गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जब पद्म पुरस्कारों की घोषणा हुई, तो उसमें बिहार की भी हस्तियों को शामिल किया गया. ये ऐसी हस्तियां हैं, जिन्होंने कला, समाज सेवा, विज्ञान व इंजीनियरिंग व मेडिसिन के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य कर अपना पूरा जीवन समाज की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया. प्रभात खबर की एक रिपोर्ट.
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काम के जज्बे को सम्मान, बिहार की हस्तियों को मिला पद्म पुरस्कार
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जब पद्म पुरस्कारों की घोषणा हुई, तो उसमें बिहार की भी हस्तियों को शामिल किया गया. ये ऐसी हस्तियां हैं, जिन्होंने कला, समाज सेवा, विज्ञान व इंजीनियरिंग व मेडिसिन के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य कर अपना पूरा जीवन समाज की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया. प्रभात खबर की […]
79 वर्ष में भी 12 घंटे करती हैं इलाज
बिहार की मशहूर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ शांति राय पद्मश्री सम्मान से सम्मानित की जायेंगी. 79 वर्ष की डॉ शांति राय से इलाज कराने के लिए बिहार के दूर-दराज से मरीज आते हैं. इस उम्र में भी वह सुबह 11 से रात 11 बजे तक रोजाना 12 घंटे तक काम करती हैं. मरीजों के इलाज को ही अपनी जिंदगी का मकसद मानने वाली डॉ राय के लिए डॉक्टर बनना आसान नहीं था. वह बताती हैं कि मैं मूल रूप से गोपालगंज जिले की रहने वाली हूं.
स्कूली शिक्षा से लेकर मेडिकल तक की पढ़ाई में कई बाधाएं आयीं, लेकिन परिवार के सहयोग से मैं आगे बढ़ती गयी. मेरी शिक्षा में मेरे दादा यमुना सिंह का बड़ा योगदान रहा. उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया. डॉ शांति राय अपने परिवार की पहली डॉक्टर थीं.
छापा चित्रों की छाप विदेशी गैलरियों में भी
प्रोश्याम शर्मा राज्य के प्रसिद्ध छापा चित्रकार हैं. इन्हें छापा कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री मिलेगा. पटना आर्ट एंड क्राफ्ट कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो शर्मा इससे पूर्व कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं. इनके बनाये छापा चित्रों की प्रदर्शनी देश और विदेश की चर्चित गैलरियों में लग चुकी है. आज भी यह नियमित रूप से पेंटिंग बनाते रहते हैं. घर पर ही इनका अपना आर्ट स्टूडियो है.
वह चित्रकार के साथ ही लेखक भी हैं. बिहार में कला के विभिन्न आयामों पर उनकी कई पुस्तकें छप चुकी हैं. डॉ शर्मा कहते हैं कि यह सम्मान पूरे बिहार की कला और कलाकारों का सम्मान है. यह कला से जुड़ी आस्था का सम्मान है और समाज से जुड़े रहकर काम करने का सम्मान है.
छह वर्ष से लेखन व 32 किताबें प्रकाशित
पिछले करीब 22 वर्ष में देश-विदेश मेें बिहार की गौरव गाथा बताते बिहार गौरव गान की तीन हजार प्रस्तुतियां हो चुकी हैं. 1997 में इसका लेखन करने वाली राज्य की मशहूर साहित्यकार और लाेक गायिका प्रो डॉ शांति जैन को अब पद्मश्री सम्मान मिलेगा. वह एचडी जैन कॉलेज आरा में संस्कृत की शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं. छह वर्ष की उम्र से वह लेखन कर रही हैं. अब तक उनकी लिखी 32 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं.
इनकी पहली पुस्तक चैती के लिए 1983 में राजभाषा सम्मान मिला था. 2006 में केके बिड़ला फाउंडेशन का शंकर सम्मान मिला. लोक संगीत के गायन के लिए 2009 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार इन्हें मिल चुका है.
पहल कर 35 हजार कृत्रिम पैर लगवाये
प्रोसमाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम के लिए शहर के विमल कुमार जैन को पद्मश्री सम्मान मिलेगा. वह पिछले 25 वर्ष से दिव्यांगों को नयी जिंदगी देने के लिए मेहनत कर रहे हैं. इनके प्रयासों से ही अब तक करीब 35 हजार कृत्रिम पैर लगाये जा चुके हैं. पोलियो ग्रस्त या किसी अन्य तरह की दिव्यांगता के शिकार 8000 बच्चों का ऑपरेशन करवा चुके हैं.
पटना में इनका भारत विकास एवं समय आनंद अस्पताल है, जिसके माध्यम से वह दिव्यांगों की मदद करते हैं. सुविधा वह नि:शुल्क मुहैया करवाते हैं. इसके साथ ही दधीचि देह दान समिति के माध्यम से वह नेत्रदान और अंगदान के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. वह कहते हैं कि जेपी के कथन ने मुझे प्रभावित किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सत्ता नहीं समाज बदलना है.
सम्मान भागलपुर की मिट्टी को किया समर्पित
भागलपुर की मिट्टी को प्रणाम, आज तक जो कुछ किया वह सब उसी की कृपा है. हमसे जो कुछ कमी हुई है वह हमारी है, जो कुछ मेरे में अच्छाई है वह भागलपुर की है. उक्त बातें पद्मश्री मिलने की घोषणा के बाद प्रभात खबर से बातचीत करते हुए डॉ रामजी सिंह ने कहीं.
हाल ही में पटना के एक अस्पताल में पेट के ऑपरेशन के बाद पटना में ही अपने बेटे के घर पर स्वास्थ्य लाभ कर रहे डॉ सिंह ने कहा कि शनिवार शाम पांच बजे गृह मंत्रालय के अधिकारी ने उन्हें फोन कर सम्मान मिलने की सूचना दी. ख्यातिलब्ध गांधीवादी रामजी बाबू ने सम्मान को भागलपुर की मिट्टी को समर्पित करते हुए कहा कि पानेवाला से बड़ा देनेवाला होता है और उससे बड़ी भागलपुर की मिट्टी है जिसकी कृपा से मैं इस काबिल बना.
मेडिकल रिसर्च को ही अपनी जिंदगी माना
आइआइटी खड़गपुर से बीटेक करने के बाद डॉ सुजाॅय के गुहा के सामने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एक बेहतरीन करियर था. वह चाहते तो विदेशों में भी शिफ्ट हो जाते लेकिन उन्होंने मेडिकल रिसर्च को ही अपनी जिंदगी माना और तमाम बाधाओं को पार करते हुए वह पुरुषों के इस्तेमाल होने वाले एक बेहतरीन गर्भनिरोधक को बनाने में सफल रहे.
इसका इस्तेमाल जनसंख्या नियंत्रण में मददगार हो सकता है. विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ गुहा आज मेडिकल रिसर्च के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम बन चुके हैं. देश के साथ ही वह विदेशों में भी जाकर रिसर्च करते हैं. वह पटना के रहने वाले हैं और उन्होंने संत जेवियर्स स्कूल गांधी मैदान से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की है.
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