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नववर्ष : इन कवियों की तरह चाहिए ऊर्जा व संवेदना
अजय कुमार नववर्ष की पूर्व संध्या पर प्रभात खबर कार्यालय पहुंचे साहित्यकार रवींद्र भारती व श्रीराम तिवारी श्रीराम तिवारी का हाथ पकड़े रवींद्र भारती सड़क पार करा रहे हैं. गाड़ियों की रफ्तार से बचते-बचाते. नहीं मालूम कि यह वक्त दोनों को कितना जानता-समझता है, पर दोनों एक-दूसरे को खूब समझ रहे हैं. कुछ डेग आगे […]
अजय कुमार
नववर्ष की पूर्व संध्या पर प्रभात खबर कार्यालय पहुंचे साहित्यकार रवींद्र भारती व श्रीराम तिवारी
श्रीराम तिवारी का हाथ पकड़े रवींद्र भारती सड़क पार करा रहे हैं. गाड़ियों की रफ्तार से बचते-बचाते. नहीं मालूम कि यह वक्त दोनों को कितना जानता-समझता है, पर दोनों एक-दूसरे को खूब समझ रहे हैं. कुछ डेग आगे बढ़ते हैं. फिर दोनों के कदम एक साथ बढ़ रहे होते हैं.
श्रीराम तिवारी 84 साल के हो गये. 70 के आसपास रवींद्र भारती. दोनों साहित्यकार. दोनों के पास अथाह अनुभव. संस्मरणों को सुनाना शुरू करें, तो कथा-कहानियों के पाठ जैसे. रवींद्र भारती किस्सागो की तरह बताते चलते हैं. एक पल को लगेगा कि उसके पात्र आपकी आंखों के सामने उतर आये हैं. आप सब कुछ भूलकर उन पात्रों को देखने लग जाते हैं.
…जेपी के पास गया. दोपहर का वक्त हो रहा होगा. उस समय जेपी आराम कर रहे थे. सच्चिदानंद जी (जेपी के पीए) ने कहा कि अभी कैसे मिल सकते हो. पर मिलना जरूरी था. फ्रेजर रोड के कॉफी हाउस में रेणु जी (फणीश्वर नाथ रेणु) मिल गये. बेहद उदास थे.
बेटी की शादी तय हो चुकी थी. पैसे थे नहीं. 10 हजार रुपये की जरूरत थी. कहां से मिलें इतने रुपये? रेणु जी की बातों को सुनने के बाद मैंने कहा-चलिए, आप मेरे साथ. कहां? रेणु जी के इस सवाल का जवाब दिये बिना हम दोनों रिक्शे पर बैठे और पहुंच गये कदमकुआं. जेपी यहीं रहते थे. हमने रेणु जी से कहा-आप ऊपर मत चलिए. यहीं रहिए. मैं ऊपर गया. सच्चिदा बाबू से कहा कि अभी जेपी से मिलना है. शायद जेपी ने मेरी आवाज सुन ली थी.
उन्होंने आवाज दी. हम अंदर गये. उनसे कहा कि रेणुजी की बेटी की शादी होनी है. 10 हजार रुपये की जरूरत है. बातचीत के दौरान ही हमने रेणु जी को आवाज देकर ऊपर बुला लिया. जेपी ने तुरत 10 हजार रुपये का बंदोबस्त किया. हम वहां से निकल पड़े. लतिका जी का जिक्र आता है, कई बार. वेणु भी आते हैं.
जेपी आंदोलन के दौरान नुक्कड़ों पर कविता होती थी. कविता आंदोलन बन गयी थी. नुक्कड़ कविता. बाबा नागार्जुन, राजहंस, परेश सिन्हा, सत्यनारायण के साथ युवा रवींद्र भारती की कविताएं लोगों को आंदोलित करती थीं. आंदोलन पर दमन चला. बाबा को जेल में डाल दिया गया. कवि लाल धुआं और रवींद्र भारती भी जेल गये. जेल की कई कहानियां वह सुनाते हैं. जेपी आंदोलन और नेपाल कोकेंद्र में रखकर लिखा गया उपन्यास चर्चा में है.
अचानक रवींद्र भारती का गला भर आता है. जानते हो? मुझसे कहा गया आंदोलन में शामिल होने, जेल जाने का प्रमाणपत्र दो. अब तुम्ही बताओ, यह कोई बात हुई. तुम्ही बताओ, बाबा को कहां से पकड़ लाऊं? बात वाजिब है, लेकिन तुम ठहरो अब.
श्रीराम तिवारी रोकते हैं. तिवारी जी बिहार सरकार की नौकरी में अधिकारी रहे. पर कविता से पहचाने जाते हैं. 60 के दशक में झारखंड के इलाके में रहे. पहाड़, आदिवासी जीवन की कुछ लाइन सुनाते हैं. बेहद मर्मस्पर्शी. शब्द ताकतवर होकर उभरते हैं. कथाकार मधुकर सिंह के गांव आरा के धरहरा के रहने वाले. दोनों की यारी हमने भी देखी है. शहर के चरित्र पर वह गजल लिख रहे हैं.
हमने घर का हाल जानने की कोशिश की. बस इतना ही बोले-45 हजार पेंशन मिलती है. 40 हजार कर्ज चुकता में निकल जाता है. नातिन की शादी के लिए कर्ज लेना पड़ा था. तीन बेटे हैं. पर उनके पास कोई काम नहीं है. मुझे ही सब देखना पड़ता है.
पर निजी जीवन की दिक्कतें जल्दी ही किनारे लग जाती हैं. केंद्र में आ जाते हैं कविता, साहित्य और समाज. पता नहीं, ये कवि भी कहां से इतनी ऊर्जा लाते हैं. तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद कहां से लाते हैं इतनी संवेदना. नववर्ष पर इसी ऊर्जा और संवेदना की सबको जरूरत है. क्यों, है न?
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