझा रहा.
साथ ही साथ लालू यादव के साथ तेजस्वी यादव को भी IRCTC मामले में आरोपी बनाये जाने के बाद, राष्ट्रीय जनता दल पूरी तरह से उलझी हुई दिखाई दे रही है.
दिलचस्प बात यह है कि आरजेडी और कांग्रेस के पास रैलियों के लिए हेलीकॉप्टर पटना में पहले से तैयार हैं. नेता भी उपस्थित हैं, लेकिन जमीन पर रफ्तार गायब है. महागठबंधन में न तो कोई रणनीतिक बयानबाजी दिख रही है, न ही प्रचार की समय-सारिणी तय हो पाई है. जमीनी स्तर पर उम्मीदवारों की शिकायत है कि शीर्ष नेताओं से उन्हें अब तक कोई स्पष्ट दिशा नहीं मिली है. जबकि एनडीए के छोटे उम्मीदवारों तक को प्रचार सामग्री और नेतृत्व का समर्थन समय पर मिल गया है.
क्या ठहर गया महागठबंधन का मनोबल?
राजनीतिक हलकों में यह सवाल तेजी से उठने लगा है कि क्या महागठबंधन ने चुनाव से पहले ही परोक्ष रूप से हार मान ली है? यह कहना जल्दबाजी भरा जरूर होगा, पर मौन और देरी संकेत अच्छा नहीं दे रहे हैं.
राहुल गांधी, जो बिहार में पहले लगातार सक्रिय दिखते थे, अब चुप हैं. मल्लिकार्जुन खरगे, जो सामान्यतः तीखे बयान देते हैं, वे भी मौन साधे हुए हैं. प्रदेश नेतृत्व से लेकर प्रभारी तक का सन्नाटा पार्टी कार्यकर्ताओं को असमंजस में डाल रहा है.
तेजस्वी यादव, जिन्होंने ‘चेंज मेकर’ यात्रा से अपनी पहचान स्थापित की थी, अब कुछ भी बयान नहीं दे रहे. उनके करीबी मानते हैं कि अंदरूनी असहमति और कांग्रेस की हिचकिचाहट ने उनका आत्मविश्वास कम किया है.
पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को होना है. इससे पहले बिहार का प्रमुख पर्व छठ 26 से 28 अक्टूबर तक रहेगा. इसका सीधा अर्थ है कि महागठबंधन के लिए प्रचार के बचे हुए दिन सिर्फ छह–सात हैं.
चुनाव प्रचार मतदान से 24 घंटे पूर्व बंद हो जाएगा, यानी समय सीमित है और कार्यभार विशाल. यदि इसी बीच महागठबंधन मैदान में नहीं उतरता, तो यह राजनीतिक रूप से घातक साबित हो सकता है.
नीतीश की ‘शांत राजनीति’ बनाम तेजस्वी का ‘जोश अभियान’
बिहार चुनाव 2025 इस बार दो विपरीत शैलियों का टकराव है — नीतीश कुमार की स्थिरता और तेजस्वी यादव का उत्साह. नीतीश बिना शोर-शराबे के योजनाओं से मैदान संभाल रहे हैं. वे जानते हैं कि बिहार की जनता तुरंत बदलाव नहीं, भरोसे की निरंतरता चाहती है.
वहीं तेजस्वी के पास युवा और आकांक्षी वोटबैंक है, पर उनका अभियान उस निरंतरता से वंचित है जो चुनावी सम्मोहन पैदा करती है. अगर गठबंधन अपनी गति नहीं लौटाता, तो यह लड़ाई एनडीए के लिए एकतरफा साबित हो सकती है.

