नयी दिल्ली / पटना : दिल्ली में साल 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में फांसी की सजा पाये चार दोषियों में शामिल बिहार के औरंगाबाद जिला निवासी दोषी अक्षय कुमार सिंह की क्यूरेटिव याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. साथ ही फांसी की सजा पर रोक को भी शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया है. मालूम हो कि ने दोषी अक्षय कुमार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी.
SC dismisses curative petition of Akshay Singh in Nirbhaya case
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— ANI Digital (@ani_digital) January 30, 2020
अक्षय की क्यूरेटिव याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायमूर्तियों वाली पीठ ने सुनवाई की. न्यायमूर्ति एनवी रमण की अध्यक्षता में गठित पीठ में जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे. क्यूरेटिव याचिका दाखिल करते हुए दोषी अक्षय ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की मांग की थी. मालूम हो कि अदालत ने निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों को एक फरवरी को फांसी देने की तारीख तय कर रखी है.
अक्षय ने अपनी याचिका में कहा था कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय के कारण अदालतें सभी समस्याओं के समाधान के रूप में फांसी की सजा सुना रही है. अपराध की बर्बरता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौत की सजा सुनाने से अदालत और देश की अन्य फौजदारी अदालतों के फैसलों में असंगतता उजागर हुई है. साथ ही कहा गया है कि ‘मौत की सजा एक विशेष तरह का प्रतिरोध पैदा करती है, जो उम्रकैद की सजा से नहीं हो सकता है. उम्र कैद अपराधी को माफ करने जैसा है… यह प्रतिशोध और प्रतिकार को न्यायोचित ठहराने के सिवा कुछ नहीं है.’
अक्षय ने याचिका में दावा किया है कि रेप और हत्या के करीब डेढ़ दर्जन मामलों में सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मौत की सजा में बदलाव कर उसे हल्का किया है. एक अन्य मामले में नाबालिग से गैंगरेप और हत्या के मामले में मौत की सजा को न्यायालय ने पुनर्विचार फैसले में घटा कर 20 साल के सश्रम कारावास में तब्दील कर दिया. फैसले का आधार दोषी की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं बताया गया. उसके सुधार की अब भी गुंजाइश है. साथ ही अक्षय ने अदालत से जानना चाहा है कि यदि याचिकाकर्ता को उम्रकैद दिया जाता है. वह जेल में रहते हुए परिवार के लिए मामूली आय अर्जित करने की अनुमति दी जाती है, तब क्या वह जेल के अंदर से समाज के लिए क्या खतरा पेश कर सकेगा? याचिका में पूर्व जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी की एक रिपोर्ट का भी जिक्र किया गया है.