देसी दवाओं के फाॅर्मूलेशन को भूलते जा रहे हैं छात्र संवाददाता, पटना बिहार के सबसे पुराने राजकीय आयुर्वेदिक व तिब्बी कॉलेज में दवा बनाने वाली जरूरत भर की जड़ी-बूटी की दवाएं भी तैयार नहीं होती. इतना ही नहीं विद्यार्थियों को जड़ी बूटी से तैयार होनेवाली दवाओं का प्रशिक्षण भी नहीं मिलता. आयुर्वेदिक कॉलेज और तिब्बी कॉलेज का अपना फाॅर्मूलेशन रहने के बाद भी पर्याप्त दवा निर्माण नहीं हो रहा है. राजकीय औषध निर्माणशाला है, पर संसाधनों और कर्मियों की कमी से जूझ रहा है. पहले आयुर्वेदिक कॉलेज में 80 प्रकार की, जबकि तिब्बी कॉलेज के 53 प्रकार के फाॅर्मूलेशन पर दवाएं तैयार होती थीं. अपने ही कॉलेज के द्वारा विकसित किये गये देसी दवाओं के फाॅर्मूलेशन के ज्ञान से अब विद्यार्थी दूर होते जा रहे हैं. राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज और राजकीय तिब्बी कॉलेज के विद्यार्थियों को औषधीय पौधों की जानकारी के लिए दोनों के पास अपना हार्वेरियम है. आयुर्वेदिक कॉलेज के हार्वेरियम बहादुरपुर के पास, तो तिब्बी कॉलेज का आइजीआइएमएस परिसर में है. जानकारों का कहना है कि आयुर्वेदिक कॉलेज व तिब्बी कॉलेज के हार्वेरियम में जड़ी बूटी वाले दो सौ प्रकार से अधिक औषधीय पौधे हैं. इन पौधों की जानकारी कॉलेज द्वारा दी तो जाती है, पर इन पौधों से कैसे दवाएं तैयार होती हैं, इसकी जानकारी नहीं मिलती. सरकार द्वारा राजकीय आयुर्वेदिक यूनानी औषध निर्माणशाला स्थापित है. यहां से आयुर्वेदिक कॉलेज अस्पताल को हर सप्ताह 40 किलोग्राम पाउडर, टैबलेट और तेल का निर्माण कर आपूर्ति की जाती है. इसी प्रकार से तिब्बी कॉलेज को 20 प्रकार की दवाएं भेजी जाती हैं. निर्माणशाला में दवा निर्माण के उपकरणों आदि मद में करीब डेढ़ करोड़ रुपये वर्षों से पड़े हैं, पर यहां पर आसव, अरिष्ट जैसी दवाएं बनाने का काम नहीं हो रहा है. फाॅर्मूला व पेटेंट भी अब किताबों में रह गया है तिब्बी कॉलेज द्वारा विकसित फाॅर्मूला व पेटेंट भी अब किताबों में सिमट कर रह गया है. राज्य सरकार द्वारा राजकीय औषधालयों के लिए आवश्यक दवाओं की सूची में आयुर्वेद के लिए 119 प्रकार की दवाएं और यूनानी के लिए 153 दवाओं की सूची जारी की गयी है. इन दोनों देसी चिकित्सा शिक्षा में खुद दवाओं के निर्माण की शिक्षा दी जानी है.
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