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जीतन राम मांझी ने कहा, भाजपा के साथ मिल कर लड़ेंगे चुनाव

नयी दिल्ली : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भाजपा से मिल कर चुनाव लड़ने का एलान किया है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलने के बाद मांझी ने कहा, बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के बीच अपवित्र गंठबंधन बना है. मांझी ने दावा किया कि यादव समुदाय महसूस करता है […]

नयी दिल्ली : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भाजपा से मिल कर चुनाव लड़ने का एलान किया है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलने के बाद मांझी ने कहा, बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के बीच अपवित्र गंठबंधन बना है. मांझी ने दावा किया कि यादव समुदाय महसूस करता है कि लालू ने उस नीतीश से हाथ मिलाकर उनके साथ धोखा किया है.

पूर्व मुख्यमंत्री ने हालांकि स्पष्ट किया कि वह अपनी नयी पार्टी हिन्दुस्तान अवाम मोरचा चलाते रहेंगे और यह लालू-नीतीश गंठबंधन को नष्ट करने के लिए राजग का हिस्सा बनेंगे. सीटों के बंटवारे पर उन्होंने कहा कि हमने सीटों के बंटवारे के बारे में कोई चर्चा नहीं की. हमारी कोर कमेटी 15 जून को मिलेगी और निर्णय करेगी.हमारी तैयारी सभी 243 सीटों के लिए है. शाह के साथ चर्चा के दौरान केंद्रीय मंत्री धमेर्ेेन्द्र प्रधान और बिहार मामलों के प्रभारी एवं महासचिव भूपेन्द्र यादव भी मौजूद थे.

सीएम की दावेदारी नहीं, जो भाजपा का फैसला होगा, वह मंजूर

केंद्रीय खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि न वे स्वयं और न ही उनकी पार्टी का कोई नेता बिहार में मुख्यमंत्री पद का दावेदार है. उनकी पार्टी का भाजपा और अन्य सहयोगी दलों के साथ सीटों की संख्या, नेतृत्व और अन्य मुद्दों पर कोई मतभेद नहीं है. एनडीए गंठबंधन का हर फैसला उन्हें मंजूर है. राजद-जदयू गंठबंधन को जम कर कोसते हुए कहा कि यह लठबंधन है, जो ज्यादा समय तक चलने वाला नहीं है. आखिर लालू को यह क्यों कहना पड़ रहा है कि जहर का घूंट पीकर गंठबंधन करना पड़ रहा है. इसी से यह पता चलता है कि इनका साथ कितने समय तक चलने वाला है.राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद पर प्रहार करते हुए कहा कि लालू गंठबंधन में अपने सहयोगी दल को हराने में माहिर हैं.

वे अपने को बड़ा नेता बताते थे, तो नीतीश कुमार की शरण में उन्हें जाने की क्यों जरूरत पड़ी. उन्होंने केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि एक साल के दौरान कहीं भी कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं हुआ है. सांप्रदायिकता का ढोल पीटनेवाले नीतीश कुमार और लालू यादव बेवजह भाजपा का हौवा खड़ा कर रहे हैं. इन दोनों की सरकार दलित, गरीब और पिछड़ा विरोधी है. मुजफ्फरनगर, भागलपुर समेत अन्य दंगे किसकी सरकार में हुए, यह देखने वाली बात है. आने वाले 4-5 सालों में विकास का मुद्दा सांप्रदायिकता से ऊपर हो जायेगा.

अमित शाह और कुशवाहा ने किया विचार-विमर्श

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के साथ मुलाकात की. बैठक में राजद-जदयू और कांग्रेस के एक साथ आने के बाद बनी नयी चुनौतियां, बिहार में मुख्यमंत्री के संभावित नाम और एनडीए के वोट बैंक को संभालने के साथ ही उसे मजबूत करने पर भी विचार-विमर्श किया गया.

भाजपा अध्यक्ष ने एनडीए की सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों को आपस में तालमेल के साथ लड़ने की बात कही. नीतीश सरकार के चुनावी तैयारी से आगे जाकर यह सुनिश्चित करने पर विचार किया गया कि एनडीए के कार्यकर्ता गांव-गांव में जाकर केंद्र सरकार की उपलब्धियों और राज्य सरकार की विफलताओं को बताएं.

लोजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के साथ भी भाजपा अध्यक्ष की मुलाकात संभावित है. चूंकि दोनों दल लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के सहयोगी रहे हैं, इसलिए दोनो दलों के साथ विचार-विमर्श के बाद ही पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी पर फैसला लिया जा सकता है. हालांकि सूत्रों का कहना है कि रालोसपा अध्यक्ष ने सहयोगी दलों को सम्मानजनक सीटें देने की मांग की है. जिसमें रालोसपा की ओर से 50 से ज्यादा सीटों की मांग बतायी जा रही है.

जबकि सीटों के बंटवारे पर भाजपा का स्पष्ट मानना है कि जिताऊ उम्मीदवार को टिकट दिया जायेगा. किसी सीटों पर एनडीए के अन्य घटक दलों के जीतने की संभावना ज्यादा होगी, तो उन सीटों पर घटक दल के प्रत्याशी को टिकट दिया जायेगा. भाजपा की ओर से जीतन राम मांझी से भी बात की जा सकती है, साथ ही सहयोगी दलों को व्यावहारिक मांग करने की सलाह भी दी गयी है. घटक दलों की राय जानने के बाद भाजपा अपने प्रदेश के नेताओं के साथ विचार-विमर्श करेगी उसके बाद सीटों के बंटवारे पर अंतिम फैसला लिया जायेगा.

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