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आंसू से दामन गीले, दहलीज पर है इंसाफ

आज के इस अंक में पढ़िए गोपालगंज के रसुलपुर गांव के एक परिवार की दर्दनाक कहानी. जमीन के छोटे-से टुकड़े को लेकर अदावत ने किस तरह खून का प्यासा बना दिया. गोलियां चलीं, चार लाशें गिरीं और किस तरह से बिखर गयीं परिवार की खुशियां. सबकुछ खो देने के बाद थाना, कोर्ट-कचहरी का चक्कर और […]

आज के इस अंक में पढ़िए गोपालगंज के रसुलपुर गांव के एक परिवार की दर्दनाक कहानी. जमीन के छोटे-से टुकड़े को लेकर अदावत ने किस तरह खून का प्यासा बना दिया. गोलियां चलीं, चार लाशें गिरीं और किस तरह से बिखर गयीं परिवार की खुशियां. सबकुछ खो देने के बाद थाना, कोर्ट-कचहरी का चक्कर और इंसाफ के लिए 22 वर्षों का इंतजार. अदालत ने हत्यारों को उम्रकैद की सजा दी है. फैसले से सकून तो मिला है, पर फौजदार साह को आज भी बेटे अौर पोते की याद तड़पाती रहती है.

विजय सिंह

पटना : [email protected]

आज अदालत के फैसले का दिन (2 जनवरी, 2016) है. बूढ़ी हो चुकी आंखों को इंसाफ का इंतजार है. उन हत्यारों को सजा होने वाली है, जिन्होंने बहू की मांग उजाड़ दी, बेटे को गोलियों से भून दिया और पोते को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया. परिवार की खुशियों को मसल दिया गया है. बरबादी की दर्दनाक कहानी जेहन में आज हिलोरें ले रही हैं. 80 साल की उम्र में फौजदार साह अगर जिंदा हैं, तो शायद इसलिए कि जिन्होंने बूढ़े कंधाें पर बेटे और पोते की अरथियां उठवायी हैं, उन्हें सलाखों के पीछे देख सकें. दिल को तसल्ली मिले, आंखों को सकून मिले, जिसने 22 साल तक खूनी खेल का मंजर देखा है.

मानसिक हालत ठीक नहीं है, रह-रह कर बातें भूल जाती हैं, कभी रोते हैं, कभी हंसते हैं, पर आज के दिन उनको सबकुछ ठीक-ठीक याद आ रहा है. शनिवार का दिन है, गोपालगंज में एडीजे वन अमर ज्योति श्रीवास्तव की अदालत लगी हुई है. सुनवाई शुरू होती है और अदालत ने फौजदार के पुत्र सुभाष गुप्ता की हत्या के मामले में तमाम गवाहों व साक्ष्यों को बारीकी से देखने के बाद विजय सिंह और उनके भतीजे संजय सिंह को उम्रकैद की सजा सुनायी. इस फैसले ने आज फौजदार की यादों को ताजा कर दिया है. वह अपने अतीत में डूब जाते हैं और सोचते हैं कि किस तरह से डेढ़ कट्ठे की जमीन से शुरू हुए विवाद ने उन्हें इस मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है. जमीन भी वहीं मौजूद है और मुकदमा भी विचाराधीन है, पर इसके साथ शुरू हुई अदावत ने क्या-क्या छीन लिये.

गोपालगंज जिले का विजयीपुर थाना इलाके का रसुलपुर गांव. यहां के रहनेवाले फौजदार साह 1980 का दशक याद आता है. उनके गल्ले का व्यवसाय शबाव पर है. आमदनी बढ़ी तो फौजदार का हौसला भी आसमान छूने लगा. जब कंधे पर थोड़ा बोझ बढ़ता नजर आया, तो तीनों बेटे क्रमश: प्रभुनाथ, सुभाष और चंद्रशेखर ने अपना कंधा लगा दिया. बेटे व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे. 10 साल तक झूम कर व्यवसाय चला, तो अब फौजदार के पास पैसे की कमी नहीं रही. उन्हाेंने बिल्डिंग मैटेरियल और आरा मशीन का कारोबार शुरू कर दिया.

सुभाष पूरी तरह से व्यवसाय में उतर गये. उन्हाेंने विजयीपुर थाने के पास जमीन ली और मकान बनवाकर परिवार के साथ शिफ्ट हो गये. सब कुछ ठीक चल रहा था. बस एक परेशानी थी, जो फौजदार को डिगा रही थी. माड़र घाट के पास डेढ़ कट्ठे की जमीन. इस पर उनका भी दावा है और सरुपाई खापे गांव के प्रभावशाली शिवनाथ सिंह का भी. दोनों में तनाव है. फौजदार को लगा कि जब यह जमीन हमारी है, तो हमें ही मिलनी चाहिए, हक और हक की लड़ाई. बस इसी सोच के साथ 1988 में फौजदार अदालत की शरण में गये और जमीन के दावे को लेकर एक मुकदमा दायर कर दिया. यह मुकदमा आज भी न्यायालय में विचाराधीन है. दूसरी तरफ 1990 में शिवनाथ सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गयी. यह हत्या दूसरे गैंग ने की, इससे फौजदार या उनके परिवार का कोई लेना-देना नहीं है. इस केस में शिवनाथ के परिवार वालों ने फौजदार के परिवार को अभियुक्त भी नहीं बनाया. लेकिन, शिवनाथ की हत्या की खबर सुन कर वाराणसी के बीएचयू में पढ़ाई कर रहे उनके भाई विजय सिंह और बेटे संजय सिंह गोपालगंज आ गये. इस हत्या का इतना असर हुआ कि पढ़ाई छूट गयी और दोनों ने बदला लेने के लिए हथियार उठा लिया. दोनों के खिलाफ पहली बार विजयीपुर थाने में 20 मई, 1991 को पहली प्राथमिकी दर्ज की गयी. उसके बाद 16 सितंबर, 1991 को दूसरी प्राथमिकी दर्ज की गयी. दोनों के तेवर लगातार बढ़ रहे थे. वहीं, दूसरी तरफ फौजदार साह अपने परिवार के साथ काफी खुशनुमा माहौल में जी रहे थे.

जमीन विवाद का पता जब संजय सिंह और विजय सिंह को चला, तब कोर्ट में मुकदमे के चार साल बीत चुके थे. जमीन यथावत थी़ उस पर मुकदमे को लेकर फौजदार साह पर दबाव बनाया जाने लगा था. वर्ष 1994 आते-आते विजय सिंह के ऊपर पांच एवं संजय सिंह के ऊपर तीन मामले दर्ज हो चुके थे. दोनों पुलिस की नजरों में फरार चल रहे थे. भाई के हत्यारों से बदला लेने की सनक ने धीरे-धीरे विजय सिंह को अपराध के दलदल में धकेल दिया. 1994 में यह बात भी सामने आने लगी थी कि विजयीपुर का नाम लोग विजय सिंह के कारण जानने लगे थे. कॉलेज में जीनियस कहे जानेवाले संजय सिंह का नाम अब अपराध जगत में सुर्खियों में था.

अब सामने पिता के एक और दुश्मन फौजदार साह थे. तब तक वह बूढ़े हो चले थे. पूरी कमान उनके मंझले बेटे सुभाष गुप्ता के हाथों में थी. तनाव और रंजिश की मोटी होती लकीर को देखते हुए सुभाष गुप्ता ने भी लाइसेंसी हथियार खरीद लिया था. वर्ष 1994 के मई महीने में पहली बार सुभाष गुप्ता पर जानलेवा हमला किया गया, जिसमें वे बाल-बाल बचे गये. 21 सितंबर, 1994 दिन बुधवार को सुभाष गुप्ता अपने भाइयों एवं माता-पिता के साथ विजयीपुर स्थित अपने मकान पर ही थे. उन्होंने सुबह की चाय सब लोगों ने साथ पी थी. सुभाष गुप्ता अपने बड़े बेटे भोला गुप्ता, जो उस समय 12 वर्ष के थे, मंझले बेटे नागेंद्र गुप्ता की उम्र आठ वर्ष थी, जबकि सबसे छोटे बेटे देवेंद्र गुप्ता सिर्फ चार साल के थे. सबके साथ सुभाष गुप्ता बात कर रहे थे कि किसी ने खबर दी कि उनके रसुलपुर स्थित पैतृक घर में पानी घुस गया है.

इसके कारण अनाज के साथ अन्य सामान भी भीग गये हैं. जानकारी मिलने के बाद सुभाष गुप्ता अपने बड़े बेटे भोला गुप्ता को एक झोला लाने की बात कह कर अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट करने लगे. सुबह के आठ बजे सुभाष गुप्ता उनके भाई चंद्रशेखर गुप्ता एवं बेटा भोला गुप्ता एक राइफल एवं एक बंदूक लेकर रसुलपुर की ओर निकल गये. रास्ते में योगी वीर बाबा स्थान के पास मछुआरे मछली मार रहे थे. मछली लेने के खातिर वहां खड़े हो गये. वहां लोगों की काफी भीड़ थी. सुबह के 10.30 बज रहे थे. अभी लोग आपस मछली की चर्चा ही कर रहे थे कि अचानक फरार चल रहे विजय सिंह एवं संजय सिंह अपने साथियों के साथ हथियार से लैस होकर वहां पहुंच गये. उनके साथ आये विश्वनाथ एवं राजेश ने चंद्रशेखर गुप्ता को पकड़ लिया एवं मजीद मियां ने उनके हाथ से बंदूक छीन ली. अभी लोग कुछ समझ पाते कि सुभाष गुप्ता गोली लगने से गिर पड़े, तभी अफरा-तफरी मच गयी.

चंद्रशेखर गुप्ता वहां से भागने लगे. उनके ऊपर गोलियां जब चलीं, तो पास से ही गुजर रहे नलकूप विभाग के कर्मी रघुवंश सिंह को गोली लग गयी और उनकी मौके पर ही मौत हो गयी. इसी बीच दम तोड़ चुके सुभाष गुप्ता के पास गिरी उनकी राइफल उठाने गये भोरे थाना क्षेत्र के बगहवां तिवारी गांव के धन्नु तिवारी को भी गोली लग गयी, जिससे उनकी मौत भी मौके पर हो गयी. रघुवंश सिंह एवं धन्नु तिवारी के शवों को छोड़ कर सुभाष गुप्ता के शव को विजय सिंह के लोगों ने दूसरी जगह छिपा दिया. सूचना मिलने पर उस समय विजयीपुर के तत्कालीन थानेदार राम पवित्र सिंह वहां पहुंचे. घटनास्थल पर पुलिस को सिर्फ दो ही लोगों के शव मिले. सुभाष गुप्ता के शव की तलाशी लगातार चलती रही, इस दौरान श्रीराम जानकी मठ के पास शाम के 5.45 बजे सुभाष का शव मिला. इस मामले में चंद्रशेखर गुप्ता के बयान पर विजयीपुर थाने में कांड संख्या 74/94 में विजय सिंह, संजय सिंह सहित कुल आठ लोगों को अभियुक्त बनाया गया.

दूसरी तरफ सुभाष गुप्ता की मौत के बाद फौजदार साह का पूरा परिवार टूट गया. हालात ऐसे बने कि कुछ ही वर्षों में गल्ला, बिल्डिंग मैटेरियल एवं आरा मशीन के व्यवसाय बंद हो गये. इस घटना के बाद भोला गुप्ता के कंधों पर अचानक जिम्मेवारी आ पड़ी. उसके सामने दो छोटे भाइयों के कैरियर की फिक्र थी, तो दूसरी तरफ जीवन यापन के लिए रोजगार की चिंता. बाद में जब सुभाष गुप्ता का मंझला बेटा नागेंद्र गुप्ता बड़ा हुआ, तो पिता की हत्या की फाइल खुलवा दी. तब तक विजय सिंह वर्ष 2001 में हुए पंचायत चुनाव में बीडीसी पद पर निर्वाचित होकर विजयीपुर के प्रमुख बन चुके थे. मामला न्यायालय में चलता रहा. वर्ष 2006 में हुए पंचायत चुनाव में विजय सिंह की जगह संजय सिंह ने ले ली, लेकिन तब तक भोला गुप्ता प्रमुख पद के चुनाव में संजय सिंह को चुनौती दे चुका था. चुनाव के बाद संजय सिंह प्रमुख तो बन गये, लेकिन नागेंद्र गुप्ता लगातार उन्हें चुनौती दे रहा था. जमीन की रंजिश अब राजनीतिक वर्चस्व का भी हिस्सा बन गया था. यही कारण था कि वर्ष 2006 में ही नागेंद्र गुप्ता के घर पर गोलीबारी की गयी, जिसमें संजय सिंह सहित आधा दर्जन लोगों को अभियुक्त बनाया गया. वर्ष 2008 में नागेंद्र गुप्ता ने यूपी के देवरिया सिटी सीओ के पास विजय सिंह एवं संजय सिंह के फर्जी पते पर हथियार का लाइसेंस लेने का खुलासा कर दिया. सुभाष गुप्ता हत्याकांड का मामला अभी भी न्यायालय में ही लंबित था.

इसी बीच 20 मई, 2008 को नागेंद्र गुप्ता फर्जी लाइसेंस के मामले में सीओ से मिलने देवरिया गये. वहां से वे परिजनों से बात करने के बाद गोरखपुर के लिए निकले, लेकिन उसके बाद उनका कोई पता नहीं चल सका. इस मामले में नागेंद्र गुप्ता के परिजनों ने देवरिया कोतवाली में नागेंद्र गुप्ता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी. उसके अगले ही दिन कुशीनगर जिले के हाटा थाना क्षेत्र में पुलिस ने एक शव बरामद किया, जिसकी पहचान नागेंद्र गुप्ता के रूप में की गयी.

इस मामले में संजय सिंह के साथ 17 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाते हुए हाटा थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी. बाद में मामले को गोरखपुर के शाहपुर थाने में भेज दिया गया. इधर, वर्ष 2011 में इस मामले के आरोपित विजय सिंह को दिल्ली के रोहिणी सेक्टर 13 से गिरफ्तार कर लिया गया. संजय सिंह उससे पहले ही गोरखपुर में सरेंडर कर चुके थे. लेकिन, दोनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई.

जिला परिषद के चुनाव में जहां विजय सिंह ने अपनी पत्नी चंदा सिंह को अध्यक्ष पद पर काबिज करा दिया, वहीं संजय सिंह ने अपनी पत्नी निरूपमा सिंह को विजयीपुर का प्रमुख बनवा दिया. इधर विजय सिंह और संजय सिंह जेल काट रहे थे और मामला विचाराधीन था. सुनवाई चल रही थी. 22 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद दो जनवरी, 2016 को न्यायालय ने विजय सिंह एवं संजय सिंह को सुभाष गुप्ता हत्याकांड में दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनायी. आज फौजदार को इंसाफ मिल गया है. अदालत से बहार निकले, तो उन्हें लगा कि वह जंग जीत गये हैं. जंग में बेटे और पोते को गवां दिया, लेकिन आज इंसाफ उनकी चौखट पर आबाद हो रही है.

(इनपुट : गोपालगंज से सत्येंद्र पांडेय व विजयीपुर से सुरेश राय)

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